Friday, 28 August 2020

तुमको ना भूल पाएंगे,

चांद मुझे बहुत प्यारा था,
 चांद पर बसने का शौक निराला था,

  बहनों ने मुझे चांद पुकारा था,
चांद पर जाने का सपना बड़ा पुराना था,

चांद के जैसा मैंने भी चकोर को चाहा था,
मुझे उसकी उसे मेरी दौलत की चाहत थी,

मैं इस बात से अंजान था ,
मैं उस रात से अंजान था,

जब दर्द से तड़प रहा था,
 चाहत मेरे सामने रही होगी,

सुना है इंसानियत का रिश्ता,
 हर रिश्ते में अपना भाई अपना बेटा ,

ढुंढ ही लेता है,
तो क्या उसका?????? 

लोग मुझे जब मार रहे होंगे,
 हाथापाई तो हुई होगी ,

मैं  चीख, चिल्ला रहा हूंगा,
मैं तड़पा भी ,रोया भी हूं गा ,

मेरे गले में फंदा डाल रहे थे ,
अपराधी मुझको मार रहे थे,

मदद के लिए पुकारा तो होगा,
 तड़पता रहा हूं गा,

कितना संघर्षशील जीवन था मेरा ,
आखरी सांस तक मैं लड़ा तो हूगा।

कितनी निर्दई थी वो आंखें ,जिन्हें दया नहीं आई।
सारे छूट गए वही मेरे अपने, हाथ में तन्हाई आई।।

      स्वरचित रचनाकार का नाम ____निशि द्विवेदी
                                                  ( पिंकी द्विवेदी)  

No comments:

Post a Comment

खोने का डर

जितनी शिद्दत तुम्हें पाने की थी                 उससे ज्यादा डर तुम्हें खोने का है बस यही है कि तुमसे लड़ती नहीं           तुम यह ना समझना कि...