सारा चमन हमारा हो,
तुम चार पंखुड़ी फूलों की,
मेरे ऊपर से गिरा देते।
मैंने कब मांगा था तुमसे,
ज्वेलरी सोने की,
तुम एक फूल ही हंसकर,
मेरे बालों में लगा देते।
मैंने कब मांगी थी तुमसे ,
शिमला सी ठंडक,
साथ बैठकर मेरे संग तुम,
पूनम का चांद निहार लेते।
मैंने कब बोला था तुमसे ,
दौलत का अंबार लगा दो,
तुम साथ बैठकर मेरे,
गीत जुगलबंदी के गा लेते।
मैंने तो बस चाहा था,
मेरे हाथ में हाथ तुम्हारा हो,
साथ बैठकर हमने,
जो भी कसमें खाई थी,
तुम सब कुछ ही भुला बैठे ,
मैं तो भूल ना पाऊंगी।
मैंने कहा सोचा था,
तुम से बिछड़ कर जीने की,
तुम एक बार चले आते ,
हम सब कुछ भुला देते।
मैंने कब मांगा था तुमसे ,
घर आंगन और गलियां हो,
साथ होते तो हम तुम ,
एक आशियाना बना लेते।
साहित्यकार____ निशि द्विवेदी
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