Monday, 31 May 2021

दो जून की रोटी

रोटी... रोटी ...रोटी......... दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,

गोल, मोटी, छोटी,  जैसी हो .....दो जून की रोटी,
आड़ी तिरछी भी बन जाती.......दो जून की रोटी,
मां के हाथ से प्यारी लागे....... दो जून की रोटी,
अमीर गरीब सभी खाते .........दो जून की रोटी,

रोटी ....रोटी .....रोटी............. दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है ..........दो जून की रोटी,
 
 किस्मत वालों को मिलती है .....दो जून की रोटी,
 पिता कमा कर लाते हैं .......दो जून की रोटी,
  मां घर बनाती है ,..............दो जून की रोटी ,
  तब जाकर बन पाती हैं ......दो जून की रोटी,

रोटी... रोटी ...रोटी......... दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,
 
किस्मत वालों को मिलती है .....दो जून की रोटी,
सबको कहां नसीब है ............दो जून की रोटी ,
बड़े जंग से मिलती है ............दो जून की रोटी,
 तब संग बैठकर खाते हैं .........दो जून की रोटी,
 
रोटी... रोटी ...रोटी............... दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,

  भाग्य वालों को मिलती है..... दो जून की रोटी 
  अभागे से छिन जाती है .......दो जून की रोटी ,
  परदेस जाता है कमाने .........दो जून की रोटी 
  वहां खरीद के खाता है ........दो जून की रोटी,

रोटी... रोटी ...रोटी............. दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,

   अनमोल बड़ी है............... दो जून की रोटी 
   अपराध कराती है ये .........दो जून की रोटी 
   खून पसीना बहाती है.….... दो जून की रोटी
   आसानी से हाथ ना आती.... दो जून की रोटी

रोटी... रोटी ...रोटी......... दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,

अरमान सजाए बैठे हैं सब ......दो जून की रोटी,
 सबके नाम लिखी ना होती..... दो जून की रोटी,
 कुछ सम्मान से पाते हैं .........दो जून की रोटी ,
 अपमान सह कर कुछ पाते हैं ....दो जून की रोटी

रोटी... रोटी ...रोटी......... दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,

पापी पेट के डिमांड है .....दो जून की रोटी,
कुछ चोरी कर खाते........ दो जून की रोटी ,
 कुछ दान में खिलाते... ....दो जून की रोटी,
 सभी कमा कर खाते .......दो जून की रोटी,

रोटी... रोटी ...रोटी.............. दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,

जरूरत सभी की बन जाती......... .दो जून की रोटी,
दूध मुहे बच्चे को बिकवाती है .......दो जून की रोटी,
मां भी बिकती है देने बच्चे को ......दो जून की रोटी,
मान सम्मान से परे होती है ,........दो जून की रोटी,

रोटी... रोटी ...रोटी.............. दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,

जुदा अपने से करवा देती है .....दो जून की रोटी,
परदेस कभी बसा देती है........दो जून की रोटी,
जरूरत सभी की होती है........दो जून की रोटी,
जिसका नाम लिखा हो उस की होती.. दो जून की रोटी,

रोटी... रोटी ...रोटी.............. दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,
निशि द्विवेदी
 अंतर्राष्ट्रीय सचिव ,
साहित्य सेवा संस्थान, कानपुर उत्तर प्रदेश

Sunday, 30 May 2021

तुम को ही चाहता है दिल,

साजन बिन रहूं मैं कैसे ,
    कैसे जियूं मैं तुम बिन,

           मीलों लंबी लगी रातें,
                 सदियों से लंबा लगे लम्हा,

                         रुकती चलती रही सांसे,
                              सब कुछ अधूरा लगे तुम बिन,

महसूस खुद को मैंने ,
   कभी नहीं करती तुम बिन,

       पहाड़ों से ऊंचा दुख मेरा,
            बहुत ऊंचा लगे तुम बिन,

                  खुद को भी मैं सपना समझती ,
                       सपना समझती हूं तुम बिन,

                           साहित्यकार  ___  निशि दि्वेदी

Thursday, 27 May 2021

ये रेशम के रिश्ते

आसमानो से ऊंचे होते हैं यह" रेशम के रिश्ते"-२
पाताल से ज्यादा गहरे होते यह" रेशम के रिश्ते"-२

गंगा से भी पावन होते यह "रेशम के रिश्ते "-२
सागर से भी निर्मल होते यह "रेशम के रिश्ते "-२

