Friday, 18 September 2020

कभी न जागूं ऐसी नींद सुला दे,

हे कन्हैया मुझे मौत की नींद सुला दे,
मेरी मौत थोड़ा ज्यादा बेहतर बना दे,

 कभी न जागूं ऐसी नींद मुझे सुला दे,
सारे जहां को मेरे ना होने की बात बता दें,

मेरे घर के बाहर थोड़ी भीड़ तो लगवा दे,
 मरने के बाद भी खुली रहे आंखें मेरी,

खुली आंखों से सनम का दीदार करा दे,
इसी बहाने मुझे मेरे महबूब से मिला दे,

 जो कतराते हैं मुझसे बात करने में,
उन्हीं के कांधे पर मुझे उठवा दे,

जिनकी यादों में हम रात भर रोते हैं,
उन्हें भी मेरी याद में उतना ही रुला दे,

जिन हाथों से चाहा था उठवाना घुंघट,
उन्ही हाथों से मेरा चेहरा ढकवा दे,

वरमाला नहीं हुई तो क्या हुआ ,
अर्थी पर ही मेरे हार पहनावा दें,

इजहार ए मोहब्बत के लिए ,
फूल लेकर दौड़ी हूं मैं जिनके पीछे ,

आंखों में आंसू भर कर रोते हुए,
उन्हें मेरे चौथे पर फूल लेकर भिजवा दें,

जीवन में साथ जिनके रह पाई नहीं,
प्रेत बन कर जीवन भर डराऊंगी,

कोई जाकर उन्हें इतना तो बतला दे ,
मरकर काले साए से डराऊंगी मैं,

जिन्हें रहम नहीं मेरी मासूमियत पर,
काला साया बनकर रहम ना खाऊंगी मैं,

भविष्य में साथ ना मिला अगर,
भूत बन कर सदा साथ निभाऊंगी मैं,

चाहत ने जिनकी शायर बना दिया,
यह खबर उन तक पहुंचवा दे,

हे कन्हैया ,
मुझे इतना सबल कर,कि मैं उनको उठा लूं,
 या फिर उनके हाथों से मुझे ही उठवा दे,

                 साहित्यकार____ निशि द्विवेदी 
                                          पिंकी दिवेदी

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