***** बीरह की अग्नि में जलेंगे तुम संग***
तुम बिन जिएंगे कैसे,
कैसे रहेंगे तुम बिन,
हमारी अधूरी ख्वाहिश
पूरी नहीं होंगी तुम बिन,
सोचा है तुमने कभी यह,
रिश्ता होगा कैसा तुम बिन
तुम्हारे भी कुछ होंगे सपने,
मेरे तो तुम ही हो अपने,
तुम ही ने दिखाया था सपना,
पूरा कैसे होगा तुम बिन
दिल में जलाया दीया था,
बिरह में जल हम रहे हैं,
प्रेम अधूरा ही होग,
पता था फिर भी करे हम
साथ निभा ना सके हम,
यादों में खोय रहे हम
प्रेम दोनों ने किया था,
दोनों ने देखें थे सपने,
टूटे गए सारे सपने,
जब तुम ही नहीं हो अपने
सावरे से हुई चार आंखे,
उड़ाई नींद केई राते
याद रहेगी सारी बाते,
मुलाकातें वो प्यारी बाते,
कभी अा जाओ ,
सुन,सुना जाओ,
अपने सारे ....किस्से........
किसी से कह ना सके हम।
किसी को बता नहीं सकते।
दीए जलाकर रखेंगे,दीए ही देकर चलेंगे।
दीया ही दिया है प्रेम, नहीं कुछ लिया दिल ने।।
Bahut hi khoobsurat poem h please
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