Monday, 31 August 2020

नीतिपरक और सच्ची बातें बच्चों को बताई रखिए।

देश प्रेम दिल में जगाई रखिए,
   राष्ट्रहित में कलाम लिखाई रखिए,
       राष्ट्रगान में तन सावधान बनाई रखिए,

चापलूसो से जुदाई रखिए,
    हितैषीयो से मिलाई रखिए,
        ईश्वर से सत्य की सदैव दुहाई रखिए,

प्रभु को मन बसाई रखिए,
     घर में कुछ दवाई रखिए,
           चिंतन मनन के लिए तन्हाई रखिए,

घर में कभी ना जमाई रखिए,
   मन में सदैव समाई रखिए,
      जीवन में मौज मस्ती और घुमाई रखिए,

छुपा कर अपनी कमाई रखिए,
   सत्य की अलख जगाई रखिए,
        मेरा तेरा ना करना  सदैव हमाई रखिए,

भजनों में मन रमाई रखिए,
     पुत्री को घर पर दबाई रखिए,
          लक्ष्मी को घर में सब से छुपाई रखिए,

स्वभाव अपना सहाई रखिए,
     पुलिस को  खवाई रखिए,
         घर को सदा साफ सुथरा सुहाई रखिए,

शत्रु को सदा हराई रखिए,
    बातों में अपनी दमाई रखिए,
       किसी के घर जाए तो हाथ में मिठाई रखिए,

दूध में मलाई रखिए,
     जल को हलाई रखिए,
            लेन-देन में हमेशा-हमेशा सफाई रखिए,

बुराइयों को उड़ाई रखिए,
     अच्छाइयों को छुपाई रखिए,
            रिश्तेदारों से लेनदेन सदैव बचाई रखिए,

चटनी में थोड़ी खटाई रखिए,
      सुख दुख में सदैव समाई रखिए,
            हरियाली देश में बहुत बहुत बढ़ाई रखिए,

दीन हीनो पर दया बनाई रखिए,
      पशु प्रेम दिल में जगाई रखिए,
             समय पर इनकी खिलाई ,पिलाई रखिए,

सेवक को चार बातें सुनाई रखिए,
     सहायता भरपूर कराई रखिए,
             सभी से मित्रवत मिलाई, जुलाई रखिए,

मुख को गर्म से बचाई रखिए,
    नेत्रों को चमक से बचाई रखिए,
           मादक पदार्थों के सेवन से बचाई रखिए,

(स्वरचित)
 रचनाकार का नाम____निशि द्विवेदी
                                  (पिंकी दिवेदी)

Sunday, 30 August 2020

दर्पण कहे श्रंगार कर आंखें काली रखें,

गुरु कहे लिखना जारी रखें,

  ससुर कहे बहू चाय की प्याली रखें,

        पति कहे थाली में व्यंजन चारी रखें,

                   सास कहे बहू अचारी रखें,

              घर की साज-सज्जा जारी रखें,
            
समझ ना आए कैसे हम कविता लिखना जारी रखें,


मेहमान कहे शिष्टाचार ही रखें,

   फॉलोवर्स कहे कविता जारी रखें,

      प्रकृति कहे घर में हरियाली रखें,

          सांझ,सवेरे घर के मंदिर में दियाली रखें,

समझ ना आए कैसे हम कविता लिखना जारी रखें,


घर कहे कूड़े को बाहरी रखें,

    परिजन का पूरा ख्याली रखें,
    
        भिखारी कहे दान पुन जारी रखें,

                दर्पण कहे थोड़ा श्रंगारी रखें,

       अखियां कारी और होठों पर लाली रखें,

समझ ना आए कैसे हम कविता लिखना जारी रखें,

गाड़ी कहे मुझ पर सवारी रखें,

पड़ोसन कहे सखी व्यवहारी रखें,

     सखियां कहे गुफ्तगू जारी रखें,

        पार्टियां कहे  बनारसी साड़ी रखें,

समझ ना आए कैसे हम कविता लिखना जारी रखें,

दिन के सारे काम कर ,
   रात में बैठी लिखने को ,
       बच्चे बोले ओ कवित्री मां,
              कमरे में अधिआरी रखें,

समझ ना आए कैसे हम कविता लिखना जारी रखें।
कोई बताए कैसे हम कविता लिखना जारी रखे।।
😱
(स्वरचित )रचनाकार का नाम ____निशी दिवेदी

