Friday, 19 June 2020

मेरे घर का पता है। जब दिल चाहे आ जाना।।

नाम____निशि द्विवेदी
 शहर किनारे हैं कुटिया मेरी,
एक बार जरूर आ जाना।
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द्वार सदियों से खुला पड़ा है
 जब दिल चाहे आ जाना।

ऊंच-नीच का कोई भेद नहीं है
 ना ही अमीर गरीब का भाव है।

मन की सुंदरता अनिवार्य बड़ी है
 जब दिल चाहे आ जाना।

जलपान में हृदय परोसेंगे।
भोजन में शब्दों के पकवान मिलेंगे।

 जब जी चाहे आ जाना।
ठहरो मेरा पता भी सुन लो ।

कैसे आना है यह जान भी लो।
"फेसबुक" स्टेशन से मेरे घर तक ।

कोई मोड़ मोड़ाओ नहीं है।
"निशा निमंत्रण ग्रुप "चौराहे से,

 मेरे घर तक सीधी गली है।
द्वार तक मेरे आ जाना,

दरवाजे पर कड़ी नहीं है,
निशि नाम है मेरा बस,

 याद तुम्हें इतना रखना है। 
घर मेरे आमंत्रण है,

 बस याद तुम्हें इतना रखना है
 जब जी चाहे आ जाना 

द्वार मेरा खुला पड़ा है,
वीरान पड़ी है कुटिया मेरी,

 जब जी चाहे आ जाना।
स्वागत है मेरी कुटिया में,

 जब जी चाहे आ जाना।
बैठ के संग में बातें होंगी।

भावों की कोई कमी नहीं है
 भाव तुम्हें भरपूर मिलेंगे।

कान्हा का भी आना होता है ,
दर्शन तुम्हें कराएंगे।

साथ बैठकर गपशप होगी।
 मन मलीनता को दूर करेंगे।

भावों के चूल्हे पर ।
भक्ति की रोटी पकाएंगे।

कविता की थाली में रखकर
आनंद के साथ खाएंगे।

खाने पीने की कोई कमी नहीं है।
 मास्टर शेफ बहुत है ।

हर तरह के व्यंजन होंगे ।
जैसा तुम खाना चाहोगे।

आकर वापस जाना पाओगे 
साथ यही बसना है हमको।

***"""""****""""स्वागतम्****""""****""""




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