Monday, 5 October 2020

शरारत खो गई है कहीं चलो मिलकर ढूंढो,

शरारत की ही नहीं मैंने,
 मुझसे हो गई है,
बचपन में होती थी ,
अब कहीं खो गई है,
चलो मिलकर ढूंढो,
लगता है कहीं सो रही है,
 शरारत कर जिस आंचल में छुप जाती थी,
जाकर मां के आंचल में ढूंढी,
 नहीं मिली,
सखियों से बोला मेरी शरारत कहीं खो गई है,
वह बोली बाद में बात करना अभी मैं व्यस्त हूं,
बच्चों से पूछा मेरी शरारत कहां गई है,
वह बोले तेरी तो पता नहीं ,
मेरी तो बसते के नीचे दबी पड़ी है,
पड़ोसी को बोला मेरी शरारत कहीं चली गई है,
वह बोले बाद में बात करेंगे अभी समय नहीं है,
थाने गई मैं रपट लिखाने,
मैं बोली मेरी शरारत मिल नहीं रही है,
दरोगा बोले क्या क्या साथ लेकर गई है ,
मैं बोली जब से शरारत गई है,
 मेरी हंसी को साथ ले गई है,
 खुशी भी कहीं मिल नहीं रही है,
उदासी मेरे घर में बिखरी पड़ी है,
वह बोले रिश्तेदारों को फोन करके पूछो,
उनके घर तो नहीं चली गई है,
मैं बोली ना उनकी भी जिम्मेदारियों में दबी पड़ी है,
सब के फोन आ रहे हैं मेरे पास बारी-बारी ,
उनकी भी कहीं खो गई है, कहीं चली गई है,
वह बोले 24 घंटे ढूंढ लो, मिल जाए तो बता देना,
मैं उदास आंखों से ढूंढ रही थी,
मेरी शरारत मुझे कहीं नहीं मिल रही थी,
उदासी की चादर ओढ़ के जब मैं घर आई,
मुझे थोड़ी उबासी आई,
बस थोड़ी पलक झपकाए
अगले ही पल मेरी आंखें पति से जा टकराई,
हमारी नजरें आपस में टकराई,
चेहरे पर मुस्कुराहट आई,
मैंने मेरी मुस्कुराहट वापस पाई,
फिर जो हुआ बस कहना क्या था,
उनकी आंखों में शरारत ने डेरा डाला था,
एक फूल मेरी ओर शरारत से फेंका,
बस फिर क्या था मैंने भी पूरा गुलदस्ता ,
उन पर दे मारा,
और अपनी शरारत को वापस पाया,
 मैं भाग रही थी आगे आगे,
और पूरा घर मेरे पीछे पीछे ,
बच्चे भी संग भाग रहे थे ,
सब मिलकर पकड़ो पकड़ो खेल रहे थे ,
यह मेरी शरारत ही तो थी ,
जो उम्र का लिहाज छोड़ कर
 बस मस्ती से भागे जा रही थी,
मुस्कान हंसी ठिठोली साथ लेकर,

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