Tuesday, 11 August 2020

प्रकृति का राज ना जाने पावे , चाहे जितना विज्ञान पढ़ आवै,



कितना ज्यादा बरसा पानी ,
बड़े जोर से बरसा पानी,

 रात रात भर बरसा पानी,
झम झम झम झम बरसा पानी ,

भर गई नदियां भर गई नाले,
 भर गए तालाब और शिवाले ,

मेरे घर के आंगन में भी
 आज थोड़ा भर गया पानी,

बड़ी जोर से बरसा पानी,
 चम चम चम चम बिजली चमकी

 गढ़ गढ़ गढ़ गढ़ बादल गरजे 
और रात भर बरसा पानी 

मेरे घर आंगन में भी
 आज झमक के  बरसा पानी,

बड़ी जोर से बरसा पानी,
प्रकृति के खेल भी बड़े निराले,

 कहीं खिली धूप कहीं पर सूखे,
 और कहीं पर बरसा पानी,

कभी-कभी तो ऐसा होता 
काली घटा अजब छा जाती,

 और जोर से आंधी आती,
बादलों को उड़ा ले जाती,

कड़क कड़क कर बिजली चमकी,
 कड़क कड़क के बादल गरजे,

धरती फिर भी सूखी रह जाती,
प्यास धारा की बुझ ना पाती,

कभी-कभी तो दिल को,
 दर्द का एहसास करा जाता पानी,

गरज गरज कर रोता बादल,
आंसुओं से झड़ी सा बरसा पानी,

मानो दिल चीर कर दिखाता बादल,
आंसू गिराकर दर्द का एहसास दिखाता बादल,

और कभी आनंदित होकर,
झूम झूम कर नाच दिखाता बादल,

कभी आस्था का प्रतीक बन जाता बादल,
सावन की बरसे बदरिया मां की भीगे चुनरिया,

 नवरात्रि में फुहार बरसता बादल,
आस्था विश्वास जगाता बादल,

तानसेन के रागमल्हार पर झूम झूमकर बरसे ,
कभी-कभी तो प्यासी धरती बूंद बूंद को तरसे,

वर्षा का वजूद है बड़ा लुभावना ,
महीने भर बरस कर धरती हरियाली बड़ा जाते,

पूरे बस हरियाली जिस से वंचित रह जाती ,
जबकि यही का जल उठा कर दोबारा बरसाता पानी,

प्रकृति का राज नहीं कोई जाने,
मानव कितना विज्ञान पढ़ जावे,

                                नाम____निशि दि्वेदी




 

No comments:

Post a Comment

खोने का डर

जितनी शिद्दत तुम्हें पाने की थी                 उससे ज्यादा डर तुम्हें खोने का है बस यही है कि तुमसे लड़ती नहीं           तुम यह ना समझना कि...