चिताओं पर चडगई हंड़िया,
चिकित्सक बटोर रहे गड्डियां,
बिगाड़ रहे हो अपनी करनी,
दूध दूह रहे क्यों तुम चलनी,
चुप क्यों बैठे हैं पुराने दरबारी,
क्या है बोले उनकी लाचारी,
कालाबाजारी है कब तक चलनी,
भूलो मत जैसी करनी वैसी भरनी,
क्या चुनाव है इतना जरूरी,
नहीं दिखती उन्हें की मजबूरी,
फैल रहा है काल का पांव,
धधक उठी चिताये शहर हो या गांव,
ताबड़तोड़ है जारी,
ऑक्सीजन की कालाबाजारी,
नहीं है हम सरकार के विरुद्ध,
समाचारों से कंठ हो रहा अवरुद्ध,
विश्व साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव ___
निशी,पिंकी द्विवेदी
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