Sunday, 27 September 2020

नफरत छोड़ शांति को बड़ा डालो

ऊंचे ऊंचे घर तो बन गए
दिल में जगह छोटी पड़ गई
हमको अब यह करना है, 
माटी से ही बने हम हैं ,
माटी में हमको मिलना है
माटी में हमको मिलना है।

ईर्ष्या द्वेष से भूलकर हमको,
छोड़ द्वेषभावों को अपने,
सबके दिलों में हमको रहना है,
खोल दिलों के द्वारों को अपने,
अपनों के दिलों में हमको बसना है,
दिलों में हमको बसना है।

पहले सोते थे हम जल्दी ,
और सुबह जग जाते थे,
चकाचौंध आराम में हम तो ,
भूल गए वह बातें सारी,
अपनी मस्ती में हम रहते,
 खुशियां सभी से छुपाते हैं,

वह भाईचारे की बातें ,
मिलकर साथ बैठते थे ,
 सोते जागते खाते पीते 
और साथ हम रहते थे,
एहसान में दबकर सब मिल,
 साथ काम हम करते थे,

लड़ते थे झगड़ते थे ,
लाठी डंडे चलते थे ,
और फिर हो एक जाते थे 
आज चलाकर गोलियां हम,
क्रूर बहुत बन जाते हैं,

भारत मां के लाल हो तुम,
काम इतना कर डालो
भारत मां के बेटों तुम
कुछ ऐसा काम कर डालो
अपने-अपने दिलों से भैया,
 नफरत को मिटा डालो 
नफरत को मिटाना लो,




Friday, 18 September 2020

कभी न जागूं ऐसी नींद सुला दे,

हे कन्हैया मुझे मौत की नींद सुला दे,
मेरी मौत थोड़ा ज्यादा बेहतर बना दे,

 कभी न जागूं ऐसी नींद मुझे सुला दे,
सारे जहां को मेरे ना होने की बात बता दें,

मेरे घर के बाहर थोड़ी भीड़ तो लगवा दे,
 मरने के बाद भी खुली रहे आंखें मेरी,

खुली आंखों से सनम का दीदार करा दे,
इसी बहाने मुझे मेरे महबूब से मिला दे,

 जो कतराते हैं मुझसे बात करने में,
उन्हीं के कांधे पर मुझे उठवा दे,

जिनकी यादों में हम रात भर रोते हैं,
उन्हें भी मेरी याद में उतना ही रुला दे,

जिन हाथों से चाहा था उठवाना घुंघट,
उन्ही हाथों से मेरा चेहरा ढकवा दे,

वरमाला नहीं हुई तो क्या हुआ ,
अर्थी पर ही मेरे हार पहनावा दें,

इजहार ए मोहब्बत के लिए ,
फूल लेकर दौड़ी हूं मैं जिनके पीछे ,

आंखों में आंसू भर कर रोते हुए,
उन्हें मेरे चौथे पर फूल लेकर भिजवा दें,

जीवन में साथ जिनके रह पाई नहीं,
प्रेत बन कर जीवन भर डराऊंगी,

कोई जाकर उन्हें इतना तो बतला दे ,
मरकर काले साए से डराऊंगी मैं,

जिन्हें रहम नहीं मेरी मासूमियत पर,
काला साया बनकर रहम ना खाऊंगी मैं,

भविष्य में साथ ना मिला अगर,
भूत बन कर सदा साथ निभाऊंगी मैं,

चाहत ने जिनकी शायर बना दिया,
यह खबर उन तक पहुंचवा दे,

हे कन्हैया ,
मुझे इतना सबल कर,कि मैं उनको उठा लूं,
 या फिर उनके हाथों से मुझे ही उठवा दे,

                 साहित्यकार____ निशि द्विवेदी 
                                          पिंकी दिवेदी

