दर्पण में जब देखूं दिखती है राधा जी,
राधा रानी जब देखें उन्हें दिखते हैं भगवान्।
कैसी है ये मृग तृष्णा एक दूजे में बसते प्राण,
कैसा अनोखा दिलों का बन्धन ये कैसे हो स्वीकार।
दिल की धड़कन में भी श्याम आंखो में भी श्याम,
प्रेम लग्न ऐसी लागी दोनों को रहे ना कोई याद।
पकवान जिवें कान्हा जी पेट भरे राधा को,
गरम खीर कान्हा खाते हैं छाले मुख राधा हो। प्रेम अनोखा ये केसा ये जान ना पाए कोई,
जो कान्हा जी को चाहो तो तुम राधा नाम लो।
पाना राधा को चाहो तो तुम कान्हा नाम लो।।
राधा श्याम पुकारो तो, दोनों मिलिजाए सोए।।
निशि कृष्ण नयनों में बस गए, दर्शन कर लोय।।
No comments:
Post a Comment