शहद से ज्यादा मीठे होते हैं यह "रेशम के रिश्ते"-२
बर्फ से ज्यादा शीतल होते हैं यह" रेशम के रिश्ते"-२

भावनाओ की माटी में चलते"यह रेशम के रिश्ते"-२
श्रद्धा और विश्वास से सींचते" यह रेशम के रिश्ते"-२

प्रेम समर्पण से पूजते हैं यह" रेशल से रिश्ते"-२
तिल तिल कर के बढ़ते यह "रेशम के रिश्ते"२

तोड़े से भी ना टूटे यह" रेशम के रिश्ते"-२
सक की तलवारों से कटते यह" रेशम के रिश्ते"-२

टूटे कभी फिर ना जुड़ पाते हैं यह "रेशम के रिश्ते"-२
आंसू बन आखो से  गिरते यह "रेशम के रिश्ते"-२

कभी कपट से छले जाते हैं यह "रेशम के रिश्ते"-२
फिर टूट धरा बिखर जाते हैं यह" रेशम के रिश्ते"-२

 आंगन में किलकारी भरते यह "रेशम के रिश्ते"-२
दौलत से ना तोले जाते यह "रेशम के रिश्ते"-२

हीरे से अनमोल बड़े हैं यह "रेशम के रिश्ते -२
मोहन सा मोह  रखतें हैं यह "रेशम के रिश्ते"-२

रूप रंग और धर्म न देखें यह रेशम के रिश्ते"-२
वर्ण और शर्म न देखें यह "रेशम के रिश्ते"-२

पावन भक्ति से सराबोर होते हैं यह "रेशम के रिश्ते"-२
काली घटाओं से घनघोर होते हैं यह" रेशम के रिश्ते"-२

पैसों से कभी न तौले जाते ये "रेशम के रिश्ते"-२
भावनाओ के भूखे होते हैं यह" रेशम के रिश्ते"-२

अनमोल बड़े होते हैं यह" रेशम के रिश्ते"-२
कच्चे धागे से बंधे होते हैं" ये रेशम के रिश्ते"-२

‌   दोनों हाथों से चलते हैं ये"रेशम के रिश्ते"-२
,प्रेम की नरमी में बढ़ते हैं ये"रेशम के रिश्ते"-२


निशि, पिंकी द्विवेदी
(अंतर्राष्ट्रीय सचिव)
साहित्य सेवा संस्थान,

 

Monday, 24 May 2021

निशा का निमंत्रण

निधिवन चलो सबको देती आमंत्रण,
                         साथ रहो है निशा का निमंत्रण,
  हाथ पकड़ लो कस के सभी का,
                    सभी को मिला है निशा का निमंत्रण,
कान्हा ने हाथ पकड़ा है मेरा,
                     आया है मुझको निशा का निमंत्रण, ए दिन के उजालो तू खामोश हो जा,
                         भेजा है मुझको निशा ने निमंत्रण,
उजालो ने किया है धोखे से घायल ,   
                    लगाया निशा ने मेरे जख्मों पर मरहम,
रोशनी में दर्द को छुपाना है होता, 
                     दिखाया निशा ने मेरे जख्मों को दर्पण,
निशा को किया मैंने आत्मसमर्पण ,
                    जबसे निशा ने भेजा है मुझको निमंत्रण ,    दिन के उजाले मुझे रास ना आए,
                         लगाया है दिल से निशा का निमंत्रण,
 गाया है कवियों ने सुबह का वह नगमा, 
                       निशि दिन गांऊ मैं निशा का निमंत्रण, उजालों में लगाया है दुनिया का मेला,  
                               निशा में नहीं ऐसा कोई झमेला,  
उजालों ने किया मुझे सबसे पराया ,
                                   निशा ने मुझे अपना बनाया, उजालों में लगे कितने तानों के खंजर,              
                  अंधेरी हो या चांदनी देती अलग ही मंजर ,  माना कि चोर डाकू और लुटेरे,
                                 निशा को ही तो लगाते हैं फेरे,    मंदिर में फेरे हों सुबह सवेरे,
                     निधिवन में निशा को मेरे कान्हा के मेले,
 वृंदावन चलने का देती आमंत्रण ,                   
                        आ जाओ भक्तों है निशा का निमंत्रण, 
   सबस्क्राइब करके लगा लो तुम चंदन,
                        सभी को मैं देती निशा का निमंत्रण,
  दिन के उजालों में शोर बहुत है,
                              खामोश निशा है देती निमंत्रण,
  अगर दिल में तेरे हो प्रेम समर्पण,
                    लगाओ तुम गोते है निशा का निमंत्रण,   
 निशि गोपाल का रिश्ता अनोखा ,                            
                           दोनों के रंगों का भेद हो जानना ,
       तो आ जाओ तुमको है,
                                      मैं देती निशा का निमंत्रण ,  
  चाह शांति की गर हो दिल में तुम्हारे,
                    तो आ जाओ तुमको निशा का निमंत्रण,
    शांति इतनी कि भूल ना पाओगे ,
  कानों से आती है सनसनाहट तुम्हें है निशा का निमंत्रण,
  ये आमंत्रण निशदिन देती तुमको, मैं निशा का निमंत्रण ,    
  
