Monday, 15 February 2021

विश्वकीर्ति

दोस्तों विश्वकीर्ति एक बहुत ही खूबसूरत महिला के संघर्ष की कहानी है स्नो वाइट की जैसी खूबसूरत दूध जैसे सफेद, रूप रंग और  सब कुछ दिया ईश्वर ने बस किस्मत से ही कमजोर दिया। उसके संघर्ष की कहानी
क्या होता है आगे देखते हैं_______

 मिडिल क्लास फैमिली में जीवन यापन करने वाली उर्मी शादी को पांच वर्ष हो चुके हैं एक चार साल का बेटा है दूसरा बच्चा चाहने की मंशा में डॉक्टरों से इलाज ले रही थी परंतु कुछ ना हुआ , एक दिन किसी ने कहा कि प्रदोष का व्रत करें शिव जी की कृपा से उसके घर में  बच्चा आएगा।
ऊर्मी ने व्रत रहना शुरू किया वह प्रत्येक प्रदोष को शिव जी के मंदिर जाती है पूजन करती और उनसे प्रार्थना करती उसका पुत्र सोनू भी उसके साथ जाता शिवलिंग पर जल अर्पण करता और दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हे भोलेनाथ मुझे भी एक बोलने वाला बबुआ दे दो जो मेरे हाथों में राखी बांधे और मेरे साथ खेले दादी मुझे ताने मारती है बड़वा कहती है।
भोलेनाथ तो भोले थे अबोध बालक की प्रार्थना सुन ली और उर्मी का गर्भ ठहर गया ।
 ससुराल में सभी उसको ताने मार रहे थे ज्यादा सो मत नहीं तो बेटी हो जाएगी,बाया पैर नहीं दाया पैर आगे बढ़ाओ नहीं तो बेटी हो जाएगी, बासी रोटी खाओ बच्चे के बाल बहुत अच्छे होंगे ,सभी को घर में उर्मी से यही आशा थी कि वह पुत्र को जन्म दे । उर्मि हर बात को हंसी में टाल देती ,नव महीने गर्भ से है ,ससुराल में सास ननंद उस दिन का इंतजार कर रही हैं ।
धीरे-धीरे दिन करीब आ रहे थे उर्मि को दर्द हो रहा था हॉस्पिटल गई और एक लड़की का जन्म होता है।
डॉक्टर चंद्रकांता( बहुत सुंदर थी उन्हें सुंदरता का खिताब भी मिल चुका था मिस इंडिया रह चुकी थी) प्रसूति उन्हीं के हाथों से होती है,बहुत खूबसूरत परियों सी सुंदर बच्ची को हाथ में लेते हुए उनके मुंह से यकायक निकल गया, लक्ष्मी आई है यह बच्ची विश्व में नाम करेगी इसकी कीर्ति चारों दिशाओं में रोशनी की तरह फैलेगी इसका नाम विश्वकीर्ति रखना।
बेटी के जन्म से मां-बाप और पूरे परिवार में एक गम का माहौल सा छा गया ,सभी लोगों ने माथा ठोका बेटी के जन्म से दहेज की चिंता होने लगती है।
लेकिन उस नवजात शिशु के मन पर क्या बीत रही  उसके कदम रखते ही घर में गम का माहौल सा छा गया।
नर्स बच्चे को लेकर उर्मी की सास के पास जाती है और कहती है लक्ष्मी आई है नेक दो।
सासू झुललाकर कहती है लक्ष्मी है तो तुम ही रख लो , बेटा होता तो देती बेटी है क्या दूं मैं तुझे और क्या रखूं इसके दहेज के लिए तू यहां से जा और इसे भी ले जा!
 कदम बढ़ाते हुए वापस अपने घर आ जाती है ंं
नर्स बच्चे को लेकर पिता के पास जाती है कहती है लक्ष्मी आई है खुशहाली के रूप में कुछ पैसे दीजिए,
पिता माथा ठोकते हुए कहते हैं क्या खुशी क्या गम मैं क्या दूं समझ नहीं आता बेटी का बोझ में कैसे उठा पाऊंगा ।सर झुकाना पड़ेगा, दूसरों के द्वार जाना पड़ेगा ,पाव छूने पड़ेंगे ,गिड़गिड़ाना पड़ेगा, नाक रगड़ना पड़ेगा
जीवन भर की कमाई तो देनी ही पड़ेगी साथ में सुख दुख में परेशान होना पड़ेगा सुख मिला तो ठीक और दुख मिला तो जी नहीं पाऊंगा समझ नहीं आता क्या होगा।
पिता को दुखी देखकर नर्स वापस आ गई कुछ बिना बोले क्या बोल सकती थी वह भी परेशान हो गई।
नवजात शिशु के ह्रदयपटल पर इन सब बातों का बहुत बुरा असर पड़ रहा था नर्स ने बच्चे की ओर देखा आंखें खोल कर सब सुन रही थी नर्स ने बड़े प्यार से उसकी ओर देखा बच्ची पर हाथ फेरते हुए दुखी हो गई। ‌
बच्ची ने अपनी आंखें बंद कर ली ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह मन ही मन ईश्वर से वार्तालाप कर रही है।
हे ईश्वर ये मुझे कहां भेज दिया जहां धन का इतना अभाव है वहां आपने और तकलीफ बढ़ा दी ।्
