Monday, 17 May 2021

मैं अंडा हूं,

मैं अंडा हूं,
 मैं चंगा हूं ,
ना लेता किसी से पंगा हूं,
मैं अंडा हूं ,
 कॉकरोच का,
चिपके हैं कुछ लाईन से,
सरकारी दफ्तर की फाइल से,
मैं अंडा हूं,
मैं अंधा हूं ,
ना देख सकूं मैं कुछ भी,
 मैं ऐसा बंदा हूं,
मैं बंद हूं अपने खोल में,
और फाइल बंद इस कमरे में,
मैं इस फाइल सा मजबूर हूं,
मुझे इंतजार कवर के फटने का,
फाइल को बाबू की जेब भरने का,
मैं दबा इस फाइल से,
 फाइल दबी कई फाइल से,
है यहां कई आते जाते,
कीड़े मकोड़ों जैसे,
चलते फिरते आगे बढ़ते,
मेरे भी और फाइल के करीब भी,
फिर भी ना कोई हाथ लगाता,
मुझे भी और फाइल को भी,
मैं चंगा था ,
मैं अंधेरे में संघर्ष में था,
मैं सुन रहा हूं,
कई सिसकियां,
जो दबी इन फाइलों में थी,
मैं सुन रहा था उनके दर्द को,
जो सच दफन था फाइलों में,
मैं पूछ बैठा इस फाइल से,
क्या सच्चाई है तेरी?
क्यों दबी है यहां अकेली?
वह बोली सुन ध्यान से,
 पिछले 11 सालों से,
मांग रही हूं न्याय ,
खाकी वर्दी वालों ने ,
करे विभिन्न उपाय,
बदल दिए असलाहै,
मैं फाइल हूं विमल मर्डर केस की,
जिसने झगड़ा होने पर पुलिस लियो बुलाए,
थाने से चले दो सिपाही आए,
सतीश ने फिर उनके सामने,
अपनी पिस्टल से गोली दीया चलाए,
पुलिस पकड़ कर ले गई उनको,
और बदल दी असलाहै,
मजिस्ट्रेट ने कह दिया,
यह वह असलाह ना आए,
सच दबा पड़ा फाइल में,
झूठ हंस-हंसकर उत्सव रहा मनाए,
मैं अंडा था,
 मैं चंगा था,
जब तक दुनिया से अनजान था,
मैं संघर्षरत था सच सुनने से पहले,
मैं सुनकर दुखी हो गया हूं,
मैं निष्क्रिय पड़ा हूं,
नहीं देखनी मुझे बाहर दुनिया,
जिस दुनिया में झूठ का बोलबाला,
और सच का मुंह दबा डाला।।।।।

इस सरकार को पैसे देकर, तुमने लिया खरीद।
उस सरकार से न पाओगे ,न मिलेगी भीख।।

विश्व साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव 
___निशि द्विवेदी




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