Sunday, 31 May 2020

रंगीन मोहब्बत पाई, गमगीन मोहब्बत पाई।

 
               नाम____निशी द्विवेदी
कविता के बोल____
_ रंगीन मोहब्बत पायी, गम गीन मुहब्बात पाई।



                               एक  ख्वाब बुना था  मैने।
                           मांगी थी मोहब्बत दिल से।
                       रंगों  से  मोहब्बत   करने।
                   के  देख  रही  थी  सपने।
                दिल देकर दिल के बदले।
            रंगीन  मोहब्बत   पाई  ।                                       रंगीन मोहब्बत पाई ।

                            रंगो ने दिखाया रंग अपना
                        कई रंग बदल  बदल  के।
                    कुछ रंग  मिलन वाले थे ।
                कुछ गम के जुदाई वाले।
             रंगीन  मोहब्बत   पाई ।   
         रंगीन  मोहब्बत   पाई ।

                              कुछ मौसम की तरह 
                           रंग              बदले।
                      जो   आऐ     थे ।
                  बनकर     अपने। 
            रंगीन मोहब्बत पाई।
       रंगीन मोहब्बत पाई


                            तिनका तिनका टूट कर।
                      बिखर गए सारे सपने।
                हर तिनके को  पाया।
            अलग-अलग कई रंगों में
        रंगीन मोहब्बत पाई ।
   रंगीन मोहब्बत पाई।
   
                           कुछ मौसम की तरह से बदले।
                       कुछ गिरगिट की तरह रंग बदले।
                  कुछ   वार  किए    थे   अपने।
              कुछ  फुसकार  रहे  थे अपने।
           रंगीन।    मोहब्बत।        पाई
      गमगीन        मोहब्बत।    पाई
                     

                            _नाम____निशि  द्विवेदी

Saturday, 30 May 2020

फूलों में खुशबू बनकर तुम रहते हो।


नाम_____निशि द्विवेदी
कविता के बोल___तपती दोपहरी में सर्द हवा से तुम।

तपती दुपहरी में श्याम सर्द हवा से तुम लगते हो।
प्यासी धरती में कान्हा फुहार के जैसे तुम बरसे हो।।

बेरंगी फूलों में कान्हा आते ही रंग भर देते हो।
वनस्पतियों में जाने कैसे खुशबू तुम भर देते हो।

तपती धरती पर रखते ही पाऊं जल जाते हैं येसे।
तेरी एक आहट को सुनकर दौड़ जाते हैं मिलो येसे।

पशु-पक्षी भी चहेकने लगते जाने ऐसा क्या करते हो।
 एक दृष्टि से कान्हा सारी सृष्टि प्रफुल्लित करते हो।।

गर्म लू के थपेड़ों को शीतलहर सा कर देते हो।
मुरझाए फूलों का उपवन गुलशन कर देते हो।।

ओ मेरे जादूगर कान्हा कैसे जादू तुमको आता।
थोड़ा जादू तुम देव बताएं , तुमको अपना ले बनाएं।

मिलन की मंगल बेला।


                नाम____ निशि द्विवेदी
कविता के बोल_____मिलन की मंगल बेला।

मिलन की मंगल बेला।
 श्याम कितना अकेला।

राधा बैठी है तयार। 
 पहने चुनरिया है लाल।

मोहन पगड़ी पहने लाल।
चम चम बिंदिया है लाल।।

मिलन की मंगल बेला ।
श्याम कितना अकेला।।

फूलों की माला भी लाल।
लाल होठ गुलाबी गाल।

सावन की रिमझिम फुहार।
 रस्ता निहारे तुम्हारा।।

हरी मेहंदी हरि हाथ में लागी।
हरि नाम मेहंदी राधा हाथ।।

मिलन की मंगल बेला।
राधाकृष्ण मिलन की बेला।



Friday, 29 May 2020

सच्चे प्रेम के दीए , पानी में भी जले।


               नाम_____ निशि द्विवेदी
बोल_____   दीए ये जो दीए, हैं कान्हा के लिए।


ओ प्रिये ओ प्रिये राधा प्रिए,
तुमने जलाए जो दिए।।
यमुना में जो प्रवाह किए।
देखो तैर कर चल दिए।
                   
