Friday, 22 May 2020

तुम चाह लो मुझे इतना, कोई चाह न सके जितना।

आंधियों में आशियाने बनते हैं।
अगर तुम चाहा लो जरा सा।
आंधियों में चिराग जलते हैं।

अगर तुम चाहा लो जरा सा।
पतझड़ में फूल खिलते हैं ।
अगर तुम चाह लो जरा सा।

मछलियां आसमानों में
 और चिड़िया तालाबों में 
अगर तुम चलो जरा सा

राजा को रंक बना दो
कंकाल में भी जीवन भर दो
सामान्य को महान बना दो
अगर तुम चलो जरा सा

अगर तुम चाह लो जरा सा
 तो पत्थर पर भी फूल खिलते हैं
मेरे नैनो को सुख मिल जाए 
अगर तुम चलो जरा सा

धरती पर बैठकर आसमानों
 का सुख देख रही हूं
 क्योंकि मैं तुम्हें चाहती हूं।
बस तुम भी चलो जरा सा

अगर तुम चाहो जरा सा मेरे कन्हैया।
 मेरे लिए इतना तुम चाहा लो जरा सा।


                      ****** निशि द्विवेदी******

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