Saturday, 9 November 2024

खोने का डर

जितनी शिद्दत तुम्हें पाने की थी
                उससे ज्यादा डर तुम्हें खोने का है
बस यही है कि तुमसे लड़ती नहीं 
         तुम यह ना समझना कि मैं बदल गई हूं
मेरा गुस्सा आज भी वहीं हैं
बड़े नसीबों से मिले हो इसलिए केयर करती हूं
   प्यार का बस यही दस्तूर है
                        तुम्हारी हर बात हमें मंजूर है
बर्दाश्त होती है कोई दूरी नहीं
                वर्ना तुम्हें ब्लॉक करना मैं भूली नहीं
कहना तो बहुत कुछ है
                  बताना समझती अब जरूरी नहीं
बुरा लगता है तुम्हारा इग्नोर करना
                      घूमा कर बातों को गोल करना
अब क्या लड़ना झगड़ना शोर करना
                         अब किसे  दिखाए बचपना
जब सोचती हूं रह लूंगी तुम्हारे बिना
                         तब छा जाता है अंधेरा घना
मुझे पता है तुम्हारा दिल भर गया है
              फिर भी दूर जाने से दिल डर गया है
चार कदम हम साथ चले थे
                            लेकर आंखों में सौ सपना
बस इसीलिए चूप दूर खड़े है
                        शायद बना सकूं तुम्हें अपना


Wednesday, 21 August 2024

नारी

पैरों में तू पंख लगा कर ,
                   उड़ चलो गगन में,
बिना किसी परवाह किए ,
                   बढ़े चलो चमन में,
डर लगता किस बात का है , 
              खेल आत्म विश्वास का है,
मुस्कान को ढाल बना कर,
                  बढ़ो सदा तुम आगे,
बंधन सारे तोड़ ताड़ कर,
              भय को पीछे छोड़ छाड़ कर,
 भरोसे से भरा बनो,
                     जुबान से खरा बनों,
पहले अबला थी तू,
                         अब बल को ला ,
पहले नारी थी तू, 
                    अब बन कर आरी तू,
सारे बंधन को तू काट के आ,
                       तनिक नहीं घबरा,
हाथ,हथकड़ी पांव की बेड़ी ,
                जोस तपिश से दे पिघला,
न परवाह और लोगों की,
            कही-सुनी से अब तू मत घबरा,
समंदर जो है दिलों में,
                    उसको अब तू बाहर ला,
तूफानों सा तू लड़ जा,
                        पहाड़ों सा तू अड़ जा,
नदी के जैसा बह चल,
                      मौसम जैसा अब बदल जा,
भर दामन खुशी से,
                   अपनी  बगिया को चमका,
बन सुगंध तू धरती की सारे गूलशन को दे महका,
रख भरोसा अपने पर मान और सम्मान को पा,

Monday, 16 October 2023

बिरह

कहीं दीप जले, कहीं दिल जले,
कहीं नयन छलके , कहीं सावन बरसें,
कहीं रंगों की होली, तो कहीं खाली झोली,
कहीं लबों पर मुस्कान, कहीं जीवन सूनसान,
कहीं सुनहरा आज और नई शुरुआत,
कहीं भूली-बिसरी यादें और अमावस् सी राते,
     कोई पल खुशी का आता नहीं,
 तुम बिन अब हमसे जिया जाता नही,                            Nishi dwivedi 

Friday, 21 October 2022

आरती तुलसी माता की

कार्तिक माह में सुबह और शाम तुलसी की आरती का विधान है इस पवित्र माह में सुबह बृहम मुहुर्त में सितारों को देखकर मौन स्नान करते हैं, और पुजन आदि में गाय के गोबर से आंगन में लीप देकर,घी का दीपक जलाकर आरती करें,येसा करने से  नारायण मोक्ष प्रदान करते हैं और कुटुम्ब को धन धान्य से परिपूर्ण करते हैं और कतकी यानी कार्तिक पूर्णिमा को तुलसी विवाह को पूरे हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है इस दिन एक कहानी भी कही गई हैआरती-

नमो नमो तुलसी महारानी,
नमो नमो हरि की पटरानी,
कौन तेरो पिता?
 कौन महातारी?
किनकी सौ तुम अधिक प्यारी?
नमो नमो ...........
जल मेरो पिता धरती महातारी,
सालिग्राम की अधिक प्यारी,
नमो नमो.....…
काहे को दिया?कहें की बाती?
 काहे को घृत जले सारी राती?
नमो नमो........
सोने को दिया, रुपे की बाती,
सुरहिन (गाय)का धृत जले सारी राती,
नमो नमो.......
सावन तुलसा को जनम भयो है,
भादव में तुलसा के दौ भये पात,
क्वार में तुलसा भयी किशोरी,
कार्तिक तुलसी को रच गयो ब्याह,
भजो नारायण भजौ गोपाल.........
हसि हसि राधा रानी पूछै बात?
राधा --एणि महावर कहां पायो महाराज?
कृष्ण --काहे को राधा रानी भयि बावरी,
मेहंदी की पाती पैर लागि जाए,
भज नारायण भजौ गोपाल..........
हसि हसि राधा प्यारी पूछै बात,
राधा --नैन काजर कहा पायो महाराज,
कृष्ण --कहे को राधा भयी हौ बाबरी,
कलम की श्याही नमन लगि जाय,
भज नारायण भजौ गोपाल.....
हसि हसि राधा प्यारी पूछै बात,
राधा -कपड़े पियर (पीले) कहां पायो महाराज...
कृष्ण -काहे को राधा भयी हौ बाबरी,
 धोबी कपड़ा बदल लै आए,
भज नारायण भजौ गोपाल...
राधा - काहे को कृष्ण हमें बौरायौ,
कृष्ण और तुलसी को रच गयौ ब्याह,
भज नारायण भजौ गोपाल......
जो हम जनती तुलसा सौतन बनिहै,
तुलसी को डालती जर से उखाड़,
भज नारायण भजौ गोपाल....
अन्त में --
 चार चक्कर चार मक्कर,
          चार जन की लोई,
            आवन दो कार्तिक का महिना,
                  तब निपटारा होई,
   
____       जय श्री हरिप्रिया,_________

Tuesday, 11 January 2022

न उम्र की सीमा हो,

पिंकी द्विवेदी
१२  ०१ २०२२

जीवन यूं ही साथ में बीते ,
खुशियों की बरसात में बीते,

दुख सुख का अहसास छोड़कर,
जीवन यूं ही मुस्कान में बीते,

गम ना हो कोई दुनिया का,
बस अपना कभी साथ ना छूटे,

जग रूठे तो सारा रूठे,
दिलों का रिश्ता कभी ना टूटे,

बाहों का अटूट हो बंधन,
भारत में हो या हो लंदन,

घड़ी भर को भी जुदा ना होना ,
बात यूं ही आंखों से करना,

नैनों से उतर कर दिल में रखना , 
बाहों का विश्वास भी रखना,

बालों का रंग हो गोरा काला,
खाल भी हो जाए झुर्री वाला,

साथ छोड़ कर कभी ना जाना,
प्यार का रिश्ता सदा निभाना,

Wednesday, 27 October 2021

बदल डाला

             घर बार बदल डाला,
              संसार बदल डाला ,
    मैंने जीने का अंदाज बदल डाला,
            एहसास बदल डाला ,
             इतिहास बदल डाला,
  अब तो जीने का अंदाज बदल डाला,
            आशाएं बदल डाली ,
           निराशाऐ कुचल डाला,
   गुमसुम रहने का अंदाज बदल डाला,
           कुछ मित्र बदल डाले ,
           गिरगिट सा बदले रंग,
    उन जैसों का संग,साथ बदल डाला,
          कुछ खड़े थे नकाब डाले,
         दिन में उसे तारे दिखा डाले,
  कुछ को तो मैंने भैईया आईने दिखा डाले,
                          