Wednesday, 16 September 2020

तुम बिन रहा न जाए,

तुम बिन रहूं मैं कैसे ,
    कैसे जियूं मैं तुम बिन,

           मीलों लंबी लगी रातें,
                 सदियों से लंबा लगे लम्हा,

                         रुकती चलती रही सांसे,
                              सब कुछ अधूरा लगे तुम बिन,

महसूस खुद को मैंने ,
   कभी नहीं करती तुम बिन,

       पहाड़ों से ऊंचा दुख मेरा,
            बहुत ऊंचा लगे तुम बिन,

                  खुद को भी मैं सपना समझती ,
                       सपना समझती हूं तुम बिन,

                           साहित्यकार  ___  निशि दि्वेदी

Tuesday, 15 September 2020

राधे के चरणों में ही हम जिएंगे।

तुम्हारे लिए ही हम बने हैं,
 तुम बिन नहीं जी हम सकेंगे,

                  दुनिया हमें भुला ना सकेगी,
                  जुबां से सदा राधे-राधे कहेंगे,

राधे राधे ओ मेरी राधे,
 राधे राधे प्यारी राधे,

               राधे बिना श्याम कितना अकेला,
              तुम कहो छोड़ दूं मैं दुनिया का मेला,

कन्हैया कन्हैया प्यारे कन्हैया,
पार लगा दो तुम मेरी नैया,

               सारी दुनिया में लगाते हो फेरा ,
                  मेरे हृदय में डालो तुम डेरा,

श्याम बिना राधा कुछ भी नहीं,
राधा बिना श्याम कुछ भी नहीं,

                    राधे राधे जपो बिहारी मिलेंगे,
                     बिहारी जपो तो राधे तुम्हारी,

तुम को ही चाहता है दिल,

साजन बिन रहूं मैं कैसे ,
    कैसे जियूं मैं तुम बिन,

           मीलों लंबी लगी रातें,
                 सदियों से लंबा लगे लम्हा,

                         रुकती चलती रही सांसे,
                              सब कुछ अधूरा लगे तुम बिन,

महसूस खुद को मैंने ,
   कभी नहीं करती तुम बिन,

       पहाड़ों से ऊंचा दुख मेरा,
            बहुत ऊंचा लगे तुम बिन,

                  खुद को भी मैं सपना समझती ,
                       सपना समझती हूं तुम बिन,

                           साहित्यकार  ___  निशि दि्वेदी

Sunday, 13 September 2020

नहीं दूर का रिश्ता,

मेरे सांवरे ,
    मेरे सांवरे ,
        मेरे सांवरे ,
           ओ मेरे सांवरे,

नहीं था दूर का रिश्ता,
     कोई अपना नहीं थे तुम ,
          बड़ा महंगा पड़ा था इश्क ,
                     मेरा सपना हुए थे तुम,

लगाकर हाथ तुमको बस,
     तुम्हें मैं महसूस करती थी,
           ना तुम कुछ बोले ,
                  ना हम ही कुछ कहते थे,

बैठ कदम के नीचे ,
   तेरी राह मैं तकती थी,
        जुबा खामोश रहती थी,
              निगाहें बात करती थी,

मेरे पांव की पायल भी,
     तुम्हें तो याद होगी ही,
          मेरे हाथों की चूड़ी भी तो,
                खन खन खन खन करती थी,

सांवरे रूप तेरा तो,
    मुझे पागल बनाता था,
       तुम्हारी याद में जी कर,
             पल पल मैं तड़पती हूं,

मेरी हर सांस रो रोकर,
     तुम्हें बहुत याद करती है,
           कन्हैया मिल जाओ मुझको,
                  जरा सी बात करनी है।

तुम्हारी याद में जिंदा हूं,
      मैं तो मर नहीं सकती,
         तुम्हारी याद में जिंदा हूं ,
                या तुम भूल गए मुझको,

Friday, 11 September 2020

नारी हूं मैं ,मेरा भी तो, आजादी का दिल करता है।

नारी हूं मैं,
 मेरा भी तो ,
जीने का मन करता है,

गर्भ समय से कैद में थी,
 कभी तो खुलने का ,
मन करता है,

पापा बोले बेटी नहीं ,
बेटा हूं मैं,
फिर भी दिल में,
 डर रहता है,

मां कहती तू ,
बाहर मत जा ,
क्योंकि तू बेटी है,

अकेली नहीं तु ,
भाई संग जा,
क्योंकि तू बेटी है,

कितनी ही बड़ी ,
तु हो जा,
बाहर बहुत दरिंदगी है, 

मैं नारी हूं 
मैं दर्पण हूं ,
मैं प्रेम और समर्पण हूं

मैं बहन हूं ,
मैं बेटी हूं ,
अपने प्रिय की अर्धांगिनी हूं,
और मैं एक मां भी हूं,

जिस तन से पुरुष ने,
 जनम लिया है,
वह मंदिर है,
 वह मस्जिद है,
 वह गिरजाघर ,
और गुरुद्वारा है ,

