नाम____निशि द्विवेदी
शहर किनारे हैं कुटिया मेरी,
एक बार जरूर आ जाना।
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द्वार सदियों से खुला पड़ा है
जब दिल चाहे आ जाना।
ऊंच-नीच का कोई भेद नहीं है
ना ही अमीर गरीब का भाव है।
मन की सुंदरता अनिवार्य बड़ी है
जब दिल चाहे आ जाना।
जलपान में हृदय परोसेंगे।
भोजन में शब्दों के पकवान मिलेंगे।
जब जी चाहे आ जाना।
ठहरो मेरा पता भी सुन लो ।
कैसे आना है यह जान भी लो।
"फेसबुक" स्टेशन से मेरे घर तक ।
कोई मोड़ मोड़ाओ नहीं है।
"निशा निमंत्रण ग्रुप "चौराहे से,
मेरे घर तक सीधी गली है।
द्वार तक मेरे आ जाना,
दरवाजे पर कड़ी नहीं है,
निशि नाम है मेरा बस,
याद तुम्हें इतना रखना है।
घर मेरे आमंत्रण है,
बस याद तुम्हें इतना रखना है
जब जी चाहे आ जाना
द्वार मेरा खुला पड़ा है,
वीरान पड़ी है कुटिया मेरी,
जब जी चाहे आ जाना।
स्वागत है मेरी कुटिया में,
जब जी चाहे आ जाना।
बैठ के संग में बातें होंगी।
भावों की कोई कमी नहीं है
भाव तुम्हें भरपूर मिलेंगे।
कान्हा का भी आना होता है ,
दर्शन तुम्हें कराएंगे।
साथ बैठकर गपशप होगी।
मन मलीनता को दूर करेंगे।
भावों के चूल्हे पर ।
भक्ति की रोटी पकाएंगे।
कविता की थाली में रखकर
आनंद के साथ खाएंगे।
खाने पीने की कोई कमी नहीं है।
मास्टर शेफ बहुत है ।
हर तरह के व्यंजन होंगे ।
जैसा तुम खाना चाहोगे।
आकर वापस जाना पाओगे
साथ यही बसना है हमको।
***"""""****""""स्वागतम्****""""****""""
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