निशी द्विवेदी-
अंतर्राष्ट्रीय सचिव
साहित्य सेवा संस्थान                                                 कानपुर उत्तर प्रदेश,                    

Monday, 17 May 2021

हैप्पी प्रॉमिस डे

राधा ओ राधा तुमसे है वादा,
    छोड़ के ना जाऊंगा किया है इरादा,
                    साथ निभाऊंगा मेरा है वादा,

मेरे बिना तुम कैसे जियोगी,
     कैसे जुदाई का जहर पियोगी,
              मेरे बिना तुम जी ना सकोगी,

दिल में तुम्हारे हमी हम रहेंगे,
जीवन का जहर हम संग संग पिएंगे,
तुम्हारे जीवन में कोई हो ना हो हम रहेंगे,

तुम्हारा साथ है हमको प्यारा,
तुम बिन ना होगा जीवन में उजाला,
           तुमसे साथ है हम को निभाना

कमी नहीं तुम्हारी जरूरत बनेंगे,
   हर सितम तुम्हारा हंसकर सहेंगे,
       आज तुमसे सारे हम वादे करेंगे,

विश्व साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव _____                                                        निशि द्विवेदी


मैं अंडा हूं,

मैं अंडा हूं,
 मैं चंगा हूं ,
ना लेता किसी से पंगा हूं,
मैं अंडा हूं ,
 कॉकरोच का,
चिपके हैं कुछ लाईन से,
सरकारी दफ्तर की फाइल से,
मैं अंडा हूं,
मैं अंधा हूं ,
ना देख सकूं मैं कुछ भी,
 मैं ऐसा बंदा हूं,
मैं बंद हूं अपने खोल में,
और फाइल बंद इस कमरे में,
मैं इस फाइल सा मजबूर हूं,
मुझे इंतजार कवर के फटने का,
फाइल को बाबू की जेब भरने का,
मैं दबा इस फाइल से,
 फाइल दबी कई फाइल से,
है यहां कई आते जाते,
कीड़े मकोड़ों जैसे,
चलते फिरते आगे बढ़ते,
मेरे भी और फाइल के करीब भी,
फिर भी ना कोई हाथ लगाता,
मुझे भी और फाइल को भी,
मैं चंगा था ,
मैं अंधेरे में संघर्ष में था,
मैं सुन रहा हूं,
कई सिसकियां,
जो दबी इन फाइलों में थी,
मैं सुन रहा था उनके दर्द को,
जो सच दफन था फाइलों में,
मैं पूछ बैठा इस फाइल से,
क्या सच्चाई है तेरी?
क्यों दबी है यहां अकेली?
वह बोली सुन ध्यान से,
 पिछले 11 सालों से,
मांग रही हूं न्याय ,
खाकी वर्दी वालों ने ,
करे विभिन्न उपाय,
बदल दिए असलाहै,
मैं फाइल हूं विमल मर्डर केस की,
जिसने झगड़ा होने पर पुलिस लियो बुलाए,
थाने से चले दो सिपाही आए,
सतीश ने फिर उनके सामने,
अपनी पिस्टल से गोली दीया चलाए,
पुलिस पकड़ कर ले गई उनको,
और बदल दी असलाहै,
मजिस्ट्रेट ने कह दिया,
यह वह असलाह ना आए,
सच दबा पड़ा फाइल में,
झूठ हंस-हंसकर उत्सव रहा मनाए,
मैं अंडा था,
 मैं चंगा था,
जब तक दुनिया से अनजान था,
मैं संघर्षरत था सच सुनने से पहले,
मैं सुनकर दुखी हो गया हूं,
मैं निष्क्रिय पड़ा हूं,
नहीं देखनी मुझे बाहर दुनिया,
जिस दुनिया में झूठ का बोलबाला,
और सच का मुंह दबा डाला।।।।।