क्यों हवस की,
 वेदी पर नारी चढ़ती ,
जीवित और मृत अवस्था में,

 क्यों अपमान,
 सह कर भी चुप रहती ,
समाज की कर्कशता में,

क्यों ,
बिना किसी अपराध के ,
किसी गरीब की बेटी जलती,

क्यों, 
कानून के दफ्तर में ,
यह सारी फाइल दबती,

क्यों ,
मासूम को,
 तिरस्कार है मिलता,
जो करती कोई अपराध नहीं,

क्यों,
 भारत मां के चरणों में,
 नारी की कुर्बानी होती,

क्यों , 
अपराधी को ,
छत्रछाया मिलती है,
राजनीति के सिपासलारोँ से,

वासना से परे होकर देखो,
 नारी सा कोई मित्र नहीं,

नारी हूं मैं,
 मेरा भी तो ,
जीने का मन करता है,

पिंजरे में ,
मैं कैद पड़ी हूं ,
उड़ने का मन करता है,

थोड़ी ,
मुझे आजादी दो,
 पंख फैलाकर खुले आसमानों में,
 मेरा भी, उड़ने का मन करता है,

नारी हूं मैं,
 मेरा भी तो,
 कुछ करने का मन करता है,

घर की चारदीवारी में ,
कैद पड़ी हूं ,
बाहर जाने का मन करता है,

मेरा भी,
देश की प्रगति में ,
हाथ बढ़ाने को मन करता है,

नारी हूं मैं ,
नारी हूं मैं,
 नारी हूं मैं,

(स्वरचित )
रचनाकार का नाम___ निशि द्विवेदी












Tuesday, 8 September 2020

एक मेरी मोहब्बत को ना समझे।

मेरे हर सवाल का, 
                       जवाब रखते हो।
मेरे हर खर्च का,
                    हिसाब रखते हो।
मेरे जज्बात का,
                    खयाल रखते हो।
मेरे हर फूल को,
                     संभाल रखते हो।
मेरी हर बात का,
                     विश्वास रखते हो।
मेरे हर अश्क का,
                      इंतकाम रखते हो।
मेरी हसरतों को ,
                       संभाल रखते हो।
बहुत चाहने का,
                       अंदाज रखते हो।

नहीं समझे सनम, नहीं समझे तुम।।
एक मेरी मोहब्बत को ही नहीं समझे तुम।।

Saturday, 5 September 2020

होने न दोगे आंखों से ओझल प्रिय

होने ना दूंगी आंखों से ओझल प्रिय,
 मैं तो पी लूंगी चार चार बोतल प्रिय है।
बोतल पियूंगी तुमरे प्रेम की,
नाचूंगी मैं भी तुमको नचाऊंगी,

नशा है मुझको तुमरे प्रेम का,
लगा है चस्का मुझे प्रेम का,
घूम घूम नाचूंगी तुमको नचाऊंगी,
तुम्हारे साथ में भी पागल बन जाऊंगी,

होने ना दूंगी,,,,,,,,

राधा के जैसी चुनरी लहराऊंगी,
मीरा के जैसा एक तारा बजाऊंगी,
 झूमूगी सारी रात, निधिवन मैं आऊंगी,
श्रृंगार करके दुल्हन मैं बन जाऊंगी,

होने ना दूंगी,,,,,,,,,,,,

जैसा कहोगे वैसा बन जाऊंगी,
 साथ तुम्हारे डफली बजाऊंगी,
बांसुरिया पर तुम्हारे दीवानी हो जाऊंगी,
हर हाल में तेरा साथ मै पाऊंगी,

होने न दूंगी तुमको किसी का,
 सौतन से सभी छुटकारा में पाऊंगी,
ध्यान तुम्हारा सारा मै अपने में लगाऊंगी,