                          ओ प्रिये ओ प्रिये कृष्ण प्रिए,
                           मेरे नाम के ये दिए।
                          तुम्हारे हाथ से दीए।
                           दोनों साथ चल दिए।

अमर कथा बन कर।
उजाले कर दीए।
दीए यमुना में चले।
दीए दिल में जगे।

                       जगमग हो कर।
                        टिम टिम कर दीए।
                      नील गगन बन कर।
                       धरा पर चादर बिछे।

लहरों से हिले।
लहरों में बहाते हुए।
दीए ये जो दीए ।
यह राधा के लिए।

                         दीए ये जो दीए,
                         हैं कान्हा के लिए।
                         दीए जलाकर हम।
                         प्रेम निमग्न हो लिये।

ओ प्रिए ओ पिए राधा प्रिए।
ओ प्रिए ओ प्रिए कृष्ण प्रिए।
बोलो तो कृष्ण प्रिए।
साथ रहना हरदम प्रिए।              

                         _____*** निशि द्विवेदी**
                             


Thursday, 28 May 2020

तेरे चरणों में मेरे चारों धाम रसिया

____निशि द्विवेदी____
____बोल____तेरे चरणों में मेरे चारों धाम रसिया____

तेरे चरणों में मेरे चारों धाम रसिया।
तेरी बंसी करे बदनाम रसिया।।

हाथों में तेरे मेहंदी लगा दी।
केसे मुरली बजाए सुर ताल रसिया। 
तेरे चरणों में मेरे चारों धाम रसिया।

पाओ में तुम्हरे बाजे पाजेनिया। 
रुनझुन बाजे तेरी पैजनिया ।

बंसी के सुर भूल जाए रसिया ।
कैसे मुरली बजाए सुर ताल रसिया ।

तेरे चरणों में मेरे चारों धाम रसिया।
 तेरी बंसी करे बदनाम रसिया ।।

तेरे माथे लगा दूं चंदन का टीका।
 चंदन सुगंध डाले भ्रम रसिया ।।

तेरे चरणों में चारो धाम रसिया।
 तेरी बंसी करे बदनाम रसिया।


हे ईश्वर जग स्वामी।।

 नाम____ निशि द्विवेदी
रचना ____ गजेंद्र मोक्ष करता।


हे ईश्वर जग के स्वामी।

हे कृष्ण श्री राधे रानी।।

हे पावन जग के रचनाकार।

उन दुष्टों का तुम करो संघार।।

हे विष्णु चक्र सुदर्शन धारी।

करो नास हर अत्याचारी।।

हे नृप श्रेष्ठ जग के स्वामी।

नाश करो हर अहंकारी।।

हे कुलभूषण करते शस्त्र अलंकार।

हे शास्त्रोंक्त ज्ञाता निराकार।।

हे कुलश्रेष्ठ कृपा धारी।

हे मधुसूदन सुदर्शन धारी।। 

हे विलक्षण शक्तियों के ज्ञाता।

हे मंगल करता विश्व विधाता।

मणियों को छड़ में रज करता।

हे रज क्षण मणियों में करता।

हे गजेंद्र मोक्ष करता।

हे प्राणी मात्र निवास करता।

है नमन तुम्हें हर कण करता।

है नमन तुम्हें हर मन करता।

है मन जो तुम्हें नमन करता।

उस मन में जो दन्ष करता।

बन जाओ उसके प्राण हरता।

यह सृष्टि तुम्हारे चरणों में।

है शपथ तुम्हें उन भक्तों का।

कब प्रयोग करोगे शस्त्रों का।

अज्ञानी उस मूर्ख का।

कब नाश करोगे घुढ़त का।

Wednesday, 27 May 2020

हार कहां हमने मानी है।

      
   नाम__ निशि द्विवेदी
गीत के बोल__हार कहां हमने मानी है।


हार कहां हमने मानी है ।
अभी अभी तो सुबह हुई है।
जीवन के पथ पर खड़े हुए हैं।
अभी तो चलना शुरू किया है।