                ----  निशि द्विवेदी

Monday, 27 September 2021

चाहा कुछ भी नहीं तुम्हें खो के

भूल गई थी सब तेरी हो के,
पाया सब कुछ तुम्हें खो के,
मुस्कुरा रही हूं अंदर से रो के,
जागी अब तक नहीं मैं सो के,
छुपती नहीं आंखें मुंह धो के,
बंधन में बंधी तुम से मोह के,
दूर हो न सकी मैं तेरी हो के,
बरसों बीते हैं तुम बिन रो के,
गुजरते हो रोज आंखों से हो के,

    विश्व साहित्य सेवा संस्थान,
     अंतर्राष्ट्रीय सचिव,
      साहित्यकार ---निशी द्विवेदी

Saturday, 25 September 2021

"मन बंजारा"

जी चाहता कोई गीत लिखूं,
हीर रांझा सी प्रीत लिखूं,

                  तलवारों से लड़ी जीत लिखूं,
                   मौसम प्यारा सीत लिखूं,

काली घटा वर्षा पर गीत लिखूं,
लगे मुझे अपना ऐसा मीत लिखूं,

                विवाह के जैसा कोई रीत लिखूं,
                भूल ना सकूं ऐसा अतीत लिखूं,

गुजरे जमाने की ऐसी बात लिखूं,
सो ना सकी ऐसी कोई रात लिखूं,

              इश्क ना हो ऐसी कोई जात लिखूं,
             प्यारा हो सबसे ऐसा कोई साथ लिखूं,

सय हो जिस पर कोई मात लिखूं,
जादू टोना की मैं काट लिखूं,

               नेताओं की खड़ी हुई मैं खाट लिखूं,
               चक्की के पिस्ते दो पाट लिखूं,

घूमने हो ऐसी कोई हॉट लिखूं,
ऑफर आया ऐसा कॉल लिखूं,

              खुशियों से बीता हो ऐसा साल लिखूं,
               लगे प्यारा खेल मुझे फुटबॉल लिखूं,

रजवाड़ा को मैं रॉयल लिखूं,
उबले पानी को बॉयल लिखूं,

मन बंजारा, कभी इधर की कभी उधर की बात लिखूं,।
कृष्ण कभी राधे की, प्रकृति कभी प्रेम की बात लिखूं।।

             विश्व साहित्य सेवा संस्थान ,
              अंतर्राष्ट्रीय सचिव ,
               साहित्यकार -----निशि द्विवेदी

Sunday, 27 June 2021

अगले जनम मोहे बिटिया न किजै


       *****विवाह चिता की होती बेदी,******"
_________________________________

रस्म अदायगी करी ये कैसी?
                                 क़साई हाथों सौंप दी बेटी!
कोमल मनसे फूलों जैसी,
                              बाबुल दी किन हाथों में बेटी,
मजबूरी भी थी क्या येसी,
                                विवाह चिता की होती बेदी,
जिस पर बैठ कर रोती ,                               
                              निशि दिन बाबुल तेरी बेटी,
 सात वचन की रीति ये कैसी,
                                 खूंटी से बंध गई तेरी बेटी, 
नींद नहीं यहां हमें वैसी,                                                             
                                जिस घर तुमने भेजी बेटी,
 कमी यहां सभी गिनाते,
                             तुम खुश हो खाते टेडी रोटी,
  याद तेरी है वह बात,
    जो बोली थी फेरे बाद,
       मान लो बेटी मेरा कहना,
           हर हाल में तू खुश रहना,      

मान बढ़ाया बाबुल तेरा,
  दुःख सहकर भी नहीं हमें कहना,  

सहनशीलता में दक्षता पाई,
   मां से भी नहीं कोई बात बताई,
      हस कर वहां से मैं चली आई,

जब बुरे होते हालात,
    कान्हा जी से कहती,
       रोकर मैं एक ही बात,

अगले जनम मोहे बिटिया न किजै.........

Monday, 21 June 2021

नारी सशक्तीकरण

नारी हूं मैं,
 मेरा भी तो ,
जीने का मन करता है,

गर्भ समय से कैद में थी,
 कभी तो खुलने का ,
मन करता है,

मैं नारी हूं 
मैं दर्पण हूं ,
मैं प्रेम और समर्पण हूं

मैं बहन हूं ,
मैं बेटी हूं ,
अपने प्रिय की अर्धांगिनी हूं,
और मैं एक मां भी हू

क्यों ,
बिना किसी अपराध के ,
किसी गरीब की बेटी जलती,

क्यों, 
कानून के दफ्तर में ,
यह सारी फाइल दबती,

क्यों ,
मासूम को,
 तिरस्कार है मिलता,
जो करती कोई अपराध नहीं,

क्यों,
 भारत मां के चरणों में,
 नारी की कुर्बानी होती,

क्यों , 
अपराधी को ,
छत्रछाया मिलती है,
राजनीति के सिपासलारोँ से,

वासना से परे होकर देखो,
 नारी सा कोई मित्र नहीं,

नारी हूं मैं,
 मेरा भी तो ,
जीने का मन करता है,

पिंजरे में ,
मैं कैद पड़ी हूं ,
उड़ने का मन करता है,

थोड़ी ,
मुझे आजादी दो,
 पंख फैलाकर खुले आसमानों में,
 मेरा भी, उड़ने का मन करता है,

नारी हूं मैं,
 मेरा भी तो,
 कुछ करने का मन करता है,

घर की चारदीवारी में ,
कैद पड़ी हूं ,
बाहर जाने का मन करता है,

मेरा भी,
देश की प्रगति में ,
हाथ बढ़ाने को मन करता है,

नारी हूं मैं ,
नारी हूं मैं,
 नारी हूं मैं,

(स्वरचित )
रचनाकार का नाम___ निशि द्विवेदी



Monday, 7 June 2021

मोदी जी सुनिए मेरे मन की बात,

मोदी जी हम आपसे गुस्सा हैं,
*****************"*
महिलाओं पर यह क्या सनक आई,
आपकी नहीं है तो सबकी लडवाई,
पहले तो सारी जमा पूंजी निकलाई,
अब लॉकडाउन लगाकर ,
सारी खरीदारी पतियों से करवाई,
पति जान चुके हैं हर कीमत,
कैसे करें महिलाएं जमाखोरी,
 हमारी शॉपिंग बंद करवाई,
 हमारी लुटिया डुबाई,
पूछ रही है सारी पार्टियां ,
अब किसकी होगी अगवाई,
 हमने तो वोट देकर करी भलाई,
तुमने खुद नहीं खाई मलाई,
 खा रहे थे जो उनसे छिनवाई,
दो सालों से बंद पड़ी कमाई,
छाती पीट रो रहीं लुगाई,
हम सब की साड़ी छीनवाई,
 चाट पकौड़िया बंद कराई,
 घर में बिठाई चटाई खटाई,
पार्टियां मेला बंद करवाई,
 घर बैठाई रोटियां पकवाई,
हम पर कैसी आफत आई,
बच्चन पर छड़ी चलवाई,
 जान आफत में करवाई,
मायके की कैसे दे धमकाई,
घर के बाहर पुलिस बिठाई,
चूलहे जैसी धधक रही है,
पद से अपने भटक रही हैं
कौड़ी को मोहताज खड़ी है,
 रात दिन पतियों से लड़ी हैं,*******
अबकी बार हुआ,आगे ना दोहराए,
हम महिलाओं को भी आगे बढ़ाएं,
 हमारा वोट अटल है,
 हमारा वोट कमल है,

निशि द्विवेदी ,
अंतर्राष्ट्रीय सचिव,
विश्व साहित्य सेवा संस्थान ,
कानपुर उत्तर प्रदेश

