Monday, 2 November 2020

मैं चंदा देखन जाऊं ,या नयन सुख पाओ।।

इतना सज धज खड़े हैं,
 कान्हा कुछ कहने की नहीं कोई बात है,

करवा चौथ का व्रत करें है मेरी राधा,
बहुत खुशी की यह तो बात है,

छलनी दीपक धारे है मेरी राधा,
एकटक निहारे हैं राधा,

बंसी अधरन लगाए हैं कान्हा,
वह तो सुबह से नहीं कुछ खाए हैं,

उतना ही सज धज खड़ी है मेरी राधा,
कुछ कहने की नहीं कोई बात है,

रूप देख मेरे मोहन को,
आज चंदा ने भी सुर्ख लाल रंग पाए हैं,

आज देख सभी चंदा को ,
फिर देख रहे मोहन को,

 अटरा पर अपने अपने पति को,
 छोड़ गोपयन भी भाग भाग आई हैं,

लगाए टुकटुकी निहारे बस कान्हा,
वह तो नैनो का सुख रही पाए हैं,

अति आनंद लूट रहे हो जग में,
मेरे कान्हा पर सब लुढ लुढ जाए हैं,

आनंद ही आनंद भयो ब्रज में,
मेरे नयन भी अति आनंद को पाए हैं,

छवि सबसे निराली मेरे श्याम की,
निशि नयन में कृष्ण को बसाए हैं,

जय जय राधे राधे मेरे श्याम जी,
 जय जय मुरली वाले घनश्याम जी ,

मेरे नैनों में ही बस कर रहना,
और कहीं तुम ना जाना,

साहित्य सेवा संस्थान
सचिव__ _____ निशि द्विवेदी

Sunday, 1 November 2020

तेरे चरणों की मैं हूं दासी, तुम बिन रहा उदासी


तेरे रूप बड़ौ अनमोल,
देखने में लागे तनिक न मोल,

कलेजे में ठंडक पड़ जाए ,
जो तू दर्शन देने आए,

तेरी बंसी मैं बन जाऊं,
 तुम्हारे अधरन से लग जाऊं,

तेरी मुंदरी बन कर कान्हा,
 तेरी उंगली में बस जाऊं,

तेरे साथ ही बस जाऊं ,
तुझसे दूर रह ना पाऊं,

तुमरे नैनन में बस जाऊं ,
या फिर तुम्हें नयन बसाऊं,

तुमरे चरणों में बस जाऊं ,
मुख से तुम्हारे भजन में गांऊ,

राधे मेरे श्याम मेरे राधे राधे श्याम,
जय जय राधे राधे श्याम जय जय राधे राधे श्याम

साहित्य सेवा संस्थान,
 अंतर्राष्ट्रीय सचिव ___निशी द्विवेदी

मुझसे ब्याह रचा लै,

राधाा मुझसे ब्याह रचाा लो
मुझे अपना पति बना लो,

सब मेरी हंसी उड़ावै,
 मुझको बहुत ही लज्जा आवे,

मेरी बूढ़ी हो गई माई ,
मुझको अब सबर होए नाई।

ग्वाल बाल संग आऊं,
और तुम्हें ब्याह ले जाऊं।

तुम रे माखन जैसे हाथ,
 तुम्हारे हाथ मै माखन खाऊ,

तो मुझको प्यारी लागे,
 तुमसे काम न कराऊं,

पानी भी मैं भरकर लाऊं ,
और गांवयै में ही चराऊ,

बस तुम मेरे घर में आजा,
तेरौ रूप मोहै है भाता,


साहित्य सेवा संस्थान 
अंतर्राष्ट्रीय सचिव ___निशि त्रिवेदी


मुख से निकले शब्द, तौल के बोलो।

तुम्हारे मुख से,
 निकले शब्दों को सुनकर,
 खून मेरा खौला था,

क्या उन शब्दों को तुमने ,
मन के तराजू में ,
तौल कर बोला था,

हे कन्हैया ,
कितने कड़वे थे वह शब्द,
क्या उन शब्दों को तुमने ,
चख कर बोला था?

कहां से लाए थे यह शब्द,
शब्दकोश को पूरा निचोड़ा था,
या फिर तुम्हारे मन में ,
शब्दकोश का पोटला था,

जिस पर चलाए थे ,
तुमने शब्दों के बाण,
उसका मन बहुत भोला था,

क्या तुम्हारे ,
तरकस में ,
विश् का कटोरा था,

क्यों दुखाया तुमने ,
उसका ह्रदय,
उसके हृदय में भी तो ,
राम का बसेरा था,

जब तुम्हारे शब्दों के दंश ने,
 उसके हृदय पर आघात ,
किया होगा,

उसका हृदय भी तो,
 बिलख बिलख कर 
रोया होगा,

क्यों करता है एक मानव,
 दूसरे मनुष्य पर ऐसा वार,
जबकि सब जानते हैं कि,
 हर मनुष्य में है ईश्वर का वास,

जब कोई करता होगा ,
तुमसे मीठी बात,
तुम्हारा हृदय ,
 हिंडोले लेता होगा,

साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव  
____निशि  दि्वेदी

खोने का डर

जितनी शिद्दत तुम्हें पाने की थी                 उससे ज्यादा डर तुम्हें खोने का है बस यही है कि तुमसे लड़ती नहीं           तुम यह ना समझना कि...