इस सरकार को पैसे देकर, तुमने लिया खरीद।
उस सरकार से न पाओगे ,न मिलेगी भीख।।

विश्व साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव 
___निशि द्विवेदी




Tuesday, 11 May 2021

मां तू मुझसे क्यों इतनी नफरत करती,

मां तू मुझे क्यों नहीं समझती,
                                   मैं तेरी ही तो बेटी हूं,
 मैं तुझसे प्यारी प्यारी बातें ,
                                  करने को तरसती हूं,
  मां तू मुझसे क्यो इतनी ,
                                  नफ़रत करती ,
मैंने तेरा ही कहना माना ,
                       तेरी ही पसंद से ब्याह रचाया, 
ससुराल में सारे रिश्ते को ,
                                  अच्छे से निभाया,   
 जो तूने सिखाया,
                     वही तो दोहराया है  ,
याद है मुझे तेरे हाथों के बने ,
                                   खाने का स्वाद  ,       
 सोते समय मेरे बालों को ,
                               तेरा धीरे से सैहलाना,
 मेरे सर के नीचे वह धीरे से,
                                 तेरा तकिया लगाना, 
ठंड में मुझे कंबल में छुपाना,                                                                                                                                वह गर्मी में तेरा पंखा डोलाना ,                मेरी शादी कर, 
                 मुझसे लिपट कर सीने से लगाना,
आज तेरा मुझसे  यूं अचानक,
                                   खफा हो जाना, 
मां तू मुझे क्यों नहीं समझती,
                                  मैं तेरी ही तो बेटी हूं,  
तेरी हर खुशी को,
                       पूरी शिद्दत से निभाया है, 
तुम मेरे सपनों को,
                       कभी नहीं समझी,
तेरे लिए मैंने रौंद डाले सपने,
                           जो देखे थे खुली आंखों से,                                                              
मां तू मुझे क्यों नहीं समझती,
         मैं तुझसे प्यारी -२बातें करने को तरसती,
तू मुझसे क्यों इतनी नफरत करती,
                         मां तू मुझे क्यों नहीं समझती,
तुझे लगता है कि मैं नहीं समझती,
            मां तू मुझे अननोन नंबर से कॉल करती,
मेरी हेलो को तू खामोशी से सुनती ,  
                       ‌ ‌            तू जवाब नहीं दे सकती,  
  मां तू मुझसे क्यों इतनी नफरत करती , 
                                         मैं तेरी ही तो बैठी हूं                           
 रचनाकार                        ्््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््      _   निशा तिवारी                           
 

Monday, 3 May 2021

नानी घर के वृक्ष

मेरी नानी के घर के बाहर एक बरगद का वृक्ष है,
जब से होश संभाला मैंने तब से खड़ा वह वृक्ष है,

एक दिन मैंने मां से पूछा कितना पुराना यह वृक्ष है,
मां बोली जब से होश संभाला यही खड़ा यह वृक्ष है,

 मां से बोली बता मुझे मां  कितना पुराना वृक्ष है,
जब मां छोटी थी जिज्ञासा में आया था यह वृक्ष है,

तब मां ने नानी से पूछा माँ कितना पुराना यह वृक्ष है,
नानी ने बताया उनके दादा ने था लगाया यह वृक्ष हैं,

मेरी जिज्ञासा पूर्ण हुई मैं पहुंची और बोली
बरगद दादा बता मुझे कितना पुराना यह वृक्ष है,

निशी उर्फ पिंकी द्विबेदी

बरगद दादा ने मुझे बहुत लंबी कहानी सुनाई 
फुर्सत में किसी दिन सुनाऊं की सारी कहानी