Thursday, 3 June 2021

हम साथ साथ हैं, दो सहेलियों की अद्भुत कहानी


मैं लाई हूं एक नई कहानी,
आज सुन लो मुझसे मेरी जुवानी,
दो सहेलियों की ये एक कहानी,
मोनिका प्रिया की सुन लो एक कहानी,
इंटर परीक्षा में शामिल थी मिली,
मार्डन मोनिका की मुस्कान थी बड़ी,
प्रिया शान्त थी वहीं पर खड़ी,
आकर्षण में दोनों साथ मिली, 
आखरी पेपर में दोनों घरों को चलीं,
घर में सभी से मिलाया,
सबको घर में बुलाया,
परिणाम पास होने का आया,
एडमिशन लेने साथ दोनों चलीं,
कालेज में मस्ती की लग गई झड़ी,
हाथों में लेकर हाथ दोनों चलीं,
रोज़ साथ ही आतीं, दोनों साथ ही जाती,
छुट्टी में दोनों उदास हो जाती,
एक से बस्ते, एक से सैंडल , एक से कपड़े
गाती एक ही नगमे,पुछे कोई तो जुडुवा बन जाती,
मोनिका की दीदी को देखने मेहमान आते,
पसंद मोनिका को कर जाते,
मोनिका कालेज में आयी,
बात प्रिया को बताई,
दीदी लड़ती झगड़ती है बड़ा परेशान करती,
अब मैं आशू न बहाऊ छोड़ घर को जाऊं,
वो लेने है आया, मुझे साथ उनके जाना,
 प्रिया- करता क्या है? बोलो कहां रहोगी तुम? 
मोनिका -प्यार मुझे है करता स्वीटहार्ट है कहता,
उसके दिल में रहूंगी , उसको अपना कहूंगी,
प्रिया_ मुझे छोड़कर ना जाना,
मेरा साथ निभाना,हम पढ़ेंगे लिखेंगे,
फिर जॉब करेंगे,दोनों साथ रहेंगे,
 और बातें करेंगे, किसी से ना डरेंगे,
 बच्चे अडॉप्ट करेंगे ,साथ जीवन जिएंगे,
 मर्द जाति से है नफरत,
 मत खाओ यह अंगूर ,भूल जाओ उस लंगूर,
 चारों तरफ हवा है ,यह लड़का बेवफा है,
 उससे शादी करके तुम मुझे भूल जाना,
 मेरे सामने फिर कभी मत आना,
 तुमसे रूठ मैं जाऊंगी, कभी सामने ना आऊंगी,
 मोनिका_उसको साथी चुन लिया है ,
 सब को दूर किया है,
 निकल आया है मुहूर्त ,
 अब नहीं किसी की जरूरत,
 (शादी करके मोनिका ससुराल गई,
  कुछ दिन के बाद प्रिया की भी शादी हो गई,
  अकेली प्रिया रह ना सकी,
  दुल्हन बन ससुराल चली,)
  ( ससुराल में प्रिया को ताने थे मिले,
  पति के अफसाने थे बड़े, 
   रो के प्रिया बस यही थी कहती,
   मोनिका ना होगी यह सब सहती,
   उसने कुछ तो होगा सोचा ,
   लव मैरिज का मिला है उसे मौका
   मित्र मेरी जहां रहे बस खुश रहे,
   उसके हिस्से के गम मैं जी लूंगी,
    सारे अत्याचारों को हंस कर सह लूंगी)
    ( बरस अटठारह बीत गए थे ,
    हम जीना सीख गए थे)
  ( दौर मोबाइल का आया,
   आज प्रिया को फोन आया,)
   मैं मोनिका बोल रही हूं,
    तुमसे मिलना चाह रही हूं,
    दिनों बाद हो आई,
     मेरा नंबर कहां से पाई 
     तेरे मायके से आ रही, 
     नंबर भाभी से  लाई,
     दोनों की आंखें भर आई
     असुअन धार वही,
     मिलने की बात हुई,
   प्रिया_अवरुद्ध कंठ से पूछा तू कैसी है,
    मोनिका_ बहुत दुखी हूं,
    पति की नाफरमानी बढ़ गई,
    मेरी सौतन आ गई,
    तुमसे मिलकर मुझे आत्महत्या है करनी,
    द्धू दूह रही थी मैं अब तक छलनी,
    प्रिया_( मिलन से खुशी, और तकलीफ से दुखी,
     दो सदमें एक साथ)
     क्या बोल रही हो,
     ऐसे क्यों कह रही हो,
     ऐसा कुछ मत कहो,
      कल आकर तुम मिलो,
  (प्रिया मिलने को खड़ी ,
  वहां सोच रही,
   एक मॉडल आएगी ,
   जोर से मुस्कुराएगी,
    मेरे गले से लग जाएगी,
    सारे गिले शिकवे भुला ,
    सीने से लगाउंगी,
    इतने बरस बाद कैसे पहचान पाऊंगी,
    उसका सुंदर चेहरा मैं तो पहचान जाऊंगी,
    पर मेरी सूरत बदल चुकी है,
    (कोई बात नहीं )मैं उसको याद दिलादूंगी,
    ऐसा कुछ भी नहीं था ,
    जैसा सोच रही थी,
    (मलिन वस्त्र पहने, एक महिला वहां आई)
    प्रिया-आगे जाओ मैं किसी का इंतजार कर रही,
    महिला- देखो तेरी मोनिका (रोते हुए)
    प्रिया- दिल धक से हुआ, इतनी बुरी दशा,
    (एक टक देख रही, उसे साथ लेकर गई,)
दोनों बात कर रही, दोनों की आंखें रो रहीं,
लंगूर ने अपनी जात जना दी,
मुझे घर छोड़ दूसरी पटा ली,
घर में बच्चे रो रहे हैं,
 वो हमें छोड़ गए हैं,
  कहता सड़क बिठाउगा ,
  सब से भीख मंगवाउगा,
  कई दिन भूखी रही हूं,
  तरस तरस कर जी हूं,
   तिनका तिनका जोड़ा ,
   तब जाकर पाया थोड़ा,
    मां को तरस था आया,
    मां ने एक कमरा बनवाया,
    उसने रिश्ता तो बनाया पर ,
    बिल्कुल ना निभाया,
    जब सास को बताया,
    बोली बच्चों को अनाथ आश्रम भेज,
    तू जहर खा के मर जा ,
    समझ ना आए मैं क्या करूं ,
     क्या खाकर मैं मरू,
     शादी का अर्थ है,
     एक दूसरे का पूरा ख्याल रखना,
     सुख और दुख में साथ रखना,
     अपने परिवार का हिसाब रखना,
     सब कुछ ले कर चला गया,
      छोड़ा नहीं कोई सबूत ,
      उसे बनाया मंगलसूत्र
  प्रिया- तू मत हो उदास,
       कानून देगा तेरा साथ,
       बाल हो जाएंगे सारे गंजे,
       कानून के हाथ है बड़े लंबे,
 मोनिका- थाने गई थी एक बार,
       नहीं सुनी मेरी गुहार,
       बातें सुनाई मुझे हजार,
       नहीं है मेरा कोई हमदर्द,
        पति एक साथ बना सकता है कई संबंध,
        नया कानून है ऐसा आया,
        कानून ने पूरा परिवार खाया,
        क्या करें कुछ समझ ना आए,
         तू ही मुझे कोई मार्ग बताएं,
         मुझे नहीं है अब जीना,
          मेरे बच्चों का ख्याल रखना,
  प्रिया- तू सुन ले मेरी सीख,
      तुझे हटाकर सौतन बिठाएगा,
       तेरे बच्चों से मंगवायगा भीख,
          तुझे अभी जीना होगा, 
          गम अभी थोड़ा पीना होगा,
          टूटे हुए दिल को सीना होगा,
          तुझसे बिछड़ कर मैं ,
          तिल तिल जल जल रही थी,
          खुश मैं भी ना थी ,
          अंगारों पर चल रही थी,
         जीवन कांटो पर जी रही थी,
          जीना भूल गई थी,
          जीना मुश्किल हो गया था ,
          ब्राह्मण कुल में जन्म लिया है,
          कंप्रोमाइज किया है,
          शादी तो हो गई
          प्यार बिल्कुल भी नहीं
          साथ रहकर बस,
          हूं बच्चे पाल रही,
      यह सब भूल कर हम,
           चलो साथ में जिए,
           गम के प्याले मिलकर ,
           चलो साथ में पिए,
           उम्र हो गई तो क्या
           अभी कुछ ना बीता
           तुम साथ मिल गई हो ,
           हौसले बुलंद कर लेंगे,
           सब कुछ भूल कर हम ,
           फिर से साथ जी लेंगे,
      शुरू हो गया बातों का सिलसिला,
      हर रोज फोन आता,
      हर घंटे व्हाट्सएप होता
  मोनिका  - लंगूर मुझसे है लड़ रहा,
       लड़की के साथ दिन भर रह रहा ,
       लड़की का नंबर मेरे हाथ लगा,
       नाम सुनीता मुझे आज पता चला,
       व्हाट्सएप डीपी में चेहरा दिखा
       छोटी है हर एंगिल से, 
       मलिन बस्ती में है रहती,
       उसे फोन है किया,
       थोड़ा लालच है दिया ,
       जो चाहिए तू ले ले ,
       मेरा पति रिहा कर दे,
 सुनिता- हंसकर बोली जा जा
       तेरे जैसे बहुत देखे,
       तुझे हटाकर फोटो से,
        मुझको बिठायेगा,
        जीवन के सारे पल,
         मेरे साथ बिताएगा,
        दुनिया की सारी खुशियां,
         मेरे कदमों में बिछाएगा,
         मुझसे वादा है किया,
          मेरा साथ निभाएगा,
  मोनिका-तुझसे पहले यह वादे,
         उसने मुझसे किए थे,
         शादी के बाद सारे भुला दिए थे,
         तेरे आगे पूरी तेरी उम्र पड़ी है,
         तेरे बाप की उम्र का ,
         तेरे लिए नहीं है,
         तू अठरा बरस की,
         बेटी सत्रह की मेरी,
         तुझसे बड़ी हूं उम्र में,
          बात मान जा तू मेरी,
     सुनीता- तेरी बातों का मुझ पर,
           कोई असर ना होगा,
           जाकर उसको बोल ,
           जो दे रहा है तुझे धोखा,
           मुझे मिल रहा है सब कुछ,
            किस्मत ने दिया है मौका
             झोपड़ी में पड़ा मेरे फि्ज, सोफा,
             अर्जेस्ट फैन स्मार्टफोन का दिया मुझे तोहफा
             मैं क्यों मारूं अपने पैर में कुल्हाड़ी,
             तुम जानो यह प्रॉब्लम है तुम्हारी,
      ( मोनिका उस दिन बहुत रोई,
            कई रातों तक सोई नहीं ,
            था साथ में उसके कोई नहीं,
            मां और बहनों का काम था चंगा,
            कोई नहीं ले रहा था उसके पति से पंगा,
            घर जाकर रोज करता दंगा,
            रात भर रहती चीख पुकार,
            बच्चों का जीना दुश्वार,)
            (एक दिन तो गज़ब हो गया,
            पूरा दिन पिया को नहीं आया कोई फोन,
            हैरान प्रिया ने किया मोनिका को फोन ,
            तू ठीक तो है ना, काल क्यों नहीं किया,
            मोनिका- खुश हूं आज , बहुत दिनों बाद आज         
            प्यार से (लंगुर ने)मुझसे की बात,
            यह बात मैं भूल नहीं पा रही है ,
            बस थोड़ी नींद ज्यादा आ रही है,
            सुबह से कुछ खाया भी नहीं ,
            खाना बनाया भी नहीं,
            रात को लंगूर ने अपने हाथों से,
             मुझे कुल्फी खिलाया,
             अब ना होने दुंगा तुझे कोई ग़म,
             मैं मिटा दूंगा तेरे सारे गम,‌
              खाते ही मुझे वोमीटिंग हो गई,
              मैं गुमसुम हो गई,
              बुलाकर लाया एक कंपाउंडर,
               चला इंजेक्शन लगवाने,
               सही नहीं थे उसके तेवर,
                पड़ोस की भाभी थी मेरे फेवर,
             प्रिया -गम नहीं तुझे मिटाएगा,
             नींद की दवा तुझे रोज पिलाएगा,
             बातों में मत आना ,
              हाथ से उसके कुछ ना खाना,
              (फ़ोन हुआ अगले दिन)
        मोनिका-रात को मेरे लिए गिलास दूध लाया,
              वह दूध मैंने बिल्ली को पिलाया,
              आज मैं तो जाग रही हूं ,
              वह बिल्ली सो रही है,
              अब समझ में आया यह राज,
              नाइट शो देखने चलो मुझसे बोला कल रात,
              गंगा बैराज घुमा दूं चलो तुमको आज,
              क्यों घुमाना चाहता है मुझको रातों में,
          मैं क्यों आ जाती हूं उसकी मीठी मीठी बातों में,
        मेरे पास अब होगा इसका जवाब ,
        क्योंकि मैं पढ़ रही हूं जासूसी किताब,
        आप मेरे पास है मित्रता का पावर,
         मेरे घर के पास लगा है मोबाइल का टावर,
         अब मैं और ना दुख सहूगी,
         सारी बात मैं तुझ से करूंगी,
              
