कैसे जियूं मैं तुम बिन,
मीलों लंबी लगी रातें,
सदियों से लंबा लगे लम्हा,
रुकती चलती रही सांसे,
सब कुछ अधूरा लगे तुम बिन,
महसूस खुद को मैंने ,
कभी नहीं करती तुम बिन,
पहाड़ों से ऊंचा दुख मेरा,
बहुत ऊंचा लगे तुम बिन,
खुद को भी मैं सपना समझती ,
सपना समझती हूं तुम बिन,
साहित्यकार ___ निशि दि्वेदी
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