वृक्ष की अभिलाषा

वृक्ष हरा, घना रूप में विशाल हूं,
   जीवनदान काम है,
       धरा पर अटल खड़े,
            तले वृक्ष नदी बहे,
  बांह फैला हम यहां अटल खड़े,अटल खड़े,
     विहंग साख साख है,
        चातक,मयूर,कोकिला,
          मधुर गीत गा रहे,
 उद्दंड वानर शाख को हिला रहे, हिला रहे,
    पक्षी घोसले धरे,
       कांधे पर मेरे बसे,
           चोच से प्रहार करें,
धने तने को मेरे आसरा बना रहे,आसरा बना रहे,
पुष्प लताओं के झुंड,
अमृता गिलोय भी,
परिवेश को महका रहे,
तने तले पे चींटियों के बिल बने,बिल बने,
मोटी मोटी चीटियां,
कुछ लाल है चीटियां,
समूह को बना रहे,
भुजंग भी मेरे कोटरो में जा रहे, कोटरों में जा रहे,
काले कुछ छोटे बड़े,
शाख पर रेंगते,
धरा को है देखते,
डाल पर मेरी लाखों पत्ते जड़े, लाख पत्ते जड़े, 
 मधुर फल यहां लगे,
 फल पक धरा गिरे,
 कुछ नदी बीच गिरे,
 मधु के छत्ते भी मेरे साख पर लगे,मेरी साख पर लगे,
 मधु को बना रही,
 प्रकृति को सजाए रही,
 खुशी के गीत गा रही,
 बन पिता यहां हम ढाल बंन खड़े, ढाल बन खड़े,
 आंधी और तूफान से,
 लु और तपन से भी,
 बारिश की हर बूंद से,
 सभी को बचा रहे फर्ज को निभा रहे, फर्ज को निभा रहे,
 एक पथिक नदी तटे,
 लगा बड़ा थके थके,
 दूर से चले चले,
 फलों को निहार रहा धरा पर खड़े खड़े, धरा पर खड़े खड़े,
 डाल दिए वहीं पर,
  चार फल पके पके,
  खा के फल जल पिए,
 आभार व्यक्त किया वृक्ष तले खड़े-खड़े, खड़े ,
 कल जोर वृक्ष कहे,
 आभार बोल के मुझे,
  लघु मत कीजिए,
  कह रहा हूं जो मैं उसे सुन लीजिए, उसे सुनने लीजिए
  वृक्ष मत काटिए,
  परिवेश पलने दीजिए,
 धरा करो हरा भरा,
 मनुष्य की तरह हमें भी रहने दीजिए, हमें भी रहने दीजिए,
 जन्म से लेकर मृत्यु तक,
  तेरे काम आए ,
  मेरी ही लकड़ियां, मेरी ही लकड़ीया
 पुत्र जने जैसे घर,
 वृक्षारोपण कीजिए,
 मॉल बने ना बने , 
 वृक्ष रहने दीजिए, हमें भी रहने दीजिए,
 ऑक्सीजन का हूं कारखाना,
  ऐसे बढ़ने दीजिए,
  सृष्टि यह सभी की है,
  चक्र चलने दीजिए इन्हें पनपने दीजिए,
  हरा वृक्ष ना काटिए,
  पांच वृक्ष लगाइए,
  गमलों को सजाइए,
   क्यारी को महकाईये
    हरा भरा बनाइए,
   प्रकृति को अब और ना उजाड़ीये ,
   चलिए हाथ में लाइए,
    मिला के हाथ अपने देश को बचाईऐ,
    महामारी से बचाइए,
     यही पाठ अपने बच्चों को सिखाइए,
    इस धरा को अपने गहना पहनाइए

साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव  ___निशी उस पिंकी दुबेदी
 
 
   

सबसे प्यारा मेरा कान्हा!

सबसे प्यारी सूरत कान्हा,
      सबसे प्यारा कान्हा नाम है,
            वांह फैलाकर मांगू दुआ,
                 कोई नहीं अनजान है,

प्यार की प्रतिमूर्ति हो,
      दयालु तेरा नाम है,
             संसार से तुम हो ,
                   तुमसे ही संसार है,

मिटा दो यह महामारी,
     हर लो मेरी चिंता सारी,
          तेरा नाम बड़ा अनमोल,
               जपन में लागे कोई ना मोल ,     
   
गोवर्धन को उठाया,
    शेष सिर तांडव दिखाया,
         पूतना के प्राण खींच रुलाया,
                 महा पापी कंस को मिटाया,

इस सृष्टि को पावन कर दो,
     जीवन में फिर से रस भर दो,
               दिल में  जगा  दो  भक्ति,
                    अब दिखा दो अपनी शक्ति,

हम तेरे दर पर आएंगे , 
     सदा तेरी महिमा गाएंगे,
           भक्ति की गंगा बहाएंगे,
                  तेरे चरणों में घर बनाएंगे,

विश्व साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव -
                               (पिंकी ) निशि द्विवेदी