                          हार कहां हमने मानी है।
                          अभी दूर बड़ी मंजिल है।
                          अभी पहला कदम लिया है।
                          अलविदा बाकी कहना है।

हार कहां हमने मानी है।
अभी कैसे हम थक जाएंगे।
गठरी को कंधे पर रखकर।
जरूरत का सामान लिया है ।

                       हार कहां हमने मानी है
                     सफर बहुत लंबा जाना है।
                     भूली बिसरी यादें लेकर,
                      निकल रहा हूं कर तैयारी।

हार कहां हमने मानी है।
अंत समय तक डटे रहेंगे।
पथ पर जो मेरे साथ चलेंगे ।
उन लोगों की बनाई ली सूची।

                         हार कहां हमने मानी है।
                        राहों में कांटे लाख मिलेंगे
                         कुछ चुभेंगे कुछ टूटेंगे,
                        मरहम की डिबिया लेकर।
                        निकल रहा हूं कर तैयारी।

हार कहां हमने मानी है।
मुश्किलें लाख मिले राहों में,
हतियार की ढाल को बना,
ढाल सदा आगे करना है।

                         हार कहां हमने मानी है
                        लोगों की परवाह न करना ।
                       लोगों का तो काम है कहना।
                      दृढ़ संकल्प से बढ़कर आगे
                     नव निर्माण जीवन करना है।

हार कहां हमने मानी है। 
अभी तो चलना शुरू किया है।
 दौड़ लगाना है अभी बाकी ।
मंजिल सामने खड़ी मेरे है ।
नदिया करना पार है बाकी।

                        हार कहां हमने मानी है।
                       चांद तक तो पहुंच गए हैं।
                       रहा सूरज को पाना बाकी।
                      जमीन पर तो बहुत रहे हैं ।
                      चांद पर जाकर रहना बाकी।




Tuesday, 26 May 2020

मिलने को मन व्याकुल है

                   नाम_ निशि द्विवेदी   
                   बोल_मन व्याकुल है।
                       

                            अखियां सावन जैसी बरसे,
                             मन मोहन सांवरे को तरसे,
                                         झलक देखने को मन मेंरो व्याकुल है।
                             मिलने को मन व्याकुल है।
                            वृन्दावन देखन को आतुर है

  
      सजी-धजी राधा जैसी।
     मोर पंख ले हाथ में बैठी।
माखन मिश्री कान्हा जी को भाती है।
     कन्हैया मेरो बड़ा चातुर है।
     बंसी धुन करती व्याकुल है।

                     
                            बंसी लेकर कान्हा आता।
                            रोज चराने गांवये  जाता।
                     यमुना तट बैठ के बंसी खूब बजाता।
                             नदी किनारे बोले दादुर है।
                            मोर भी नाचन को आतुर हैं।


      मोहन कह दिया है तुमको,
      मन को मेरे मोह तुम लो ,
 बंसी धुन से मोहन मोहे मोह लेेने,
        मेरे कानों में रस घोले,
        मैं बस मोहन की होली,






बाला पहनाय तुम्हें माला!

नाम_ निशी द्विवेदी
गीत के बोल_ प्रेम का दरिया

प्रीतम तुम्हारे प्रेम का दरिया,
हवा जिधर हो उधर ही बहता।

कभी पूरब कभी पश्चिम को चलता ,
उत्तर से होकर दक्षिण भी चलता,

 साजन तुम्हारी साथ की शमा,
भटका रही हमें बना परवाना 

बोली कुछ और समझते कुछ हो
 कहते कुछ और सुनते कुछ हो

बालम बांध कर अपनी बहियां,
बना रहे हो मुझे बावरिया।

मुझ बाला से पहन कर माला,
बना दिया है मुझे मतवाला।


Monday, 25 May 2020

तेरी बंसी, मेरी सौतन।।

लेखक _        निशि द्विवेदी,

 गीत के बोल_      ***तेरी बसुरिया मेरी सौतन।**



तेरी बसुरिया ने, 
हां हां तेरी बसुरिया ने ।
कान्हा तेरी बसुरिया ने ,
ओ जी तेरी बसुरिया ने।
 
मैं सुनके घर रुक ना पाई
तेरी बसुरिया सुन मैं भागी दौड़ी आई,.......