उर्मी बच्चे के साथ तीन दिनों तक हॉस्पिटल में रहती है
सभी बस मजबूरी बस उससे मिलने जाते हैं किसी के चेहरे पर खुशी नहीं थी केवल डॉक्टर दीदी बड़ी खुशी खुशी आती थी बच्ची को खिलाती थी हालचाल पूछती थी और चली जाती थी उनके छूने से बच्चे को खुशी मिलती थी। आज उर्मी का बेटा सोनू अपनी बुआ की गोद में आता है अपनी बहन को देखकर खुशी से उछल पड़ता है नर्स उसे उछलते खेलते देखकर खुश होती है और पूछती है, यह बेबी कौन है तुम्हारा.....?.
सोनू से पकड़ते हुए जवाब देता है..... !!!!मेरी बहन है ,भोलेनाथ ने दिया है ,मैंने उनसे मांगा थ !!
नर्स ने सामने लेटी दूसरी महिला की ओर इशारा करते हुए कहा यह बेबी मुझको दे दो वह वाला बेबी तुम लोगे?
वह बेटा है जब तुम बड़े हो जाओगे तुम्हारे साथ खेलेगा तुम्हारे साथ पढ़ने जाएगा ,यह बहन हमको दे दो !!!!तुम्हारे साथ नहीं खेल पाएगी बहुत छोटी है;
तभी सोनू ने तपाक से जवाब दिया नहीं वह बबुआ तो काला काला है, मेरी बहन गोरी गोरी है मैं नहीं बदलूंगा अपनी बुआ से कहता है इसको बैग में रखकर अपने घर ले चलो नहीं तो कोई ले लेगा। यह बड़ी मुश्किल से मुझे मिली है मैंने मांगी है।
नर्स .....  नहीं अभी तुम इसे अपने घर नहीं ले जा सकते अभी इसको इंजेक्शन लगना है और डॉक्टर ने भी ले जाने से मना किया है। 
सोनू....._तो मैं भी यहीं रहूंगा ताकि कोई से चुरा ना ले जाए।
(उन दोनों की खींचातानी को देखकर सभी खुश हो रहे थे बस 3 दिनों बाद हॉस्पिटल से छुट्टी होती है सोनू अपनी बहन को लेकर भाग जाता है और बहुत खुश होता है बच्चे की खुशी देखकर सभी खुश थे घर में किलकारियां गूंज रही थी छोटे बच्चे की रोने की आवाज आ रही थी बच्चे की रोने की आवाज से आंगन गूंज उठा था)
मन दुखी था लेकिन सारे रीति रिवाज चल रहे थे वह खुशी ना थी जो सोनू के पैदा होने पर हुई थी।
बच्ची दिनों दिन बढ़ती जा रही थी और घर में लक्ष्मी भी बढ़ती जा रही थी पिता के कारोबार में तो तरक्की होने लगी थी सभी कह रहे थे बेटियां अपने भाग्य का लेकर आती हैं।
तभी अचानक एक आदमी आता है उर्मी के पति के हाथों में एक लिफाफा थमाते हुए कहता है__
भाई यह लो तुम्हारे ₹पाच हजार मुझे अचानक पैसे की जरूरत पड़ गई थी मैं तुमसे कर्ज लेकर अपने गांव चला गया था। मेरी मां बहुत बीमार थी अब वह ठीक है मैं गांव से वापस आ गया हूं कुछ बचे हुए पैसे हैं जो मैं तुम्हें वापस कर रहा हूं अपनी अमानत संभाले ।
उर्मी का पति__ क्या भाई ऐसा भी कोई करता है मैंने माल लेने के लिए पैसे आपको दिए थे आपने माल भी नहीं पहुंचाया और पैसे भी नहीं दिए आप समझ नहीं सकते हम इतने दिनों से कितनी तकलीफ उठा रहे थे। मुझे कहीं से माल नहीं मिला पत्नी भी हॉस्पिटल में एडमिट हो गई इलाज के लिए पैसे ब्याज पर लेने पड़े मुझे अरे कम से कम जाने से पहले बता तो देते मैं नहीं था तो दुकान के आसपास लोगों को बता देते संदेश तो पहुंचा देते हैं ऐसा कोई करता है।
  शर्मिंदा होकर क्षमा मांगता और वापस चला जाता है।
सभी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है खोया हुआ पैसा एकदम से मिल जाए यह तो वही बात हो गई की भगवान देता है तो छप्पर फाड़कर देता है।
तभी उर्मी अपने पति से कहती है कि देखिए हमारी बेटी कितनी भागयशाली है आते ही उसने आपके पैसे को वापस दिलवा दिया इससे बड़ा और क्या सबूत हो सकता है की बेटियां लक्ष्मी का रुप होती हैं।
आंख में आंसू भर कर अपनी बेटी को गोद में लेकर उस पैसे के ऊपर अपनी बेटी को लिटाते हुए उर्मी का पति कहता है मेरी बेटी लक्ष्मी का रूप नहीं साक्षात लक्ष्मी है अब वह इसी लक्ष्मी पर लेटेगी। आज उसकी छट्टी है और यह खोया हुआ पैसा सारा इसका है मैं इसे बैंक में जमा कर दूंगा यह पैसा मेरी बेटी की शादी में काम आएगा।

