आज तुम्हारी चिट्ठी आई,
पिया मिलन की याद दिलाई
भूल गई मैं ऋतुएं सारी,
बड़े जोर से मैं मुस्काई,
तुम बिन बदरंग जिंदगी
सावन से बसंत ऋतु आई,
आंखों में वर्षा,
उमंगों में पतझड़,
होली भी बेरंग,
और दिवाली पर दिल जलाए,
आज तुम्हारी चिट्ठी आई,
लिखा नहीं कहीं पर भी था,
वापस कब तुम आओगे,
सूने मेरे घर आंगन को ,
कब-तक तुम महकाओगे,
आज तुम्हारी चिट्ठी आई,
खुशियों की सौगात है लाई,
जब से गए परदेस को साजन,
सूना पड़ा है घर और आंगन,
अब तो लौट आओ मेरे साजन,
आज तुम्हारी चिट्ठी आई ,
चंदन की खुशबू लाई,
क्या करोगे इतना धन,
सूना पड़ा मेरा जीवन,
तुम बिन अब रहा न जाए,
अबकी करो कुछ ऐसा वादा ,
कि अगले सावन साथ ही खेले,
ऐसा ना हो कि बिना तुम्हारे ,
सावन मेरी जान ही ले ले,
विश्व साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव _____ निशि द्विवेदी
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