             
       निशी द्विवेदी 
अंतर्राष्ट्रीय सचिव
 साहित्य सेवा संस्थान 
कानपुर उत्तर प्रदेश     

Tuesday, 1 June 2021

निधिवन चलो सबको देती हैं निमंत्रण


निधिवन चलो सबको देती आमंत्रण,
                         साथ रहो है निशा का निमंत्रण,
  हाथ पकड़ लो कस के सभी का,
                    सभी को मिला है निशा का निमंत्रण,
कान्हा ने हाथ पकड़ा है मेरा,
                     आया है मुझको निशा का निमंत्रण,          ए दिन के उजालो तू खामोश हो जा,
                         भेजा है मुझको निशा ने निमंत्रण,
उजालो ने किया है धोखे से घायल ,   
                    लगाया निशा ने मेरे जख्मों पर मरहम,
रोशनी में दर्द को छुपाना है होता, 
                     दिखाया निशा ने मेरे जख्मों को दर्पण,
निशा को किया मैंने आत्मसमर्पण ,
                    जबसे निशा ने भेजा है मुझको निमंत्रण ,   
 दिन के उजाले मुझे रास ना आए,
                         लगाया है दिल से निशा का निमंत्रण,
 गाया है कवियों ने सुबह का वह नगमा, 
                       निशि दिन गांऊ मैं निशा का निमंत्रण, उजालों में लगाया है दुनिया का मेला,  
                               निशा में नहीं ऐसा कोई झमेला,  
उजालों ने किया मुझे सबसे पराया ,
                                   निशा ने मुझे अपना बनाया,  उजालों में लगे कितने तानों के खंजर,              
                  अंधेरी हो या चांदनी देती अलग ही मंजर ,  
माना कि चोर डाकू और लुटेरे,
                                 निशा को ही तो लगाते हैं फेरे,    
मंदिर में फेरे हों सुबह सवेरे,
                     निधिवन में निशा को मेरे कान्हा के मेले,
 वृंदावन चलने का देती आमंत्रण ,                   
                        आ जाओ भक्तों है निशा का निमंत्रण, 
   सबस्क्राइब करके लगा लो तुम चंदन,
                            सभी को मैं देती निशा का निमंत्रण,
  दिन के उजालों में शोर बहुत है,
                                  खामोश निशा है देती निमंत्रण,
  अगर दिल में तेरे हो प्रेम समर्पण,
                        लगाओ तुम गोते है निशा का निमंत्रण,   
 निशि गोपाल का रिश्ता अनोखा ,                                                   
                             दोनों के रंगों का भेद हो जानना ,
       तो आ जाओ तुमको है,
                                      मैं देती निशा का निमंत्रण ,  
  चाह शांति की गर हो दिल में तुम्हारे,
                    तो आ जाओ तुमको निशा का निमंत्रण,
    शांति इतनी कि भूल ना पाओगे ,
  कानों से आती है सनसनाहट तुम्हें है निशा का निमंत्रण,
  ये आमंत्रण निशदिन देती तुमको, मैं निशा का निमंत्रण ,    
  