बेटी चंद्रमा की कला की तरह धीरे-धीरे बढ़ने लगती है और जितनी बड़ी होती है उतनी ही खूबसूरत होती है उसके रूप रंग को देखकर सभी अचंभित हो जाते हैं और कहते हैं यह डॉक्टर चंद्रकांता के हाथों का असर है उनके हाथों से जन्म लिया है बहुत सुंदर बेटी है। लोगों की बातों को काटते हुए उर्मी की सांस कहती है खूबसूरत बेटी से अच्छा बदसूरत बेटा होता है होता तो आखिर बेटा ही होता है बेटी किस काम की घर खालीकर चली जाती है।
कुर्मी का पति अपनी मां को चुप कराते हुए कहता है__
अम्मा अब बस भी करो मेरी बेटी बहुत नाम कमाए गी मैं उसे डॉक्टर बनाऊंगा आंखिर डॉक्टर चंद्रकांता भी तो एक महिला ही है वह भी तो किसी की बेटी है। हंसते हुए कहता है___तुम भी तो किसी की बेटी हो अगर तुम ना होती तो हम सब लोग कहां से होते हैं माना कि बेटा वंश चलाता है लेकिन उस वंश को जन्म देने के लिए तो बेटियां ही होती हैं।




आज तुम्हारी चिट्ठी आई

आज तुम्हारी चिट्ठी आई,
पिया मिलन की याद दिलाई
भूल गई मैं ऋतुएं सारी,
 बड़े जोर से मैं मुस्काई,

तुम बिन बदरंग जिंदगी
 सावन से बसंत ऋतु आई,
आंखों में वर्षा,
 उमंगों में पतझड़, 
होली भी बेरंग, 
और दिवाली पर दिल जलाए,

आज तुम्हारी चिट्ठी आई,
 लिखा नहीं कहीं पर भी था,
वापस कब तुम आओगे,
सूने मेरे घर आंगन को ,
कब-तक तुम महकाओगे,

आज तुम्हारी चिट्ठी आई,
खुशियों की सौगात है लाई,
जब से गए परदेस को साजन,
सूना पड़ा है घर और आंगन,
अब तो लौट आओ मेरे साजन,

आज तुम्हारी चिट्ठी आई ,
चंदन की खुशबू लाई,
क्या करोगे इतना धन,
 सूना पड़ा मेरा जीवन,
तुम बिन अब रहा न जाए,

 अबकी करो कुछ ऐसा वादा ,
कि अगले सावन साथ ही खेले,
 ऐसा ना हो कि बिना तुम्हारे ,
सावन मेरी जान ही ले ले,

विश्व साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव _____                                 निशि द्विवेदी