 कान्हा तेरी बसुरिया,
मोहे सौतन वन के सताई,
तेरी बसुरिया ,ओ जी तेरी बसुरिया,.........

बांस की होके ,मेरे गले की फांस बन गई है,
तेरे अधरों से लग के, कमर में लिपटती है,
मोरी नजरों में चुभती है , देख सांस अटकती है,

तेरी बसुरिया ,
हां जी तेरी बसुरिया,
कान्हा तेरी बसूरिया ,
प्रीतम तेरी बसुरिया,.........

मोहे एक टका नहीं भाती,
टोना तुम पे करती है।
तुमरे आगे सदा रहती ,
 तुमको पीछे रखती है

यह तेरी बसुरिया ने 
हां जी तेरी बसुरिया ने 
प्रीतम तेरी बसुरिया 
ओ बालम तेरी बसुरिया ने.........

 कभी हाथो को आमंत्रन करती,
कभी होठों का निमंत्रण करती,
 तुम्हारी फूक से अभिमंत्रित होकर,
सारी गोपियां को सम्मोहित करती,

हा जी तेरी बसुरिया,  
प्रीतम तेरी बसुरिया,
 ओ बालम तेरी बांसुरिया,
 ओ मोहन तेरी बांसुरिया।........

ओझा ढूंढ रही हूं , लूंगी उसका सहारा ।
  अबतो पाना है ,इस सौतन से छुटकारा।

आग लागे बंसी में,
 भाड़ में जाए बृज नारी
मेरे सामने मेरा सांवरा,
मैं सांवरे राधा रानी,

तुम मेरे सांवरिया हो।
तुम तो मेरे ही साजन हो
 तुम मेरे ही मोहन हो 
तुम ही तो मेरे प्रीतम हो
 हां जी मेरे ही कान्हा हो।...........



Sunday, 24 May 2020

अब मैं तेरी हो ली ।

अब तो मेरे सारे सपने कन्हैया की शरण हो गए ।
अब तो मेरे सारे अपने कन्हैया के हो गए।

अब तो मेरा घर कन्हैया का घर हो गया।
अब तो मेरी सारी दुनिया कान्हा की हो गई ।

अब तो मेरा मन कान्हा में रम गया।
अब तो अपना सर कान्हा चरणों में हो गया।
 
अब तो मेरे मन में राधेश्याम बस गए।
 आज से मेरे नैनो में श्याम बस गए।

आज से मेरे जीभ्या श्याम बस गए ।
आज से मेरे कानों में गूंजती बंसी धुन ।

 कान्हा सुनाएं मैं ,सुनती जाऊं ।
कान्हा बंसी धुन, मेरे कानों में रस घोले जाए।

Friday, 22 May 2020

दिल मेंरा हुआ उनका था,

जहां भी जाओगे ,रह नहीं पाओगे,
 हमें भूलने चले थे, हमें भुला न पाओगे,

हमारी कद्र कभी तुम्हें हुई नहीं
तुम्हारा इंतजार मुझे रहेगा

प्यार किया था मैंने तुमको
दूर जाकर एहसास तुम्हें होगा

धोखा नजरों ने खाया था, गुनाह उनका था
दिल हमसे जुदा होकर, हुआ उनका था

दूर कहीं जाओ, लौट यहीं आओगे।
वापस आओगे, मुझे अपना बनाओगे।

गलती हुई है मुझे है एहसास ,
 यह बोलने वापस आओगे ,आओगे ,आओगे


तुम चाह लो मुझे इतना, कोई चाह न सके जितना।

आंधियों में आशियाने बनते हैं।
अगर तुम चाहा लो जरा सा।
आंधियों में चिराग जलते हैं।