निशी द्विवेदी-

अंतर्राष्ट्रीय सचिव
साहित्य सेवा संस्थान                                                                        
     कानपुर उत्तर प्रदेश,                             

Monday, 31 May 2021

दो जून की रोटी

रोटी... रोटी ...रोटी......... दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,

गोल, मोटी, छोटी,  जैसी हो .....दो जून की रोटी,
आड़ी तिरछी भी बन जाती.......दो जून की रोटी,
मां के हाथ से प्यारी लागे....... दो जून की रोटी,
अमीर गरीब सभी खाते .........दो जून की रोटी,

रोटी ....रोटी .....रोटी............. दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है ..........दो जून की रोटी,
 
 किस्मत वालों को मिलती है .....दो जून की रोटी,
 पिता कमा कर लाते हैं .......दो जून की रोटी,
  मां घर बनाती है ,..............दो जून की रोटी ,
  तब जाकर बन पाती हैं ......दो जून की रोटी,

रोटी... रोटी ...रोटी......... दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,
 
किस्मत वालों को मिलती है .....दो जून की रोटी,
सबको कहां नसीब है ............दो जून की रोटी ,
बड़े जंग से मिलती है ............दो जून की रोटी,
 तब संग बैठकर खाते हैं .........दो जून की रोटी,
 
रोटी... रोटी ...रोटी............... दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,

  भाग्य वालों को मिलती है..... दो जून की रोटी 
  अभागे से छिन जाती है .......दो जून की रोटी ,
  परदेस जाता है कमाने .........दो जून की रोटी 
  वहां खरीद के खाता है ........दो जून की रोटी,

रोटी... रोटी ...रोटी............. दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,

   अनमोल बड़ी है............... दो जून की रोटी 
   अपराध कराती है ये .........दो जून की रोटी 
   खून पसीना बहाती है.….... दो जून की रोटी
   आसानी से हाथ ना आती.... दो जून की रोटी

रोटी... रोटी ...रोटी......... दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,

अरमान सजाए बैठे हैं सब ......दो जून की रोटी,
 सबके नाम लिखी ना होती..... दो जून की रोटी,
 कुछ सम्मान से पाते हैं .........दो जून की रोटी ,
 अपमान सह कर कुछ पाते हैं ....दो जून की रोटी

रोटी... रोटी ...रोटी......... दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,

पापी पेट के डिमांड है .....दो जून की रोटी,
कुछ चोरी कर खाते........ दो जून की रोटी ,
 कुछ दान में खिलाते... ....दो जून की रोटी,
 सभी कमा कर खाते .......दो जून की रोटी,

रोटी... रोटी ...रोटी.............. दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,

जरूरत सभी की बन जाती......... .दो जून की रोटी,
दूध मुहे बच्चे को बिकवाती है .......दो जून की रोटी,
मां भी बिकती है देने बच्चे को ......दो जून की रोटी,
मान सम्मान से परे होती है ,........दो जून की रोटी,

रोटी... रोटी ...रोटी.............. दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,

जुदा अपने से करवा देती है .....दो जून की रोटी,
परदेस कभी बसा देती है........दो जून की रोटी,
जरूरत सभी की होती है........दो जून की रोटी,
जिसका नाम लिखा हो उस की होती.. दो जून की रोटी,

रोटी... रोटी ...रोटी.............. दो जून की रोटी,
 बड़े संघर्ष से बनती है........... दो जून की रोटी,
निशि द्विवेदी
 अंतर्राष्ट्रीय सचिव ,
साहित्य सेवा संस्थान, कानपुर उत्तर प्रदेश

Sunday, 30 May 2021

तुम को ही चाहता है दिल,

साजन बिन रहूं मैं कैसे ,
    कैसे जियूं मैं तुम बिन,

           मीलों लंबी लगी रातें,
                 सदियों से लंबा लगे लम्हा,

                         रुकती चलती रही सांसे,
                              सब कुछ अधूरा लगे तुम बिन,

महसूस खुद को मैंने ,
   कभी नहीं करती तुम बिन,

       पहाड़ों से ऊंचा दुख मेरा,
            बहुत ऊंचा लगे तुम बिन,

                  खुद को भी मैं सपना समझती ,
                       सपना समझती हूं तुम बिन,

                           साहित्यकार  ___  निशि दि्वेदी

Thursday, 27 May 2021

ये रेशम के रिश्ते

आसमानो से ऊंचे होते हैं यह" रेशम के रिश्ते"-२
पाताल से ज्यादा गहरे होते यह" रेशम के रिश्ते"-२

गंगा से भी पावन होते यह "रेशम के रिश्ते "-२
सागर से भी निर्मल होते यह "रेशम के रिश्ते "-२

शहद से ज्यादा मीठे होते हैं यह "रेशम के रिश्ते"-२
बर्फ से ज्यादा शीतल होते हैं यह" रेशम के रिश्ते"-२

भावनाओ की माटी में चलते"यह रेशम के रिश्ते"-२
श्रद्धा और विश्वास से सींचते" यह रेशम के रिश्ते"-२

प्रेम समर्पण से पूजते हैं यह" रेशल से रिश्ते"-२
तिल तिल कर के बढ़ते यह "रेशम के रिश्ते"२

तोड़े से भी ना टूटे यह" रेशम के रिश्ते"-२
सक की तलवारों से कटते यह" रेशम के रिश्ते"-२

टूटे कभी फिर ना जुड़ पाते हैं यह "रेशम के रिश्ते"-२
आंसू बन आखो से  गिरते यह "रेशम के रिश्ते"-२

कभी कपट से छले जाते हैं यह "रेशम के रिश्ते"-२
फिर टूट धरा बिखर जाते हैं यह" रेशम के रिश्ते"-२

 आंगन में किलकारी भरते यह "रेशम के रिश्ते"-२
दौलत से ना तोले जाते यह "रेशम के रिश्ते"-२

हीरे से अनमोल बड़े हैं यह "रेशम के रिश्ते -२
मोहन सा मोह  रखतें हैं यह "रेशम के रिश्ते"-२

रूप रंग और धर्म न देखें यह रेशम के रिश्ते"-२
वर्ण और शर्म न देखें यह "रेशम के रिश्ते"-२

पावन भक्ति से सराबोर होते हैं यह "रेशम के रिश्ते"-२
काली घटाओं से घनघोर होते हैं यह" रेशम के रिश्ते"-२

पैसों से कभी न तौले जाते ये "रेशम के रिश्ते"-२
भावनाओ के भूखे होते हैं यह" रेशम के रिश्ते"-२

अनमोल बड़े होते हैं यह" रेशम के रिश्ते"-२
कच्चे धागे से बंधे होते हैं" ये रेशम के रिश्ते"-२

‌   दोनों हाथों से चलते हैं ये"रेशम के रिश्ते"-२
,प्रेम की नरमी में बढ़ते हैं ये"रेशम के रिश्ते"-२


निशि, पिंकी द्विवेदी
(अंतर्राष्ट्रीय सचिव)
साहित्य सेवा संस्थान,

 