Saturday, 13 February 2021

बचपन की यादें करो तुम ताजा

बेटी बनकर जन्मी हूं,
                             बेटी को ना जीवन देना चाहूंगी।
जो दिन जीवन में अपने देखें,
                             बेटी के जीवन में ना चाहूंगी।
सुना था पापा रो पड़े थे,
                               मेरा जन्म सुनने के बाद।
सब ने माथा ठोका था ,
                               मेरा जन्म होने के बाद।
मां को भी था देखा उदास  ,
                            बेटा होता तो बधाई मिलती ,
  नर्स भी बैठी थी उदास,
                               बड़ा रूआना मंजर था,
      सभी बैठे थे उदास,
                               टुकुर-टुकुर मैं देख रही थी ,
नहीं बोल पाई कोई बात,
                                 गोद में लेकर भैया को,
    उसी समय बुआ आई,
                                गोद में लेकर भैया बोले ,
    मेरी प्यारी बहना आई,
                                 बड़ा सुहाना मंजर था,
 मैं तो फूली नहीं समाई,
                               डॉ चंद्रकांता की गोद,
मैं सबसे पहले आई थी,
                   तीन दिन बाद घर की देहरी पाई थी,
बड़ा सुहाना मंजर था ,
                             बड़ा लुभावना मंजर था,
गोद में सभी उठा रहे थे,
                              मेरी आंखों में झांक रहे थे।
पिंकी पिंकी पुकार रहे थे ,
                              तब जानी मै मेरा पिंकी नाम।
पापा का बिजनेस दौड़ा,
                               सब बोले घर लक्ष्मी आई।
 पापा ने मुझे गोद उठाया ,
                                 बोले घर में लक्ष्मी आई।
 मोहनी मुस्कुराहट से मैंने ,
                                जीत लिया था सब का दिल,
थोड़ी-थोड़ी जब बड़ी हुई ,
                                रिश्ते नातों की झड़ी लगी।
कोई कहलाए बुआ मासी,
                                 कोई कहे मैं हूं तेरी चाची।
जोर-जोर से ढोल बजे,
                               जिस दिन मेरी छठी मने।
सोहर के सुर घर में बोले,
                               बाहर बंदूक पटाखे बोले।
गुब्बारे का बंदर बनवाकर ,
                                रोज़ एक पापा लाते।
मुंह में मेरे आम चटाकर ,
                               दादा मुझको रोज हंसाते।
बुआ ,चाचा का पाया प्यार,
                               सभी का पाया बहुत दुलार। मौसी ,मामा का भी पाया प्यार,
                                  जब-जब गई मैं ननिहाल।
खिलौनों का घर में बन गया स्टोर,
                            सारी दुनिया में मच गया शोर। 
बस्ता लेकर भैया मेरे ,
                           रोज स्कूल चले थे जाते।
लौट स्कूल से जब घर आते ,
                               मेरे लिए घोड़ा बन जाते ।
बाज बजाकर डिब्बा घर में,
                                  सबको गाना खूब सुनाती।
गाना बजाना सब गई भूल,
                                  एक दिन मैं भी चली स्कूल।
पाइनएप्पल की बोतल मेरी ,
                                     आर्मी मैन का बैग।
ब्लू कलर की यूनिफार्म ,
                                सूज रूमाल और टाई बेल्ट।

   




Thursday, 11 February 2021

कोरोना वापस कभी ना आना,लौट चायना जाना।।

अब तक जो बाहर होता था ,
             सबके घर में अब होता है।
उलट-पुलट सा हो गया जीवन,
                  सबको घर में होना है।

बाहर पड़ गए ताले सब के ,
                 सब को घर में होना है।
डरा डरा कर रखा सबने,
                बाहर खड़ा कोरोना है।।

ऑफिस स्कूल में पड़ गए ताले, 
                  घर पर सबको होना है।
बंद हो गए सारे काम,
                घर में होता बस आराम।।

पापा ने सारे कप तोड़े ,
                मम्मी ने तो तले पकोड़े।
घर पर सबके दिन-रात 
                 बच्चों के दौड़े घोड़े।।

अटक रही थी सब की सांस,
                     जाने कितनों ने दम तोड़े।
फोन से हो रही थी बात, 
                    रिश्तो ने नए द्वार खोले।।

घूम रहे थे अपने घर में ,
                  लगा लगा कर मुंह पर मास्क।
कभी जला रहे थे दीप ,
                    कभी बजाएं थाली गिलास।।

रात दिन बस एक ही जग ,
                     कैसे हो कोरोना का अंत।
कोई देश वैक्सीन बनाओ,
                    इस कोरोना से हमें बचाओ।।