Friday, 28 August 2020

तुमको ना भूल पाएंगे,

चांद मुझे बहुत प्यारा था,
 चांद पर बसने का शौक निराला था,

  बहनों ने मुझे चांद पुकारा था,
चांद पर जाने का सपना बड़ा पुराना था,

चांद के जैसा मैंने भी चकोर को चाहा था,
मुझे उसकी उसे मेरी दौलत की चाहत थी,

मैं इस बात से अंजान था ,
मैं उस रात से अंजान था,

जब दर्द से तड़प रहा था,
 चाहत मेरे सामने रही होगी,

सुना है इंसानियत का रिश्ता,
 हर रिश्ते में अपना भाई अपना बेटा ,

ढुंढ ही लेता है,
तो क्या उसका?????? 

लोग मुझे जब मार रहे होंगे,
 हाथापाई तो हुई होगी ,

मैं  चीख, चिल्ला रहा हूंगा,
मैं तड़पा भी ,रोया भी हूं गा ,

मेरे गले में फंदा डाल रहे थे ,
अपराधी मुझको मार रहे थे,

मदद के लिए पुकारा तो होगा,
 तड़पता रहा हूं गा,

कितना संघर्षशील जीवन था मेरा ,
आखरी सांस तक मैं लड़ा तो हूगा।

कितनी निर्दई थी वो आंखें ,जिन्हें दया नहीं आई।
सारे छूट गए वही मेरे अपने, हाथ में तन्हाई आई।।

      स्वरचित रचनाकार का नाम ____निशि द्विवेदी
                                                  ( पिंकी द्विवेदी)  

Thursday, 27 August 2020

रिया को मत होने देना रिहा।।

मेरी यह कविता सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने की एक कोशिश है।
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  मेरा रूठ गया है सपना ।
  मेरा रूठ गया कोई अपना।

रेत की तरह कोई मुट्ठी से फिसल गया है।
मेरा अपना कोई मुझे तन्हा कर गया है।

दिल के आशियाने में बिठाया था मैंने।
वही मुझे कुचलकर निकल गया है।

तिनको को चुन चुन कर महल बनाया था।
दिल के फ्रेम में उसका फोटो भी लगाया था।।

लहर की तरह आया,  और बिखरा कर चल दिया।
आज मेरा दिल❤️ तिनको में बिखरा पड़ा है।

वादा किया था मैंने ,कि सफर के साथी बनेंगे।
चंद सिक्कों के लिए मुझे छोड़ कर चल दिए।।

कैसे बताऊं मैं ,कैसे तुम्हें जताऊं।
हाथ पैर दीवारों पर  पटक रहा हूं।।

चीख चीख कर पुकारू मैं नाम तुम्हारा।
दिल में लिखे नाम को आंसुओं से धो रहा हूं।।

मैं कैसे इसे समझाऊं मैं कैसे तुझे भुलाऊं।
जितना भुलाना चाहा, तू उतना रुलाती है।।

किस्मत वालों के हाथ में होती है वह लकीरे।
मेरे दिल में चुभती है तेरे नाम की लकीर ।।

तन्हा अकेला कर दिया जिंदगी की राहों में।
आज  बैठकर समुंदर के किनारे रो रहा हूं।।

चंद सिक्कों के लिए तूने मेरा प्यार ठुकराया
क्या वह सिक्के वह प्यार दे पाएंगे जो मैंने दिया।।

तेरी मासूमियत देख मैंने दुनिया छोड़ी।
तुझे मेरी मोहब्बत रास नहीं आई।।

कहते हैं मोहब्बत एक तरफा नहीं होती।
मैंने दिल से चाहा था , मुझे सजा मिली।।

सुशांत को मिटाया तू भी अशांत रहेगी।
रिया नाम था तेरा तू भी रिहा नहीं होगी।।

स्वरचित रचनाकार का नाम ____निशि दिवेदी

कोई लौटा दे मेरा बचपन।

आया सावन मनभावन।
      कर दे रोम रोम पावन।।
         कर दे वारि तन मन धन।
              कोई लौटा दे मेरा बचपन।।

जब से रूठा है बचपन।
    तब से देख रही दर्पण।।
          छुटा दौर खिलौनों का।
               पांव दहलीज के यौवन।।

जब से यौवन है आया।
    तब से उमंग है छाया।।
         नई तरंग मन भाया।
              नयन देख रहे दिवास्वप्न।।