Monday, 24 May 2021

निशा का निमंत्रण

निधिवन चलो सबको देती आमंत्रण,
                         साथ रहो है निशा का निमंत्रण,
  हाथ पकड़ लो कस के सभी का,
                    सभी को मिला है निशा का निमंत्रण,
कान्हा ने हाथ पकड़ा है मेरा,
                     आया है मुझको निशा का निमंत्रण, ए दिन के उजालो तू खामोश हो जा,
                         भेजा है मुझको निशा ने निमंत्रण,
उजालो ने किया है धोखे से घायल ,   
                    लगाया निशा ने मेरे जख्मों पर मरहम,
रोशनी में दर्द को छुपाना है होता, 
                     दिखाया निशा ने मेरे जख्मों को दर्पण,
निशा को किया मैंने आत्मसमर्पण ,
                    जबसे निशा ने भेजा है मुझको निमंत्रण ,    दिन के उजाले मुझे रास ना आए,
                         लगाया है दिल से निशा का निमंत्रण,
 गाया है कवियों ने सुबह का वह नगमा, 
                       निशि दिन गांऊ मैं निशा का निमंत्रण, उजालों में लगाया है दुनिया का मेला,  
                               निशा में नहीं ऐसा कोई झमेला,  
उजालों ने किया मुझे सबसे पराया ,
                                   निशा ने मुझे अपना बनाया, उजालों में लगे कितने तानों के खंजर,              
                  अंधेरी हो या चांदनी देती अलग ही मंजर ,  माना कि चोर डाकू और लुटेरे,
                                 निशा को ही तो लगाते हैं फेरे,    मंदिर में फेरे हों सुबह सवेरे,
                     निधिवन में निशा को मेरे कान्हा के मेले,
 वृंदावन चलने का देती आमंत्रण ,                   
                        आ जाओ भक्तों है निशा का निमंत्रण, 
   सबस्क्राइब करके लगा लो तुम चंदन,
                        सभी को मैं देती निशा का निमंत्रण,
  दिन के उजालों में शोर बहुत है,
                              खामोश निशा है देती निमंत्रण,
  अगर दिल में तेरे हो प्रेम समर्पण,
                    लगाओ तुम गोते है निशा का निमंत्रण,   
 निशि गोपाल का रिश्ता अनोखा ,                            
                           दोनों के रंगों का भेद हो जानना ,
       तो आ जाओ तुमको है,
                                      मैं देती निशा का निमंत्रण ,  
  चाह शांति की गर हो दिल में तुम्हारे,
                    तो आ जाओ तुमको निशा का निमंत्रण,
    शांति इतनी कि भूल ना पाओगे ,
  कानों से आती है सनसनाहट तुम्हें है निशा का निमंत्रण,
  ये आमंत्रण निशदिन देती तुमको, मैं निशा का निमंत्रण ,    
  
निशी द्विवेदी-
अंतर्राष्ट्रीय सचिव
साहित्य सेवा संस्थान                                                 कानपुर उत्तर प्रदेश,                    

Monday, 17 May 2021

हैप्पी प्रॉमिस डे

राधा ओ राधा तुमसे है वादा,
    छोड़ के ना जाऊंगा किया है इरादा,
                    साथ निभाऊंगा मेरा है वादा,

मेरे बिना तुम कैसे जियोगी,
     कैसे जुदाई का जहर पियोगी,
              मेरे बिना तुम जी ना सकोगी,

दिल में तुम्हारे हमी हम रहेंगे,
जीवन का जहर हम संग संग पिएंगे,
तुम्हारे जीवन में कोई हो ना हो हम रहेंगे,

तुम्हारा साथ है हमको प्यारा,
तुम बिन ना होगा जीवन में उजाला,
           तुमसे साथ है हम को निभाना

कमी नहीं तुम्हारी जरूरत बनेंगे,
   हर सितम तुम्हारा हंसकर सहेंगे,
       आज तुमसे सारे हम वादे करेंगे,

विश्व साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव _____                                                        निशि द्विवेदी


मैं अंडा हूं,

मैं अंडा हूं,
 मैं चंगा हूं ,
ना लेता किसी से पंगा हूं,
मैं अंडा हूं ,
 कॉकरोच का,
चिपके हैं कुछ लाईन से,
सरकारी दफ्तर की फाइल से,
मैं अंडा हूं,
मैं अंधा हूं ,
ना देख सकूं मैं कुछ भी,
 मैं ऐसा बंदा हूं,
मैं बंद हूं अपने खोल में,
और फाइल बंद इस कमरे में,
मैं इस फाइल सा मजबूर हूं,
मुझे इंतजार कवर के फटने का,
फाइल को बाबू की जेब भरने का,
मैं दबा इस फाइल से,
 फाइल दबी कई फाइल से,
है यहां कई आते जाते,
कीड़े मकोड़ों जैसे,
चलते फिरते आगे बढ़ते,
मेरे भी और फाइल के करीब भी,
फिर भी ना कोई हाथ लगाता,
मुझे भी और फाइल को भी,
मैं चंगा था ,
मैं अंधेरे में संघर्ष में था,
मैं सुन रहा हूं,
कई सिसकियां,
जो दबी इन फाइलों में थी,
मैं सुन रहा था उनके दर्द को,
जो सच दफन था फाइलों में,
मैं पूछ बैठा इस फाइल से,
क्या सच्चाई है तेरी?
क्यों दबी है यहां अकेली?
वह बोली सुन ध्यान से,
 पिछले 11 सालों से,
मांग रही हूं न्याय ,
खाकी वर्दी वालों ने ,
करे विभिन्न उपाय,
बदल दिए असलाहै,
मैं फाइल हूं विमल मर्डर केस की,
जिसने झगड़ा होने पर पुलिस लियो बुलाए,
थाने से चले दो सिपाही आए,
सतीश ने फिर उनके सामने,
अपनी पिस्टल से गोली दीया चलाए,
पुलिस पकड़ कर ले गई उनको,
और बदल दी असलाहै,
मजिस्ट्रेट ने कह दिया,
यह वह असलाह ना आए,
सच दबा पड़ा फाइल में,
झूठ हंस-हंसकर उत्सव रहा मनाए,
मैं अंडा था,
 मैं चंगा था,
जब तक दुनिया से अनजान था,
मैं संघर्षरत था सच सुनने से पहले,
मैं सुनकर दुखी हो गया हूं,
मैं निष्क्रिय पड़ा हूं,
नहीं देखनी मुझे बाहर दुनिया,
जिस दुनिया में झूठ का बोलबाला,
और सच का मुंह दबा डाला।।।।।