अगर तुम चाहा लो जरा सा।
पतझड़ में फूल खिलते हैं ।
अगर तुम चाह लो जरा सा।

मछलियां आसमानों में
 और चिड़िया तालाबों में 
अगर तुम चलो जरा सा

राजा को रंक बना दो
कंकाल में भी जीवन भर दो
सामान्य को महान बना दो
अगर तुम चलो जरा सा

अगर तुम चाह लो जरा सा
 तो पत्थर पर भी फूल खिलते हैं
मेरे नैनो को सुख मिल जाए 
अगर तुम चलो जरा सा

धरती पर बैठकर आसमानों
 का सुख देख रही हूं
 क्योंकि मैं तुम्हें चाहती हूं।
बस तुम भी चलो जरा सा

अगर तुम चाहो जरा सा मेरे कन्हैया।
 मेरे लिए इतना तुम चाहा लो जरा सा।


                      ****** निशि द्विवेदी******

"बचपन"के अधूरे स्वप्न सदा रहे हैं सदा रहेंगे।

कुछ स्वप्न अधूरे बचपन से ,
सदा रहेे हैं सदा रहेंगे।

कागज की नैया पर बैठ,
 नदिया को पार करेंगे

दिवास्वप्न अधूरे बचपन से ,
सदा रहे हैं सदा रहेंगे।

कपड़े के पंखों को सिं कर,
आसमान में उड़ान भरेंगे।

कुछ स्वप्न अधूरे बचपन से ,
सदा रहे हैं सदा रहेंगे।

छाते का पैराशूट बनाकर
आंधियों में उड़ चलेंगे।

दिवास्वप्न अधूरे बचपन 
से सदा रहे हैं सदा रहेंगे





Thursday, 21 May 2020

वो दिन मुझे याद आज भी है,

दिन मुझे याद आज भी है
जब पहली बार उन्हें देखा,
तब बड़ा सुहाना मंजर था
दिन मुझे याद आज भी है,

उनसे नजरें चार हुई थी,
 जैसे ही नजरें टकराई ,
काल ने विराम लगाया
दिन मुझे याद आज भी है

 दिल समंदर हिलोरे ले गया
घंटियां बजने  लगीं कानों में,
किसी ने पीछे गुहार लगाई
 दिन मुझे याद आज भी है

कान चुब्ध से रह गए,
मैं स्तंभ बन रह गई,
नेत्रों में अंधियारा था
सुध बुध को विसराया था
वो दिन मुझे याद आज भी है

नैनो के गलियारे से होकर
 हृदय पटल पर छाप पड़ी
मानो कूक रही थी कोयल जैसे
वो दिन मुझे याद आज भी है

विचारों से शून्य हो गया था
 मेरे मन का कोना कोना,
याद नहीं था कुछ भी मुझको 
क्या था हंसना क्या था रोना,

भूल गई थी सारे कृत्य
 खाना पीना हंसना सोना
आईना देख हंसती थी
विरक्त हुई थी सबसे

दिन मुझे याद आज भी है
 सखियों के संग कालेज में
अपने मन की व्यथा सुनाई 
एक ने कहा तुझे प्यार हो गया 
वह दिन मुझे याद आज भी है

कल्पना के पंख लगा कर
 रात दिन बस उड़ती रहती 
ना ही सोती खाती पीती 
याद तुझे बस करती रहती

वह दिन मुझे याद आज भी है
जब मार्ग तेरा निहारती रहती
एक बार बस मिल जाओ
 यही प्रार्थना करती रहती

तुम्हारे सामने बस निहारती रहती 
जब दूर होते थे कुछ कहना होता था
जब तुम्हें भी हमसे प्यार हुआ
तब तक सारा गाओ जान गया था

