सबके घर में अब होता है।
उलट-पुलट सा हो गया जीवन,
सबको घर में होना है।
बाहर पड़ गए ताले सब के ,
सब को घर में होना है।
डरा डरा कर रखा सबने,
बाहर खड़ा कोरोना है।।
ऑफिस स्कूल में पड़ गए ताले,
घर पर सबको होना है।
बंद हो गए सारे काम,
घर में होता बस आराम।।
पापा ने सारे कप तोड़े ,
मम्मी ने तो तले पकोड़े।
घर पर सबके दिन-रात
बच्चों के दौड़े घोड़े।।
अटक रही थी सब की सांस,
जाने कितनों ने दम तोड़े।
फोन से हो रही थी बात,
रिश्तो ने नए द्वार खोले।।
घूम रहे थे अपने घर में ,
लगा लगा कर मुंह पर मास्क।
कभी जला रहे थे दीप ,
कभी बजाएं थाली गिलास।।
रात दिन बस एक ही जग ,
कैसे हो कोरोना का अंत।
कोई देश वैक्सीन बनाओ,
इस कोरोना से हमें बचाओ।।
ऐसी महामारी कभी ना आए।
वायरस चोर चाइना को वापस जाए।।
साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव ____
निशि द्विवेदी
No comments:
Post a Comment