जितनी शिद्दत तुम्हें पाने की थी
उससे ज्यादा डर तुम्हें खोने का है
बस यही है कि तुमसे लड़ती नहीं
तुम यह ना समझना कि मैं बदल गई हूं
मेरा गुस्सा आज भी वहीं हैं
बड़े नसीबों से मिले हो इसलिए केयर करती हूं
प्यार का बस यही दस्तूर है
तुम्हारी हर बात हमें मंजूर है
बर्दाश्त होती है कोई दूरी नहीं
वर्ना तुम्हें ब्लॉक करना मैं भूली नहीं
कहना तो बहुत कुछ है
बताना समझती अब जरूरी नहीं
बुरा लगता है तुम्हारा इग्नोर करना
घूमा कर बातों को गोल करना
अब क्या लड़ना झगड़ना शोर करना
अब किसे दिखाए बचपना
जब सोचती हूं रह लूंगी तुम्हारे बिना
तब छा जाता है अंधेरा घना
मुझे पता है तुम्हारा दिल भर गया है
फिर भी दूर जाने से दिल डर गया है
चार कदम हम साथ चले थे
लेकर आंखों में सौ सपना
बस इसीलिए चूप दूर खड़े है
शायद बना सकूं तुम्हें अपना
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