                                          निशि द्विवेदी

Wednesday, 20 May 2020

एक तुम्हीं आधार,

 विराट रूप में दर्शन देना 
मेरी सारी चिंता हर लेना 

तुम्हारी याद में व्याकुल हूं
तुम बिन मैं अधूरी दीनानाथ 

मेरे तुम ही हो कन्हैया 
तुम्हारे हाथ में जीवन नैया 

भटक रही हूं चकाचौंध में 
तुम पर बना रहे विश्वास मेरा 

हवाओं में छू कर तुम जाते हो 
कान में बंसी की धुन सुनाते हो 

नासिका में मेरे वह खुशबू है 
वह तेरे मंदिर की खुशबू है 

आए हो तुम मेरे पास मुझे है
 विश्वास तुम हो मेरे आस-पास 
                   
             ******    निशि द्विवेदी*****

पापी ना बन लाल मेरे, तू सह ना पाएगा वार।

यह तेरे संसार में ,
क्या हो रहा भगवान,
 कितनी बदल गई संतान,

 पाप ढो रहा है सर पर 
जैसे ले जाएगा सब साथ,
 कितना बदल गया इंसान

गाजर मूली के जैसा काट रहा ,
इंसान कितना बदल गया इंसान
धन दौलत ही सब कुछ हो गई ,
बन गया यह मानसिक रोगी

साग सब्जी नहीं है खाता,
मांस भक्षण करता जाता
छोटे जीव जंतुओं को 
कच्चा चबा  रहा इंसान..... कितना..….

पल-पल जीवो की निर्मम
 हत्या कर रहा इंसान 
कैसी बना रहा संतान

रोबोट बच्चे पैदा करेगा 
बेटी भ्रूण हत्या ह ऐसे करता,

कसमें खाकर तेरी ,
झूठ बोल रहा इंसान ,
कितनी बदल गई संतान

इंसानियत सारी बेच खाई है,
 झूठ बोलकर बांटे ज्ञान
कितनी बदल गई संतान

छल कपट पाखंड झूठ 
पर टिके है इसके प्राण 
कितनी बदल गई संतान

यथार्थ सत्य को भूलकर ,
स्वप्न में भाग रहा इंसान ,
कैसे बना रहा संतान
                             
निर्माण किया था सृष्टि का जब,
 मनुष्य ही सबसे सुंदर रचना,
दिमाग इसमें ही डाला था

मेरी बनाई सारी सृष्टि,
 कर डाली बर्बाद,
 कैसी बन गई संतान

योनिया भोग भोग कर ,
मानव पाता है जीवन को ,
होश संभालते सब भूल
 बैठता है मानव जात

मैं भी पछता रहा बनाकर ,
ऐसी मानव जाति 
कैसी बदल गई संतान 
कैसी बना रहा संतान

समय-समय पर बना कर 
ऐसा भेज रहा हूं विकराल
इसे मिटा कर दिखा इंसान

अभी समय है सुधर जा बेटा 
बोल रहा भगवान, मेरा
 सह न पायेगा बार
मर के तुझे है ऊपर आना

छोड़ दे सारे गोरखधंधे,
 बन जा तू इंसान
 शैतान को मिटा
 कर मानेगा भगवान

मान जा बेटा छोड़ नादानी ,
बन जा तू मेरा लाल
ऐसा मत कर तू इंसान
सबको जीने दे जीवन तू 
बस धरती पर बन मेहमान 

