कितनी उदासी मेरे दिल में छाई है,
एक झलक पाने की मैंने गुहार लगाई है,
एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई है,
सोने गई हूं जहां समंदर सी गहराई है,
उदासी को ओड़ा है तन्हाई बिछाई है,
कैसी विडंबना है समझ नहीं आई है,
ख्यालों में जब जब तुम्हारी याद आई है
दिन में चैन नहीं रातों में तन्हाई है,
यादों के गलियारे से तुम्हारी दसतक आई है,
आज दिल ने मेरे तुम्हारी चौपाल लगाई है
तुम भूल गए मुझको या तुम्हारी रुसवाई है,
थक हार कर मैंने तुम्हारी पंचायत बुलाई है,
दिल की अदालत में मुकदमा बिठाई है,
सारे इल्जाम आज तुम पर लगाई है,
निर्दोष बताकर दिल अपना अलग बैठाई है,
हारे अगर तुम यह मुकदमा तो जाने ना दूंगी,
जीत गई अगर मैं तो तुम्हें चैन से जीने न दूंगी,
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