साथ रहो है निशा का निमंत्रण,
हाथ पकड़ लो कस के सभी का,
सभी को मिला है निशा का निमंत्रण,
कान्हा ने हाथ पकड़ा है मेरा,
आया है मुझको निशा का निमंत्रण, ए दिन के उजालो तू खामोश हो जा,
भेजा है मुझको निशा ने निमंत्रण,
उजालो ने किया है धोखे से घायल ,
लगाया निशा ने मेरे जख्मों पर मरहम,
रोशनी में दर्द को छुपाना है होता,
दिखाया निशा ने मेरे जख्मों को दर्पण,
निशा को किया मैंने आत्मसमर्पण ,
जबसे निशा ने भेजा है मुझको निमंत्रण , दिन के उजाले मुझे रास ना आए,
लगाया है दिल से निशा का निमंत्रण,
गाया है कवियों ने सुबह का वह नगमा,
निशि दिन गांऊ मैं निशा का निमंत्रण, उजालों में लगाया है दुनिया का मेला,
निशा में नहीं ऐसा कोई झमेला,
उजालों ने किया मुझे सबसे पराया ,
निशा ने मुझे अपना बनाया, उजालों में लगे कितने तानों के खंजर,
अंधेरी हो या चांदनी देती अलग ही मंजर , माना कि चोर डाकू और लुटेरे,
निशा को ही तो लगाते हैं फेरे, मंदिर में फेरे हों सुबह सवेरे,
निधिवन में निशा को मेरे कान्हा के मेले,
वृंदावन चलने का देती आमंत्रण ,
आ जाओ भक्तों है निशा का निमंत्रण,
सबस्क्राइब करके लगा लो तुम चंदन,
सभी को मैं देती निशा का निमंत्रण,
दिन के उजालों में शोर बहुत है,
खामोश निशा है देती निमंत्रण,
अगर दिल में तेरे हो प्रेम समर्पण,
लगाओ तुम गोते है निशा का निमंत्रण,
निशि गोपाल का रिश्ता अनोखा ,
दोनों के रंगों का भेद हो जानना ,
तो आ जाओ तुमको है,
मैं देती निशा का निमंत्रण ,
चाह शांति की गर हो दिल में तुम्हारे,
तो आ जाओ तुमको निशा का निमंत्रण,
शांति इतनी कि भूल ना पाओगे ,
कानों से आती है सनसनाहट तुम्हें है निशा का निमंत्रण,
ये आमंत्रण निशदिन देती तुमको, मैं निशा का निमंत्रण ,
निशी द्विवेदी-
अंतर्राष्ट्रीय सचिव
साहित्य सेवा संस्थान कानपुर उत्तर प्रदेश,
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