कर्म करेगा जैसा 
वैसा भोग के आएगा
इतना समझ जा तू इंसान

                  *****     निशि द्विवेदी*****

मेरे श्याम सहारा तुम्हारा है

ईतना ही करना श्याम ,
सवारियां सहारा तेरा है

सबको सबका होगा,
हमें तुम्हारा ही है।

तुम्हें मान लिया है अपना
तुम साथ निभाना मेरा

जब अंत समय आए ,
तुम पास चले आना,

 तुम पास चले आना 
राधे को साथ लाना।

मेरी अंतिम सांस तक,
 इंतजार तुम्हारा होगा,

मेरे हृदय पटल पर ,
एक छाप लगाना होगा

अपने भक्तों को ,
विश्वास दिलाना होगा

तुम आओगे कृष्णा ,
एहसास दिलाना होगा

भजन करूं मैं तेरा
तुमको आना होगा

शरण में हूं मै तेरे ,
सब को बताना होगा।

                           ******  निशि द्विवेदी।******

मेरे श्याम बहुत रोए।

             मेरे श्याम बहुत कुछ कहते हैं।


मेरी अरदास सुन कर,
मेरे श्याम बहुत रोए,

श्याम बहुत रोए ,
घनश्याम बहुत रोए

मेरे इस हाल को देख,
मेरे गोपाल बहुत रोए,

मेरे विचार जान कर,
राधे श्याम बहुत रोए

हमारी व्यथा कथा सुन ,
 मेरे हाथ पकड़ बोले

तेरा कर्ज चुकाना है,
असुअं हर्दय धो ले

तेरे हाथों में जस है
ये बात करेंगे

लेखक बन लिख
जो दिल में तुम्हारे ह

ये जान लो तुम बेटी
मेरा हाथ पकड़ तू लिख।

तेरा हाथ पकड़ कर
मेरे साथ तू देना चल।

                  *****  निशि द्विवेदी*****

Tuesday, 19 May 2020

हर जगह मौजूद हैं, मेरे प्यारे श्याम।।

****जहा भी देखें , वहां दिखाई देे भगवाा्न।******

बृंदावन की  गलिन में ,
मुझे मिलते हैं राधेश्याम।

ऊंची सी बिल्डिंग
दिखते हैं द्यारिका नाथ

झोपड़ी में दर्शन देते,
मेरे बाल गोपाल

शहरों की भागदौड़ में
गूंजे बस राधे श्याम,

गांव के गलियारे में
मिलते हैं गोपीनाथ

जब मैं देखूं आसमान में
वहां बैठे हैं घनश्याम

बाग, बगीचे, फुलों से
देखें मुझको श्री भगवान्

भवरो के गुंजन में, 
गूंजे मेरे कृष्ण का नाम

तितली के पंखों से, 
जोआती है आवाज

राधे राधे राधे जय जय
राधे राधे श्याम श्याम

चलते चलते दर्शन 
मैं करतीं सुबह शाम............

                         ***** Nishi dwivedi****"

Monday, 18 May 2020

*****हर हर महादेव शिव शम्भू *****

*****  जय जय महादेव शिव संभू ********

बाबा महादेव बाल रूप,
 लगे उन्हीं के अनुरूप,

हर हर महादेव...
हर हर महादेव....

सिर केश बन्द में गग
और चांद रहे सदा संग,

हर हर महादेव....
हर हर महादेव.....

त्री नेत्री के अंग,
लिपटे रहे भुजंग 

हर हर महादेव......
हर हर महादेव......

त्रिशूल हाथ में हर दम,
 डमरू डम डम डम

हर हर महादेव......
 हर हर महादेव.....

नंदी को रख संग,
वही सुने व्यथा हर दम  

हर हर महादेव......
 हर हर महादेव......

कैलाश पति बमबम 
कृपा करें हर दम

हर हर महादेव......
हर हर महादेव....... 

बाल रूप पिता धरे,
बच्चो के कस्ट हर ले

हर हर महादेव......
हर हर महादेव......

