नमः नारी नारायणी।
पृथम देव दयावान,
द्वतिय नारी कृपायनि,।।
देव विराजे स्वर्ग धाम,
नारी आधार धरा की।
देवों की सर्व श्रेष्ठ कला ,
नारी उपहार धरा की।।
पुरूष दुःखी थे बिन नारी,
सात रंगों से सराबोर थी नारी,
रूप लावण्य से युक्त नारी,
सभी दुखों से मुक्ति नारी,
घनघोर घटा से केश थे काले,
नीले नयन थे बड़े निराले,
सुर्ख लाल होंठों की और,
सुनहरी मुस्कान चेहरे की,
चन्द्रमा सी सुंदर काया,
सूरज सा तेज ललाट,
भुजाएं थीं लताऐं सी,
मदमस्त हिरनी सी चाल,
कोयल सी मीठी बोली,
लगे मोहिनी सी मुस्कान,
मोती से थे दमक रहे दांत,
फूलों सी कोमल मन वाली,
सुन्दर गहनों से लदी थी,
श्रृंगार करे सजी धजी थी,
नीले वस्त्र पहन रखी थी,
घुनधाट निकाले खड़ी थी,
जो करें सम्मान नारी का,
प्रभू प्रेम का अधिकारी है,
नारी देवी का रूप है,
प्यार की प्रति मूर्ति है,
नारी का सम्मान करो,
मत उसका अपमान करो,
नारी है अपराजिता,
रचनाकार का नाम____निशि द्विवेदी
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