होने ना दूंगी,,,,,,

            नाम_____ निशि द्विवेदी

संतो के समागम से उत्थान संस्कृत का

भारत के उत्थान वास्ते,
   कदम जो आगे रखा है,
     नहीं कोई साधारण यह ,
          तो भारत देश का बच्चा है,

आज शिक्षक दिवस पर ,
   यह जो कदम को आगे रखा है,
      संस्कृति के उत्थान के लिए ,
        जो अलख जगाकर रखी है,

संस्कृतियों से उरृड वास्ते,
   कदम जो आगे रखा है,
     देश के हित में काम करने,
        योगी जी ने पहल सुझाई है,

पौराणिक ग्रंथों में जैसे,
   संतो की सभाएं लगती थी,।                                     भारत संतों की नगरी है,
       पुनः संतों की सभा लगाई है,

   यूपी में जय हो योगी जी,
    देश का मेरे सौभाग्य बड़ा है,
        उन्नति के लिए यहां सदैव,
             देखो योगी सीएम खड़ा है,

देश को अपने गौरवान्वित ,
   करने को सदैव जगा है।
      सूरज सा चमकते भारत को,
           पाने की चाह निभाई है,

जय हो जय हो मोदी जी,
  और जय हो मेरे योगी जी, 
       इतिहास में संतों ने ,
          देश में राज किया है, 

  इतिहास लिखेंगे आज,
     पुनः मेरे केवल योगी जी,
         पुनः शासन करेंगे फिर से ,
                 मेरे इकलौते योगी जी,

संस्कृति के उत्थान वास्ते,
     संतो से आज चर्चा हुई,
        मेरे योगी का अंदाज निराला,
               यूपी में योगी राज निराला,

देववाणी में चर्चा करके,
  भारत में रामराज स्थापित होगा,
     भारत पुनः हिंदू राष्ट्र घोषित होगा,
       संस्कृत में वार्ता करके विश्व में नाम आएंगे,

साहित्यकार____ निशि द्विवेदी
                         पिंकी द्विवेदी

Tuesday, 1 September 2020

आज मैं बजाऊंगी बंसी तुम्हारी,

आज मैं बजाऊंगी बंसी तुम्हारी,
     आज मैं खोलूंगी पोल तुम्हारी,
           आज मैं सुनाऊंगी सभी को यह कहानी,

आज मैं बोलूंगी सुर तुम्हारे,
          आज मैं बजाऊंगी सुर तुम्हारे,
                      आज मैं खोलूंगी खेल यह सारा,
        
आज मैं जानूंगी राज तुम्हारा,
          आज मैं  छेडूंगी तार तुम्हारा,
                  कैसे पुकारे बंसी मेरा नाम राधा,

आज मैं खोलूंगी पोल तुम्हारी,
       आज मैं जानू की बात यह सारी,
                       आज मैं जानूंगी भेद ये सारा,

सात छिद्र हैं ,
       सात है स्वर,
              साथ है इससे बचपन का,

धरी अधरन पर,
       स्वास खींच के,
              प्राण फूंक दे,
                  श्रद्धा और समर्पण का,

सात सुरों पर उंगली नाचे,
       तर्जनी जैसे थरथर कांपै,
               राज बोल कर खोल दो कान्हा,

देखकर मेरी आंखों में ,
     सौगंध तुम्हें है यमुना की,                            
             है मोहिनी या जादू कोई,
                    या फिर है कोई हुनर तुम्हारा,
            
रचनाकार का नाम,_____ निशि द्विवेदी
(स्वरचित)                     पिंकी द्विवेदी

कान्हा तेरे प्यार में

कान्हा मेरो रसिया,

मेरो मन बसिया,

छोरो ब्रिज को बड़ों निरालो,

कोई इसको अपना बना लो,

सूरत से बड़ों भोलो भालो,

राधा को प्रिय मोहन नाम वालो,

मोरे नैनन में बसी छवि वालों,

 निशि कृष्ण नैनन में बसो सदा बसो,

खोने का डर

जितनी शिद्दत तुम्हें पाने की थी                 उससे ज्यादा डर तुम्हें खोने का है बस यही है कि तुमसे लड़ती नहीं           तुम यह ना समझना कि...