इस सरकार को पैसे देकर, तुमने लिया खरीद।
उस सरकार से न पाओगे ,न मिलेगी भीख।।

विश्व साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव 
___निशि द्विवेदी




Tuesday, 11 May 2021

मां तू मुझसे क्यों इतनी नफरत करती,

मां तू मुझे क्यों नहीं समझती,
                                   मैं तेरी ही तो बेटी हूं,
 मैं तुझसे प्यारी प्यारी बातें ,
                                  करने को तरसती हूं,
  मां तू मुझसे क्यो इतनी ,
                                  नफ़रत करती ,
मैंने तेरा ही कहना माना ,
                       तेरी ही पसंद से ब्याह रचाया, 
ससुराल में सारे रिश्ते को ,
                                  अच्छे से निभाया,   
 जो तूने सिखाया,
                     वही तो दोहराया है  ,
याद है मुझे तेरे हाथों के बने ,
                                   खाने का स्वाद  ,       
 सोते समय मेरे बालों को ,
                               तेरा धीरे से सैहलाना,
 मेरे सर के नीचे वह धीरे से,
                                 तेरा तकिया लगाना, 
ठंड में मुझे कंबल में छुपाना,                                                                                                                                वह गर्मी में तेरा पंखा डोलाना ,                मेरी शादी कर, 
                 मुझसे लिपट कर सीने से लगाना,
आज तेरा मुझसे  यूं अचानक,
                                   खफा हो जाना, 
मां तू मुझे क्यों नहीं समझती,
                                  मैं तेरी ही तो बेटी हूं,  
तेरी हर खुशी को,
                       पूरी शिद्दत से निभाया है, 
तुम मेरे सपनों को,
                       कभी नहीं समझी,
तेरे लिए मैंने रौंद डाले सपने,
                           जो देखे थे खुली आंखों से,                                                              
मां तू मुझे क्यों नहीं समझती,
         मैं तुझसे प्यारी -२बातें करने को तरसती,
तू मुझसे क्यों इतनी नफरत करती,
                         मां तू मुझे क्यों नहीं समझती,
तुझे लगता है कि मैं नहीं समझती,
            मां तू मुझे अननोन नंबर से कॉल करती,
मेरी हेलो को तू खामोशी से सुनती ,  
                       ‌ ‌            तू जवाब नहीं दे सकती,  
  मां तू मुझसे क्यों इतनी नफरत करती , 
                                         मैं तेरी ही तो बैठी हूं                           
 रचनाकार                        ्््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््      _   निशा तिवारी                           
 

Monday, 3 May 2021

नानी घर के वृक्ष

मेरी नानी के घर के बाहर एक बरगद का वृक्ष है,
जब से होश संभाला मैंने तब से खड़ा वह वृक्ष है,

एक दिन मैंने मां से पूछा कितना पुराना यह वृक्ष है,
मां बोली जब से होश संभाला यही खड़ा यह वृक्ष है,

 मां से बोली बता मुझे मां  कितना पुराना वृक्ष है,
जब मां छोटी थी जिज्ञासा में आया था यह वृक्ष है,

तब मां ने नानी से पूछा माँ कितना पुराना यह वृक्ष है,
नानी ने बताया उनके दादा ने था लगाया यह वृक्ष हैं,

मेरी जिज्ञासा पूर्ण हुई मैं पहुंची और बोली
बरगद दादा बता मुझे कितना पुराना यह वृक्ष है,

निशी उर्फ पिंकी द्विबेदी

बरगद दादा ने मुझे बहुत लंबी कहानी सुनाई 
फुर्सत में किसी दिन सुनाऊं की सारी कहानी

वृक्ष की अभिलाषा

वृक्ष हरा, घना रूप में विशाल हूं,
   जीवनदान काम है,
       धरा पर अटल खड़े,
            तले वृक्ष नदी बहे,
  बांह फैला हम यहां अटल खड़े,अटल खड़े,
     विहंग साख साख है,
        चातक,मयूर,कोकिला,
          मधुर गीत गा रहे,
 उद्दंड वानर शाख को हिला रहे, हिला रहे,
    पक्षी घोसले धरे,
       कांधे पर मेरे बसे,
           चोच से प्रहार करें,
धने तने को मेरे आसरा बना रहे,आसरा बना रहे,
पुष्प लताओं के झुंड,
अमृता गिलोय भी,
परिवेश को महका रहे,
तने तले पे चींटियों के बिल बने,बिल बने,
मोटी मोटी चीटियां,
कुछ लाल है चीटियां,
समूह को बना रहे,
भुजंग भी मेरे कोटरो में जा रहे, कोटरों में जा रहे,
काले कुछ छोटे बड़े,
शाख पर रेंगते,
धरा को है देखते,
डाल पर मेरी लाखों पत्ते जड़े, लाख पत्ते जड़े, 
 मधुर फल यहां लगे,
 फल पक धरा गिरे,
 कुछ नदी बीच गिरे,
 मधु के छत्ते भी मेरे साख पर लगे,मेरी साख पर लगे,
 मधु को बना रही,
 प्रकृति को सजाए रही,
 खुशी के गीत गा रही,
 बन पिता यहां हम ढाल बंन खड़े, ढाल बन खड़े,
 आंधी और तूफान से,
 लु और तपन से भी,
 बारिश की हर बूंद से,
 सभी को बचा रहे फर्ज को निभा रहे, फर्ज को निभा रहे,
 एक पथिक नदी तटे,
 लगा बड़ा थके थके,
 दूर से चले चले,
 फलों को निहार रहा धरा पर खड़े खड़े, धरा पर खड़े खड़े,
 डाल दिए वहीं पर,
  चार फल पके पके,
  खा के फल जल पिए,
 आभार व्यक्त किया वृक्ष तले खड़े-खड़े, खड़े ,
 कल जोर वृक्ष कहे,
 आभार बोल के मुझे,
  लघु मत कीजिए,
  कह रहा हूं जो मैं उसे सुन लीजिए, उसे सुनने लीजिए
  वृक्ष मत काटिए,
  परिवेश पलने दीजिए,
 धरा करो हरा भरा,
 मनुष्य की तरह हमें भी रहने दीजिए, हमें भी रहने दीजिए,
 जन्म से लेकर मृत्यु तक,
  तेरे काम आए ,
  मेरी ही लकड़ियां, मेरी ही लकड़ीया
 पुत्र जने जैसे घर,
 वृक्षारोपण कीजिए,
 मॉल बने ना बने , 
 वृक्ष रहने दीजिए, हमें भी रहने दीजिए,
 ऑक्सीजन का हूं कारखाना,
  ऐसे बढ़ने दीजिए,
  सृष्टि यह सभी की है,
  चक्र चलने दीजिए इन्हें पनपने दीजिए,
  हरा वृक्ष ना काटिए,
  पांच वृक्ष लगाइए,
  गमलों को सजाइए,
   क्यारी को महकाईये
    हरा भरा बनाइए,
   प्रकृति को अब और ना उजाड़ीये ,
   चलिए हाथ में लाइए,
    मिला के हाथ अपने देश को बचाईऐ,
    महामारी से बचाइए,
     यही पाठ अपने बच्चों को सिखाइए,
    इस धरा को अपने गहना पहनाइए

साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव  ___निशी उस पिंकी दुबेदी
 
 
   

सबसे प्यारा मेरा कान्हा!

सबसे प्यारी सूरत कान्हा,
      सबसे प्यारा कान्हा नाम है,
            वांह फैलाकर मांगू दुआ,
                 कोई नहीं अनजान है,

प्यार की प्रतिमूर्ति हो,
      दयालु तेरा नाम है,
             संसार से तुम हो ,
                   तुमसे ही संसार है,

मिटा दो यह महामारी,
     हर लो मेरी चिंता सारी,
          तेरा नाम बड़ा अनमोल,
               जपन में लागे कोई ना मोल ,     
   
गोवर्धन को उठाया,
    शेष सिर तांडव दिखाया,
         पूतना के प्राण खींच रुलाया,
                 महा पापी कंस को मिटाया,

इस सृष्टि को पावन कर दो,
     जीवन में फिर से रस भर दो,
               दिल में  जगा  दो  भक्ति,
                    अब दिखा दो अपनी शक्ति,

हम तेरे दर पर आएंगे , 
     सदा तेरी महिमा गाएंगे,
           भक्ति की गंगा बहाएंगे,
                  तेरे चरणों में घर बनाएंगे,

विश्व साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव -
                               (पिंकी ) निशि द्विवेदी