 ऐसी महामारी कभी ना आए।
वायरस चोर चाइना को वापस जाए।।

साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव ____
                                                   निशि द्विवेदी

सीधे-साधे लोग , टेढ़ी-मेढ़ी चाल,

कैसे-कैसे लोग यहां पर है,    
                                है चलते कैसी चाल,
    दिखने में लगते सीधे हैं,
                                है टेढ़ी-मेढ़ी चाल,
   छल प्रपंच से भरे हुए हैं ,
                                हैं ओढ़े अपनेपन चोला,
  मिश्री जैसी बातें करते हैं, 
                                हैं मिर्ची का बम गोला,
    मन में मैल भरा हुआ है,
                                 है रंग उनका गोरा,
      पाप की भरते बोरी हैं,
                                 है शर्म नहीं उन्हें थोड़ी,
भर भर के करते चुगली हैं,
                                 है छोरा या हो छोरी,
    बीबी से झगड़ा करते हैं,
                                  है गैरों से मुस्काते,
        मां को चुप कराते हैं,
                              कहै उन को कुछ बोलो जानु,
      चंदा को कहते चंदू हैं , 
                                 है सूरज कहते भानु,

साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव ___
                                   निशी द्विवेदी




Wednesday, 10 February 2021

छोड़ गये,तो मेरी यादों में रहोगे!

मेरी जिंदगी मुझे कहा लेकर आई है,
कितनी उदासी मेरे दिल में छाई है,

एक झलक पाने की मैंने गुहार लगाई है,
एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई है,

सोने गई हूं जहां समंदर सी गहराई है,
उदासी को ओड़ा है तन्हाई बिछाई है,

कैसी विडंबना है समझ नहीं आई है,
 ख्यालों में जब जब तुम्हारी याद आई है

दिन में चैन नहीं रातों में तन्हाई है,
यादों के गलियारे से तुम्हारी दसतक आई है,

आज दिल ने मेरे तुम्हारी चौपाल लगाई है
तुम भूल गए मुझको या तुम्हारी रुसवाई है,

थक हार कर मैंने तुम्हारी पंचायत बुलाई है,
दिल की अदालत में मुकदमा बिठाई है,

सारे इल्जाम आज तुम पर लगाई है,
निर्दोष बताकर दिल अपना अलग बैठाई है,

हारे अगर तुम यह मुकदमा तो जाने ना दूंगी,
जीत गई अगर मैं तो तुम्हें चैन से जीने न दूंगी,

साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव ___निशि द्विवेदी

Saturday, 6 February 2021

कोई रचा दो मेरा इस सांवरे से ब्याह

आज मेरा मन बहुत उदास है,
        लगता है वक्त मुझसे नाराज है,
                  कैसे जानू मैं कि क्या बात है,

नहीं लगता है मन कहीं आज,
      दिल में बजता नहीं कोई साज,
              मन करता नहीं करूं किसी से बात,

जो अपने थे करते थे मुझसे बात,
                       आज नहीं करी मुझसे कोई बात,
जो मुस्कुराते थे एक अलग अंदाज,
                            आज कर गय मुझे नजरअंदाज,

यह बेरुखी मेरे समझ नहीं आई,
शायद उनके जीवन में मुझसे भी अच्छी कोई आई,
मिल गया है कोई और मैं समझ नहीं पाई,

जान देकर भी मैं सह लूंगी उनसे जुदाई,
फिर भी जीवन भर देती रहूंगी उन्हें दुहाई,
आश्रु मोती की माला की ना लूंगी मैं पुहाई,

जब भी मिलूंगी कुछ ना बोलूंगी,
राज दिल का कभी न खोलूंगी,
ये बात कभी ना उनको बोलूंगी,

मिल गए राह में कभी तो नजरें फेरूगी,
उनकी सारी यादों को दिल से सजोऊंगी,
हाथ की लकीरों में होगे तो फिर से पा लूंगी,

रग रग में समाए है मेरे जो कान्हा,
अलावा इनके अब नहीं किसी को पाना,

नेत्र मुदित हूं ताकि भटक ना जाऊं राह,
कोई करा दो इस सांवरे से मेरा ब्याह,


साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव___
                            साहित्यकार __निशि द्विवेदी

खोने का डर

जितनी शिद्दत तुम्हें पाने की थी                 उससे ज्यादा डर तुम्हें खोने का है बस यही है कि तुमसे लड़ती नहीं           तुम यह ना समझना कि...