बोल___प्रकृति भी रो देती है ।
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कभी सोचा है गांव में तालाब ,
और शहरों में समुंदर क्यों होते हैं।
आवादी जितनी घनी,
तकलीफ उतनी बड़ी होती है।
छिप छिप कर रोते हैं लोग,
आंसू दिखा सकते नहीं ।
क्योंकि उनके आंसू पर,
हंसने वालों की कोई कमी नहीं।
जबकि गांव में संस्कारों की,
कमी कोई नहीं होती है।
गांव में पड़ोसी पर दुख पड़ने से ,
पड़ोसी के घर चूल्हा नहीं जलता।
रोने पर संभालने वालों की
कमी भी नहीं होती है।
पाप करने से बचते हैं गांव के लोग,
शहर के तो हाल ना पूछो।
पाप करने से डरते नहीं है लोग,
तोहफे में देते हैं दुख, शोक।
प्रकृति भी रो देती है,
नासमझ देखकर ऐसे लोग।
जमीर को मार कर ही,
ऊंची बिल्डिंग में रहते हैं लोग।
मकान तो बढ़िया मगर सोच ,
घटिया बना लेते हैं लोग।
समुंदर हिलोरे ले कर कुछ समझाता है,
समझते नहीं है लोग।
पाप के समंदर को रोज-रोज,
बढ़ाए जा रहे हैं लोग।
इंसानी कंधों को सीढ़ी ,
बनाकर चढ़े जा रहे हैं लोग।
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