वृक्ष की पुकार,

वृक्ष हरा, घना रूप में विशाल हूं,
   जीवनदान काम है,
       धरा पर अटल खड़े,
            तले वृक्ष नदी बहे,
  बांह फैला हम यहां अटल खड़े,अटल खड़े,
     विहंग साख साख है,
        चातक,मयूर,कोकिला,
          मधुर गीत गा रहे,
 उद्दंड वानर शाख को हिला रहे, हिला रहे,
    पक्षी घोसले धरे,
       कांधे पर मेरे बसे,
           चोच से प्रहार करें,
धने तने को मेरे आसरा बना रहे,आसरा बना रहे,
पुष्प लताओं के झुंड,
अमृता गिलोय भी,
परिवेश को महका रहे,
तने तले पे चींटियों के बिल बने,बिल बने,
मोटी मोटी चीटियां,
कुछ लाल है चीटियां,
समूह को बना रहे,
भुजंग भी मेरे कोटरो में जा रहे, कोटरों में जा रहे,
काले कुछ छोटे बड़े,
शाख पर रेंगते,
धरा को है देखते,
डाल पर मेरी लाखों पत्ते जड़े, लाख पत्ते जड़े, 
 मधुर फल यहां लगे,
 फल पक धरा गिरे,
 कुछ नदी बीच गिरे,
 मधु के छत्ते भी मेरे साख पर लगे,मेरी साख पर लगे,
 मधु को बना रही,
 प्रकृति को सजाए रही,
 खुशी के गीत गा रही,
 बन पिता यहां हम ढाल बंन खड़े, ढाल बन खड़े,
 आंधी और तूफान से,
 लु और तपन से भी,
 बारिश की हर बूंद से,
 सभी को बचा रहे फर्ज को निभा रहे, फर्ज को निभा रहे,
 एक पथिक नदी तटे,
 लगा बड़ा थके थके,
 दूर से चले चले,
 फलों को निहार रहा धरा पर खड़े खड़े, धरा पर खड़े खड़े,
 डाल दिए वहीं पर,
  चार फल पके पके,
  खा के फल जल पिए,
 आभार व्यक्त किया वृक्ष तले खड़े-खड़े, खड़े ,
 कल जोर वृक्ष कहे,
 आभार बोल के मुझे,
  लघु मत कीजिए,
  कह रहा हूं जो मैं उसे सुन लीजिए, उसे सुनने लीजिए
  वृक्ष मत काटिए,
  परिवेश पलने दीजिए,
 धरा करो हरा भरा,
 मनुष्य की तरह हमें भी रहने दीजिए, हमें भी रहने दीजिए,
 पुत्र जने जैसे घर,
 वृक्षारोपण कीजिए,
 मॉल बने ना बने , 
 वृक्ष रहने दीजिए, हमें भी रहने दीजिए,
 ऑक्सीजन का हूं कारखाना,
  ऐसे बढ़ने दीजिए,
  सृष्टि यह सभी की है,
  चक्र चलने दीजिए इन्हें पनपने दीजिए,
  हरा वृक्ष ना काटिए,
  पांच वृक्ष लगाइए,
  गमलों को सजाइए,
   क्यारी को महकाईये
    हरा भरा बनाइए,
   प्रकृति को अब और ना उजाड़ीये ,
   चलिए हाथ में लाइए,
    मिला के हाथ अपने देश को बचाईऐ,
    महामारी से बचाइए,
     यही पाठ अपने बच्चों को सिखाइए,
    गज भर धरा पर मुझे लगाइए,
थोड़ा जल् लाइए,
इस धरा को गहना पहनाईऐ,
 
 विश्व साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव-
                                      निशि पिंकी द्विवेदी,
   
   
 

सृष्टि के निर्माता कृष्ण हमारे ॥

पृकृति के इस चित्र को किसने बनाया?

हरी-भरी धरा को खुशबू से महकाया,

रंग बिरंगे फूलों से धरती को सजाया,

वादियों को खुशमिजाज जिसने बनाया,

बारिश की बूंदों से किसने नहलाया,

धुप की रोशनी से धरा को चमकाया,

चांद की चांदनी को पूर्णमासी से दमकाया,

लगाकरअमावस्या का टीका बुरी नजर से बचाया,

 झोंक रहे हैं वरिष्ठ जन महामारी की भट्टी में,

डगमगा रही है नैया प्रभु तुमको पार है करनी ,

Wednesday, 28 April 2021

वृक्ष की पुकार,

वृक्ष हरा, घना रूप में विशाल हूं,
   जीवनदान काम है,
       धरा पर अटल खड़े,
            तले वृक्ष नदी बहे,
  बांह फैला हम यहां अटल खड़े,अटल खड़े,
     विहंग साख साख है,
        चातक,मयूर,कोकिला,
          मधुर गीत गा रहे,
 उद्दंड वानर शाख को हिला रहे, हिला रहे,
    पक्षी घोसले धरे,
       कांधे पर मेरे बसे,
           चोच से प्रहार करें,
धने तने को मेरे आसरा बना रहे,आसरा बना रहे,
पुष्प लताओं के झुंड,
अमृता गिलोय भी,
परिवेश को महका रहे,
तने तले पे चींटियों के बिल बने,बिल बने,
मोटी मोटी चीटियां,
कुछ लाल है चीटियां,
समूह को बना रहे,
भुजंग भी मेरे कोटरो में जा रहे, कोटरों में जा रहे,
काले कुछ छोटे बड़े,
शाख पर रेंगते,
धरा को है देखते,
डाल पर मेरी लाखों पत्ते जड़े, लाख पत्ते जड़े, 
 मधुर फल यहां लगे,
 फल पक धरा गिरे,
 कुछ नदी बीच गिरे,
 मधु के छत्ते भी मेरे साख पर लगे,मेरी साख पर लगे,
 मधु को बना रही,
 प्रकृति को सजाए रही,
 खुशी के गीत गा रही,
 बन पिता यहां हम ढाल बंन खड़े, ढाल बन खड़े,
 आंधी और तूफान से,
 लु और तपन से भी,
 बारिश की हर बूंद से,
 सभी को बचा रहे फर्ज को निभा रहे, फर्ज को निभा रहे,
 एक पथिक नदी तटे,
 लगा बड़ा थके थके,
 दूर से चले चले,
 फलों को निहार रहा धरा पर खड़े खड़े, धरा पर खड़े खड़े,
 डाल दिए वहीं पर,
  चार फल पके पके,
  खा के फल जल पिए,
 आभार व्यक्त किया वृक्ष तले खड़े-खड़े, खड़े ,
 कल जोर वृक्ष कहे,
 आभार बोल के मुझे,
  लघु मत कीजिए,
  कह रहा हूं जो मैं उसे सुन लीजिए, उसे सुनने लीजिए
  वृक्ष मत काटिए,
  परिवेश पलने दीजिए,
 धरा करो हरा भरा,
 मनुष्य की तरह हमें भी रहने दीजिए, हमें भी रहने दीजिए,
 पुत्र जने जैसे घर,
 वृक्षारोपण कीजिए,
 मॉल बने ना बने , 
 वृक्ष रहने दीजिए, हमें भी रहने दीजिए,
 ऑक्सीजन का हूं कारखाना,
  ऐसे बढ़ने दीजिए,
  सृष्टि यह सभी की है,
  चक्र चलने दीजिए इन्हें पनपने दीजिए,
  हरा वृक्ष ना काटिए,
  पांच वृक्ष लगाइए,
  गमलों को सजाइए,
   क्यारी को महकाईये
    हरा भरा बनाइए,
   प्रकृति को अब और ना उजाड़ीये ,
   चलिए हाथ में लाइए,
    मिला के हाथ अपने देश को बचाईऐ,
    महामारी से बचाइए,
     यही पाठ अपने बच्चों को सिखाइए,
    गज भर धरा पर मुझे लगाइए,
थोड़ा जल् लाइए,
इस धरा को गहना पहनाईऐ,
 
 विश्व साहित्य सेवा संस्थान अंतर्राष्ट्रीय सचिव-
                                      निशि पिंकी द्विवेदी,
   
   
 

खोने का डर

जितनी शिद्दत तुम्हें पाने की थी                 उससे ज्यादा डर तुम्हें खोने का है बस यही है कि तुमसे लड़ती नहीं           तुम यह ना समझना कि...