है चलते कैसी चाल,
दिखने में लगते सीधे हैं,
है टेढ़ी-मेढ़ी चाल,
छल प्रपंच से भरे हुए हैं ,
हैं ओढ़े अपनेपन चोला,
मिश्री जैसी बातें करते हैं,
हैं मिर्ची का बम गोला,
मन में मैल भरा हुआ है,
है रंग उनका गोरा,
पाप की भरते बोरी हैं,
है शर्म नहीं उन्हें थोड़ी,
भर भर के करते चुगली हैं,
है छोरा या हो छोरी,
बीबी से झगड़ा करते हैं,
है गैरों से मुस्काते,
मां को चुप कराते हैं,
कहै उन को कुछ बोलो जानु,
चंदा को कहते चंदू हैं ,
है सूरज कहते भानु,
साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव ___
निशी द्विवेदी
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