माखन की मटकी फोड़ी कन्हैया,
जैसे ही मटकी गिरी मैया आ गई।
कान घुमायो सब कबुलवायो,
कैसे सिकों ,कैसे माखन गिरो।
कान्हा कैसे जतन कियो ,
कान्हा किसने साथ दियो।
मय्या मोरी कान छोड़ दो,
मै नहीं माखन चुराओ।
ग्वाल बाल यो बिखराओ,
कान्हा सच बोलो कान नहीं छोड़ोऊ।
मैया सच बोलूं मैने ही माखन खाओ,
ग्वाल बाल घोड़ा बनो।
सब मिल माखन चूराओ,भूखों रहो नहीं जाय।
तभी माखन छुराओ, सब ने माखन ख़ाओ।।
_निशि द्विवेदी
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