Tuesday, 27 October 2020

मुझको लगती है बस तेरी बातें प्यारी,

मीठी-मीठी सी याद तुम्हारी आती,
 प्यारी प्यारी सी याद तुम्हारी आती,

 तेरी बंसी की धुन में मैं राम जाती,
तेरी बंसी तो मुझको पागल कर जाती,

तुम्हारी आंखों में मैं खो जाना चाहती,
तेरे चरणों में थोड़ी जगह हूं चाहती,

मैं तो तेरी ही तेरी रहना चाहती,
सांवरे मालिक तुम मैं हूं तुम्हारी दासी,

हर एक चीजों से तुम्हारी अल्पना बनाती,
तेजपत्ता और सौंफ जीरा इलायची,

मिर्ची दालचीनी और बड़ी इलायची,
 तेरे आगे मैं रोज दिया  जगाती,

दीवाली भी तेरी, मैं भी तुम्हारी होली,
कान्हा भर दो ना भर दो मेरी झोली,

निशदिन तेरी ही बस तेरी बातें पाती,
 रोज सवेरे उठकर तेरे गुणगान गाती,

साहित्यकार का नाम___ निशि द्विवेदी

Friday, 16 October 2020

हास्य कलाकार पिंकू दि्वेदी

हंसते हैं,
 हंसाते हैं,
 नाम अपना,
 पंडित जी बताते हैं,
फेसबुक में भी आते हैं
नय नय पोस्ट लगाते हैं,

हंसते हैं ,
बहुत हंसाते हैं,
 यूट्यूब में भी आते हैं,
दुखा दुखा कर पेट हंसाते हैं,
नाम अपना पिंकू द्विवेदी बताते हैं,

खुश रहते ,
 खुशी बढ़ाते हैं,
कानपुर में रहते हैं,
 उन्नाव ग्राम बेहतर बताते हैं,
बिजनेसमैन है टॉप क्लास के,
दिलों में सबके घर बनाते हैं,

सभी वर्गों के प्यारे हैं,
बच्चों की तो जान है वह,
जवानों की भैया कहलाते हैं,
बुढो में भी रम जाते हैं,

देशवासियों की जान हैं पिकू भैया,
हमारे देश की शान है पिंकू भैया,
सबके प्यारे पिकू भैया,
सब कहते हैं पिंकू भैया,

             साहित्यकार ____निशि द्विवेदी


Sunday, 11 October 2020

बस तुम साथ होते।

मैंने कब चाहा था कि,
                           सारा चमन हमारा हो,
तुम चार पंखुड़ी फूलों की,
                             मेरे ऊपर से गिरा देते।
मैंने कब मांगा था तुमसे,
                               ज्वेलरी सोने की,
तुम एक फूल ही हंसकर,
                             मेरे बालों में लगा देते।
मैंने कब मांगी थी तुमसे ,
                                शिमला सी ठंडक,
साथ बैठकर मेरे संग तुम, 
                           पूनम का चांद निहार लेते।
मैंने कब बोला था तुमसे ,
                          दौलत का अंबार लगा दो,
तुम साथ बैठकर मेरे,
                        गीत जुगलबंदी के गा लेते।
मैंने तो बस चाहा था,
                      मेरे हाथ में हाथ तुम्हारा हो,
साथ बैठकर हमने,
                        जो भी कसमें खाई थी,
तुम सब कुछ ही भुला बैठे ,
                             मैं तो भूल ना पाऊंगी।
मैंने कहा सोचा था,
                       तुम से बिछड़ कर जीने की,
तुम एक बार चले आते ,
                            हम सब कुछ भुला देते। 
मैंने कब मांगा था तुमसे ,
                           घर आंगन और गलियां हो,
साथ होते तो हम तुम ,
                         एक आशियाना बना लेते।
                 साहित्यकार____ निशि द्विवेदी

Friday, 9 October 2020

पैसे से ही रिश्ता कैसा?

पैसा पैसा पैसा*****
 हाय पैसा पैसा******
 पैसे के लिए ही """"
ईमान धर्म है बिकता ....
पैसे से है यारी........
 पैसे से है रिश्ता...........
पैसे से ही होता ...
रिश्तो का सौदा......
पैसा पैसा पैसा हाय पैसा पैसा....
पैसा पैसा पैसा वाह रे पैसा पैसा!!!!!!!

चंद कागज़ के टुकड़े .....
और सिक्कों की खनक में .....
लोग बौराय जाते.....
अच्छे लोग भुलाए जाते...
पैसा पैसा पैसा...
 वाह रे पैसा पैसा.......
पैसा पैसा पैसा...
 हाय पैसा पैसा.....

