Saturday, 6 February 2021

कोई रचा दो मेरा इस सांवरे से ब्याह

आज मेरा मन बहुत उदास है,
        लगता है वक्त मुझसे नाराज है,
                  कैसे जानू मैं कि क्या बात है,

नहीं लगता है मन कहीं आज,
      दिल में बजता नहीं कोई साज,
              मन करता नहीं करूं किसी से बात,

जो अपने थे करते थे मुझसे बात,
                       आज नहीं करी मुझसे कोई बात,
जो मुस्कुराते थे एक अलग अंदाज,
                            आज कर गय मुझे नजरअंदाज,

यह बेरुखी मेरे समझ नहीं आई,
शायद उनके जीवन में मुझसे भी अच्छी कोई आई,
मिल गया है कोई और मैं समझ नहीं पाई,

जान देकर भी मैं सह लूंगी उनसे जुदाई,
फिर भी जीवन भर देती रहूंगी उन्हें दुहाई,
आश्रु मोती की माला की ना लूंगी मैं पुहाई,

जब भी मिलूंगी कुछ ना बोलूंगी,
राज दिल का कभी न खोलूंगी,
ये बात कभी ना उनको बोलूंगी,

मिल गए राह में कभी तो नजरें फेरूगी,
उनकी सारी यादों को दिल से सजोऊंगी,
हाथ की लकीरों में होगे तो फिर से पा लूंगी,

रग रग में समाए है मेरे जो कान्हा,
अलावा इनके अब नहीं किसी को पाना,

नेत्र मुदित हूं ताकि भटक ना जाऊं राह,
कोई करा दो इस सांवरे से मेरा ब्याह,


साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव___
                            साहित्यकार __निशि द्विवेदी

No comments:

Post a Comment

खोने का डर

जितनी शिद्दत तुम्हें पाने की थी                 उससे ज्यादा डर तुम्हें खोने का है बस यही है कि तुमसे लड़ती नहीं           तुम यह ना समझना कि...