एक दौर था यौवन का।
    नया पड़ाव है जीवन का।।
        बचपन याद बहुत आया।
               बचपन मस्त बहुत पाया।।

अभावग्रस्त था बचपन।
  कष्ट तनिक नहीं था बचपन।।
    जल्द आएगा दौर पचपन।
     कोई लौटा दे मेरा फिर से बचपन।।
     
   रचनाकार का नाम ____निशि दिवेदी 


Thursday, 20 August 2020

नारी का सम्मान करो।

ओम नमो नारायणा,
     नमः नारी नारायणी। 
         पृथम देव दयावान, 
            द्वतिय नारी कृपायनि,।।

 देव विराजे स्वर्ग धाम,
     नारी आधार धरा की।
          देवों की सर्व श्रेष्ठ कला ,
                नारी उपहार धरा की।।

पुरूष दुःखी थे बिन नारी,
  सात रंगों से सराबोर थी नारी,
       रूप लावण्य से युक्त नारी,
              सभी दुखों से मुक्ति नारी,

घनघोर घटा से केश थे काले,
     नीले नयन थे बड़े निराले,
         सुर्ख लाल होंठों की और,
              सुनहरी मुस्कान चेहरे की,

चन्द्रमा सी सुंदर काया,
    सूरज सा तेज ललाट,
         भुजाएं थीं लताऐं सी,
            मदमस्त हिरनी सी चाल,

कोयल सी मीठी बोली,
   लगे मोहिनी सी मुस्कान,
       मोती से थे दमक रहे दांत,
            फूलों सी कोमल मन वाली,

सुन्दर गहनों से लदी थी,
   श्रृंगार करे सजी धजी थी,
        नीले वस्त्र पहन रखी थी,
           घुनधाट निकाले खड़ी थी,

जो करें सम्मान नारी का,
     प्रभू प्रेम का अधिकारी है,
             नारी देवी का रूप है,
                   प्यार की प्रति मूर्ति है,

नारी का सम्मान करो,
    मत उसका अपमान करो,
                     नारी है अपराजिता,
               


                रचनाकार का नाम____निशि द्विवेदी

Sunday, 16 August 2020

कटु परंतु सत्य


                                       नाम ____निशि दि्वेदी 
            (पिंकी द्विवेदी)
 
उड़ती पतंग सा होता जीवन,
        तंग डोर में तनाव सा जीवन,
            ढीली डोर से बढ़ता जीवन,
                  जीवन साथी संग हाथ ,
                       पकड़ कर चलता जीवन,

साथ छूटे तो कटी ,
    पतंग सा गिरता जीवन,
          साथी सही तो मस्त ,
                पतंग सा उड़ता जीवन,

डोर गलत हाथों में ,
      तो ढलता जीवन,
         जिधर हवा का रुख ,
                 उधर हो लेता जीवन,

कामयाबी की सीढ़ी पकड़,
        कर चढ जाता जीवन ,
                डालकर लंगर उसे,
                          गिरा देता दुश्मन,

सुमति से ,
        चले तो चलता जीवन,
       कुमति से,
              कटी धरा पर गिरता जीवन,

पतंग के जैसा होता जीवन,
      तरह तरह की पतंगों सा,
           अनेक तरह का होता जीवन,
                     दिशा एक है ,
             अनेक राहों में चलता जीवन,

