गगन तार तार है,
दुखों का आगाज है,
हर तरफ चीख पुकार है,
कोरोना महामारी है,
भारत के बुरे हालात है,
शून्य हैं मस्तिष्क सबके,
भाव में बौखलाहट है,
रो रहा प्रकृति का जर्रा जर्रा,
डर से मनुष्य रहा थर थरा,
रो रही माताएं , बच्चे, बहने ,
उजर रहा सिंदूर,
अंधियारा है चारों ओर,
उम्मीद नहीं दूर दूर,
परेशानियों का हर तरफ डेरा है,
जल्द होना उम्मीदों का सवेरा है,
कुछ नहीं बस प्रकृति का खेला है,
मनुष्य ने भी प्रकृति से खेला है,
विश्व साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव
-निशि द्विवेदी
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