Thursday, 21 May 2020

वो दिन मुझे याद आज भी है,

दिन मुझे याद आज भी है
जब पहली बार उन्हें देखा,
तब बड़ा सुहाना मंजर था
दिन मुझे याद आज भी है,

उनसे नजरें चार हुई थी,
 जैसे ही नजरें टकराई ,
काल ने विराम लगाया
दिन मुझे याद आज भी है

 दिल समंदर हिलोरे ले गया
घंटियां बजने  लगीं कानों में,
किसी ने पीछे गुहार लगाई
 दिन मुझे याद आज भी है

कान चुब्ध से रह गए,
मैं स्तंभ बन रह गई,
नेत्रों में अंधियारा था
सुध बुध को विसराया था
वो दिन मुझे याद आज भी है

नैनो के गलियारे से होकर
 हृदय पटल पर छाप पड़ी
मानो कूक रही थी कोयल जैसे
वो दिन मुझे याद आज भी है

विचारों से शून्य हो गया था
 मेरे मन का कोना कोना,
याद नहीं था कुछ भी मुझको 
क्या था हंसना क्या था रोना,

भूल गई थी सारे कृत्य
 खाना पीना हंसना सोना
आईना देख हंसती थी
विरक्त हुई थी सबसे

दिन मुझे याद आज भी है
 सखियों के संग कालेज में
अपने मन की व्यथा सुनाई 
एक ने कहा तुझे प्यार हो गया 
वह दिन मुझे याद आज भी है

कल्पना के पंख लगा कर
 रात दिन बस उड़ती रहती 
ना ही सोती खाती पीती 
याद तुझे बस करती रहती

वह दिन मुझे याद आज भी है
जब मार्ग तेरा निहारती रहती
एक बार बस मिल जाओ
 यही प्रार्थना करती रहती

तुम्हारे सामने बस निहारती रहती 
जब दूर होते थे कुछ कहना होता था
जब तुम्हें भी हमसे प्यार हुआ
तब तक सारा गाओ जान गया था

                                          निशि द्विवेदी

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