कौन घड़ी किस दिशा में जाएगा जीवन,
कौन घड़ी किस दिशा में पूरा होगा जीवन,

                          नाम ____निशि द्विवेदी

Tuesday, 11 August 2020

प्रकृति का राज ना जाने पावे , चाहे जितना विज्ञान पढ़ आवै,



कितना ज्यादा बरसा पानी ,
बड़े जोर से बरसा पानी,

 रात रात भर बरसा पानी,
झम झम झम झम बरसा पानी ,

भर गई नदियां भर गई नाले,
 भर गए तालाब और शिवाले ,

मेरे घर के आंगन में भी
 आज थोड़ा भर गया पानी,

बड़ी जोर से बरसा पानी,
 चम चम चम चम बिजली चमकी

 गढ़ गढ़ गढ़ गढ़ बादल गरजे 
और रात भर बरसा पानी 

मेरे घर आंगन में भी
 आज झमक के  बरसा पानी,

बड़ी जोर से बरसा पानी,
प्रकृति के खेल भी बड़े निराले,

 कहीं खिली धूप कहीं पर सूखे,
 और कहीं पर बरसा पानी,

कभी-कभी तो ऐसा होता 
काली घटा अजब छा जाती,

 और जोर से आंधी आती,
बादलों को उड़ा ले जाती,

कड़क कड़क कर बिजली चमकी,
 कड़क कड़क के बादल गरजे,

धरती फिर भी सूखी रह जाती,
प्यास धारा की बुझ ना पाती,

कभी-कभी तो दिल को,
 दर्द का एहसास करा जाता पानी,

गरज गरज कर रोता बादल,
आंसुओं से झड़ी सा बरसा पानी,

मानो दिल चीर कर दिखाता बादल,
आंसू गिराकर दर्द का एहसास दिखाता बादल,

और कभी आनंदित होकर,
झूम झूम कर नाच दिखाता बादल,

कभी आस्था का प्रतीक बन जाता बादल,
सावन की बरसे बदरिया मां की भीगे चुनरिया,

 नवरात्रि में फुहार बरसता बादल,
आस्था विश्वास जगाता बादल,

तानसेन के रागमल्हार पर झूम झूमकर बरसे ,
कभी-कभी तो प्यासी धरती बूंद बूंद को तरसे,

वर्षा का वजूद है बड़ा लुभावना ,
महीने भर बरस कर धरती हरियाली बड़ा जाते,

पूरे बस हरियाली जिस से वंचित रह जाती ,
जबकि यही का जल उठा कर दोबारा बरसाता पानी,

प्रकृति का राज नहीं कोई जाने,
मानव कितना विज्ञान पढ़ जावे,

                                नाम____निशि दि्वेदी




 

Saturday, 1 August 2020

नहीं भाता कोई चेहरा,

नहीं भाता कोई चेहरा,
       तुझे पाना मजबूरी है,
             ठहरती कहीं नहीं आंखें,
                       तेरा मिलना जरूरी है,

कान्हा अब चले आओ,
         तेरा आना जरूरी है,
               तेरे मंदिर में मेरा आना ,
                        तेरी मूरत में समा जाना,

तेरी सूरत में जो आंखें,
     उन आंखों में ही खो जाना,
             दिखे पुतली में तेरा चेहरा,
                      नहीं कुछ भी नजर आता,

लगा चस्का जब से तेरा,
   कुछ और मुझे नहीं भाता,
        बस याद मुझे है कृष्ण राधा,
              अलावा इसके कुछ नहीं भाता,

सुना है तुम चले आते ,
    भक्ति से कोई तुम्हें पुकारे ,
          रो रो के नैना जब खो दूंगी ,
                              तुम्हें कैसे मैं देखूंगी,

यह जीवन मेरा,
           तेरे चरणों में ,
                    समर्पित है,
                           समर्पित है,

   रचनाकार का नाम ___निशि द्विवेदी

हाथ लगाकर मेहंदी इंतजार तुम्हारा है,

बनाकर मेहंदी का टैटू,
      इंतजार किया है तेरा,
             आओगे तुम कान्हा,
                    आवाज लगाई मैंने,

सोच रही हूं कान्हा,
      नाम लिखा लूं तेरा,
            पढ़ने आओगे तुम, 
                    विश्वास यह है हमारा,

सोच रही हूं कान्हा,
      वृंदावन लिखवा डालू,
              निवास वही तुम्हारा,
                         जल्दी आ जाओगे,

बैठे-बैठे रटती हूं,
    राधे का नाम प्यारा,
        नाम यह तुम्हें प्यारा,
             जल्दी आओगे तुम ,
                       विश्वास है हमारा,

तुम जितना मुझे प्यारे,
   दुनिया में कोई ना प्यारा,
              दिल की दीवारों पर,
                    नाम गूंजे है तुम्हारा,

तेरी एक झलक पाने को,
    मन करता है अभिलाषा,
         सपनों में ही आओ तुम,
               बन जाओ मेरा सहारा,

 मृगनैनी राधा संग,
         ठाढे हैं कन्हाई,
            मोर पंख लगा सर ,
                      बंसी रहे बजाएं,
 
कान्हा तेरे इंतजार में,
       भक्ति की परीक्षा में,
                हाथ सजाए बैठी,
                   बैठी___ निशि दिवेदी,

खोने का डर

जितनी शिद्दत तुम्हें पाने की थी                 उससे ज्यादा डर तुम्हें खोने का है बस यही है कि तुमसे लड़ती नहीं           तुम यह ना समझना कि...