मेरी यह कविता सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने की एक कोशिश है।
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मेरा रूठ गया है सपना ।
मेरा रूठ गया कोई अपना।
रेत की तरह कोई मुट्ठी से फिसल गया है।
मेरा अपना कोई मुझे तन्हा कर गया है।
दिल के आशियाने में बिठाया था मैंने।
वही मुझे कुचलकर निकल गया है।
तिनको को चुन चुन कर महल बनाया था।
दिल के फ्रेम में उसका फोटो भी लगाया था।।
लहर की तरह आया, और बिखरा कर चल दिया।
आज मेरा दिल❤️ तिनको में बिखरा पड़ा है।
वादा किया था मैंने ,कि सफर के साथी बनेंगे।
चंद सिक्कों के लिए मुझे छोड़ कर चल दिए।।
कैसे बताऊं मैं ,कैसे तुम्हें जताऊं।
हाथ पैर दीवारों पर पटक रहा हूं।।
चीख चीख कर पुकारू मैं नाम तुम्हारा।
दिल में लिखे नाम को आंसुओं से धो रहा हूं।।
मैं कैसे इसे समझाऊं मैं कैसे तुझे भुलाऊं।
जितना भुलाना चाहा, तू उतना रुलाती है।।
किस्मत वालों के हाथ में होती है वह लकीरे।
मेरे दिल में चुभती है तेरे नाम की लकीर ।।
तन्हा अकेला कर दिया जिंदगी की राहों में।
आज बैठकर समुंदर के किनारे रो रहा हूं।।
चंद सिक्कों के लिए तूने मेरा प्यार ठुकराया
क्या वह सिक्के वह प्यार दे पाएंगे जो मैंने दिया।।
तेरी मासूमियत देख मैंने दुनिया छोड़ी।
तुझे मेरी मोहब्बत रास नहीं आई।।
कहते हैं मोहब्बत एक तरफा नहीं होती।
मैंने दिल से चाहा था , मुझे सजा मिली।।
सुशांत को मिटाया तू भी अशांत रहेगी।
रिया नाम था तेरा तू भी रिहा नहीं होगी।।
स्वरचित रचनाकार का नाम ____निशि दिवेदी
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