पैरों में तू पंख लगा कर ,
उड़ चलो गगन में,
बिना किसी परवाह किए ,
बढ़े चलो चमन में,
डर लगता किस बात का है ,
खेल आत्म विश्वास का है,
मुस्कान को ढाल बना कर,
बढ़ो सदा तुम आगे,
बंधन सारे तोड़ ताड़ कर,
भय को पीछे छोड़ छाड़ कर,
भरोसे से भरा बनो,
जुबान से खरा बनों,
पहले अबला थी तू,
अब बल को ला ,
पहले नारी थी तू,
अब बन कर आरी तू,
सारे बंधन को तू काट के आ,
तनिक नहीं घबरा,
हाथ,हथकड़ी पांव की बेड़ी ,
जोस तपिश से दे पिघला,
न परवाह और लोगों की,
कही-सुनी से अब तू मत घबरा,
समंदर जो है दिलों में,
उसको अब तू बाहर ला,
तूफानों सा तू लड़ जा,
पहाड़ों सा तू अड़ जा,
नदी के जैसा बह चल,
मौसम जैसा अब बदल जा,
भर दामन खुशी से,
अपनी बगिया को चमका,
बन सुगंध तू धरती की सारे गूलशन को दे महका,
रख भरोसा अपने पर मान और सम्मान को पा,
No comments:
Post a Comment