भावनाओं के परिंदे...
 बस धरा पर रेंगते....
पैसे की चमक में ....
लोग अंधे हो जाते ...
पैसों की चमक में...
 बिना पंख के उड़ जाते...

वाह रे पैसा पैसा ....
वाह रे पैसा पैसा!!!!!!
पैसे के लिए ही मां-बाप भुलाए जाते...

 पैसे के लिए ही ...
जाने कितने दिल तोड़े जाते.....
दूर दूर के रिश्ते पैसे से जोड़े जाते ...
और करीब के रिश्ते पैसे के लिए तोड़े जाते...

पैसा पैसा पैसा वाह रे पैसा पैसा...
कैसा कैसा कैसा पैसे से रिश्ता कैसा....
सब को यह पता है ....
फिर भी भूल जाते .....
खाली हाथ आए थे,,,,,
 खाली हाथ ही जाते.....

कैसा कैसा कैसा पैसे से रिश्ता कैसा....
 बस जीते जी का रिश्ता.... 
गिर जाते हैं नीचे ......
कुछ सिक्को के लिए...
हजारों को दुनिया से उठा देते,,,
बस कुछ सिखों के लिए,,,,,,

ऐसा ऐसा ऐसा ....
ऐसा क्यों है होता ,,,,
जन्म की नौछावर से,,,
 अंत तक बस पैसा,,,
 पैसा पैसा पैसा हाय पैसा पैसा,,,,,,,
 पैसा पैसा पैसा पैसे से ही रिश्ता

            साहित्यकार ___ निशि द्विवेदी

Monday, 5 October 2020

शरारत खो गई है कहीं चलो मिलकर ढूंढो,

शरारत की ही नहीं मैंने,
 मुझसे हो गई है,
बचपन में होती थी ,
अब कहीं खो गई है,
चलो मिलकर ढूंढो,
लगता है कहीं सो रही है,
 शरारत कर जिस आंचल में छुप जाती थी,
जाकर मां के आंचल में ढूंढी,
 नहीं मिली,
सखियों से बोला मेरी शरारत कहीं खो गई है,
वह बोली बाद में बात करना अभी मैं व्यस्त हूं,
बच्चों से पूछा मेरी शरारत कहां गई है,
वह बोले तेरी तो पता नहीं ,
मेरी तो बसते के नीचे दबी पड़ी है,
पड़ोसी को बोला मेरी शरारत कहीं चली गई है,
वह बोले बाद में बात करेंगे अभी समय नहीं है,
थाने गई मैं रपट लिखाने,
मैं बोली मेरी शरारत मिल नहीं रही है,
दरोगा बोले क्या क्या साथ लेकर गई है ,
मैं बोली जब से शरारत गई है,
 मेरी हंसी को साथ ले गई है,
 खुशी भी कहीं मिल नहीं रही है,
उदासी मेरे घर में बिखरी पड़ी है,
वह बोले रिश्तेदारों को फोन करके पूछो,
उनके घर तो नहीं चली गई है,
मैं बोली ना उनकी भी जिम्मेदारियों में दबी पड़ी है,
सब के फोन आ रहे हैं मेरे पास बारी-बारी ,
उनकी भी कहीं खो गई है, कहीं चली गई है,
वह बोले 24 घंटे ढूंढ लो, मिल जाए तो बता देना,
मैं उदास आंखों से ढूंढ रही थी,
मेरी शरारत मुझे कहीं नहीं मिल रही थी,
उदासी की चादर ओढ़ के जब मैं घर आई,
मुझे थोड़ी उबासी आई,
बस थोड़ी पलक झपकाए
अगले ही पल मेरी आंखें पति से जा टकराई,
हमारी नजरें आपस में टकराई,
चेहरे पर मुस्कुराहट आई,
मैंने मेरी मुस्कुराहट वापस पाई,
फिर जो हुआ बस कहना क्या था,
उनकी आंखों में शरारत ने डेरा डाला था,
एक फूल मेरी ओर शरारत से फेंका,
बस फिर क्या था मैंने भी पूरा गुलदस्ता ,
उन पर दे मारा,
और अपनी शरारत को वापस पाया,
 मैं भाग रही थी आगे आगे,
और पूरा घर मेरे पीछे पीछे ,
बच्चे भी संग भाग रहे थे ,
सब मिलकर पकड़ो पकड़ो खेल रहे थे ,
यह मेरी शरारत ही तो थी ,
जो उम्र का लिहाज छोड़ कर
 बस मस्ती से भागे जा रही थी,
मुस्कान हंसी ठिठोली साथ लेकर,

खोने का डर

जितनी शिद्दत तुम्हें पाने की थी                 उससे ज्यादा डर तुम्हें खोने का है बस यही है कि तुमसे लड़ती नहीं           तुम यह ना समझना कि...