जन्म लिया है आज, एक दिन तो मृत उसे होना है,
मेला है कुम्भ का, एक दिन तो सभी को बिछड़ना है,
ठेला है बस सांसों का, एक दिन तो खड़ा होना है,
चेला है आत्मा , परमात्मारूपी गुरु का उसे होना है,
रेला है रैन बसेरा है, सुबह तलक यहां होना है,
डेरा है कुछ समय का, अब कूच यहां से करना है,
धेला है जिसके पीछे इनसान पड़ा अकेला है,
फेरा है चौरासी का, फिर भी पता सभी को रहता है,
बेरा है किस्मत का , इससे सेवा का मेवा मिलता है,
साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव
साहित्यकार _____निशि द्विवेदी
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