वृक्ष की पुकार,

वृक्ष हरा, घना रूप में विशाल हूं,
   जीवनदान काम है,
       धरा पर अटल खड़े,
            तले वृक्ष नदी बहे,
  बांह फैला हम यहां अटल खड़े,अटल खड़े,
     विहंग साख साख है,
        चातक,मयूर,कोकिला,
          मधुर गीत गा रहे,
 उद्दंड वानर शाख को हिला रहे, हिला रहे,
    पक्षी घोसले धरे,
       कांधे पर मेरे बसे,
           चोच से प्रहार करें,
धने तने को मेरे आसरा बना रहे,आसरा बना रहे,
पुष्प लताओं के झुंड,
अमृता गिलोय भी,
परिवेश को महका रहे,
तने तले पे चींटियों के बिल बने,बिल बने,
मोटी मोटी चीटियां,
कुछ लाल है चीटियां,
समूह को बना रहे,
भुजंग भी मेरे कोटरो में जा रहे, कोटरों में जा रहे,
काले कुछ छोटे बड़े,
शाख पर रेंगते,
धरा को है देखते,
डाल पर मेरी लाखों पत्ते जड़े, लाख पत्ते जड़े, 
 मधुर फल यहां लगे,
 फल पक धरा गिरे,
 कुछ नदी बीच गिरे,
 मधु के छत्ते भी मेरे साख पर लगे,मेरी साख पर लगे,
 मधु को बना रही,
 प्रकृति को सजाए रही,
 खुशी के गीत गा रही,
 बन पिता यहां हम ढाल बंन खड़े, ढाल बन खड़े,
 आंधी और तूफान से,
 लु और तपन से भी,
 बारिश की हर बूंद से,
 सभी को बचा रहे फर्ज को निभा रहे, फर्ज को निभा रहे,
 एक पथिक नदी तटे,
 लगा बड़ा थके थके,
 दूर से चले चले,
 फलों को निहार रहा धरा पर खड़े खड़े, धरा पर खड़े खड़े,
 डाल दिए वहीं पर,
  चार फल पके पके,
  खा के फल जल पिए,
 आभार व्यक्त किया वृक्ष तले खड़े-खड़े, खड़े ,
 कल जोर वृक्ष कहे,
 आभार बोल के मुझे,
  लघु मत कीजिए,
  कह रहा हूं जो मैं उसे सुन लीजिए, उसे सुनने लीजिए
  वृक्ष मत काटिए,
  परिवेश पलने दीजिए,
 धरा करो हरा भरा,
 मनुष्य की तरह हमें भी रहने दीजिए, हमें भी रहने दीजिए,
 पुत्र जने जैसे घर,
 वृक्षारोपण कीजिए,
 मॉल बने ना बने , 
 वृक्ष रहने दीजिए, हमें भी रहने दीजिए,
 ऑक्सीजन का हूं कारखाना,
  ऐसे बढ़ने दीजिए,
  सृष्टि यह सभी की है,
  चक्र चलने दीजिए इन्हें पनपने दीजिए,
  हरा वृक्ष ना काटिए,
  पांच वृक्ष लगाइए,
  गमलों को सजाइए,
   क्यारी को महकाईये
    हरा भरा बनाइए,
   प्रकृति को अब और ना उजाड़ीये ,
   चलिए हाथ में लाइए,
    मिला के हाथ अपने देश को बचाईऐ,
    महामारी से बचाइए,
     यही पाठ अपने बच्चों को सिखाइए,
    गज भर धरा पर मुझे लगाइए,
थोड़ा जल् लाइए,
इस धरा को गहना पहनाईऐ,
 
 विश्व साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव-
                                      निशि पिंकी द्विवेदी,
   
   
 

सृष्टि के निर्माता कृष्ण हमारे ॥

पृकृति के इस चित्र को किसने बनाया?

हरी-भरी धरा को खुशबू से महकाया,

रंग बिरंगे फूलों से धरती को सजाया,

वादियों को खुशमिजाज जिसने बनाया,

बारिश की बूंदों से किसने नहलाया,

धुप की रोशनी से धरा को चमकाया,

चांद की चांदनी को पूर्णमासी से दमकाया,

लगाकरअमावस्या का टीका बुरी नजर से बचाया,

 झोंक रहे हैं वरिष्ठ जन महामारी की भट्टी में,

डगमगा रही है नैया प्रभु तुमको पार है करनी ,

खोने का डर

जितनी शिद्दत तुम्हें पाने की थी                 उससे ज्यादा डर तुम्हें खोने का है बस यही है कि तुमसे लड़ती नहीं           तुम यह ना समझना कि...