जिसे घर मैं बना सकूं।
चंद लम्हे फुर्सत के,
वहां में बिता सकूं,
हो सकून उतना वहां,
जितना मैं सहन कर सकूं।
कुछ लोग ऐसे चाहिए
जिन्हें परिवार बना सकूं,
हो हरियाली अथाह वहां
फूलों को देखकर झरोखों से
कुछ गीत गा सकूं
कुछ गुनगुना सकूं,
चाय की चुस्की के साथ,
कुछ शाम बिता सकूं,
उगते सूर्य के दर्शन,
पूनम की चांदनी को पा सकूं,
सकून तप्त करें इतना,
कि सुकून से जा सकूं,
स्वरचित____रचनाकार**** निशि द्विवेदी***
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