                          *****   Nishi dwivedi*****

***बिरहा की अग्नि में जलेंगे तुम संग**

    ***** बीरह की अग्नि में जलेंगे तुम संग***


 तुम बिन जिएंगे कैसे,
कैसे रहेंगे तुम बिन,

हमारी अधूरी ख्वाहिश
पूरी नहीं होंगी तुम बिन,

सोचा है तुमने कभी यह,
रिश्ता होगा  कैसा तुम बिन

तुम्हारे भी कुछ होंगे सपने,
मेरे तो तुम ही हो अपने,

तुम ही ने दिखाया था सपना,
पूरा कैसे होगा तुम बिन

दिल में जलाया दीया था,
बिरह में जल हम रहे हैं,

प्रेम अधूरा ही होग,
 पता था फिर भी करे हम

साथ निभा ना सके हम,
यादों में खोय रहे हम

प्रेम दोनों ने किया था,
दोनों ने देखें थे सपने,

टूटे गए सारे सपने,
जब तुम ही नहीं हो अपने

सावरे से हुई चार आंखे,
उड़ाई नींद केई राते 

याद रहेगी सारी बाते,
मुलाकातें वो प्यारी बाते,


कभी अा जाओ ,
सुन,सुना जाओ,
अपने सारे ....किस्से........


किसी से कह ना सके हम।
किसी को बता नहीं सकते।

दीए जलाकर रखेंगे,दीए ही देकर चलेंगे।
दीया ही दिया है प्रेम, नहीं कुछ लिया दिल ने।।


                       *******Nishi dwivedi*****

Sunday, 17 May 2020

अबला नारी

लोग कहते हैं औरतों के पास दिमाग नहीं होता!

चलो माना कि औरत में
 दीमाग नहीं होता,

 बड़ी ख़ुश किस्मत है कि ,
उसमें दिल होता है।

औरत के हिस्से का दिमाक ,
दिया ईश्वर ने पुरुषों को

पुरुष चलाते हैं ,
तभी औरत ठगी जाती।

दिल से सोचकर ही ,
अपना सब खो देती है

अगर औरत दिमाग लगाती तो ,
आज पूजी वही जाती।

लुटा डाला है सम्मान अपना ,
फिर भी उफ़ नहीं करती

क्या क्या नहीं सहन करती है ,
बन अबला वो नारी।

फिर भी अपना जीवन,
 करती अपने परिवार पे वरि।

पुरुष को प्रेरणा देती , 
वही नारी.....२

पुरुष को जीना सिखाती है ,
वही  नारी....२

पुरुष को जीवन भी देती है
वही नारी।.....२

पुरुष की पहली गुरू होती ,
वही नारी....…२

पुरुष को चलना सिखाती,
 वही नारी...२

सारे अत्याचार सह कर,
 भी चुप रहती है।

कभी देखा कि पुरुष पे व्यांग ,
 वो लिखती हो? 

पति वही सात जन्मों तक ,
ईश्वर से मांगे वही नारी.....२

करवाचौथ निर्जला व्रत,
कर पति की दीर्घायु मांगे ,
वही नारी.....२

पति को देवता के रूप
देखे वही नारी.....२

पति चरणों में समर्पित
जीवन अपना करती है

पति के साथ सुख से
रहना चाहै वो नारी...…
 
पति के दुख में,
 दुखी रहती है वो नारी

पति के सुख में सुखी ,
रहना चाहे वो नारी

पति सम्मान पाना चाहे,
जो ना मिलता है नारी को

 पति जो सात वचन भर कर,
 शादी कर के साथ लाता,

मगर घर लाते ही ,
अपना फर्ज भुला देता।

 पत्नी बन कर सारे ,
कर्ज चुकाती है  नारी ,

पति के वार आहत करते,
पति की बात आघात करती।

पिता को गाली सुनती है,
मा की गाली सुनती है

बेटी थी वीरांगना,
पत्नी बन सुन लेती है 
 सब अबला नारी।

 बहू बन सेवा करे वहीं नारी।
जीवन दायनी बन कर ,

नौ महीने पेट में बीज को ,
पालती है वह नारी .....…२

पुरुष को जन्म देने पर 
साबाश हो वो नारी.....  २

अगर जन्मे बेटी तो 
ससुराल पड़े भारी.........२

सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो ,
फिर भी सिकायत नहीं करती। 

जन्म देकर पुरुष का अंश 
 पालती है नारी।

 रात भर जाग जाग कर ,
पुरुष को पालती नारी।

बीमार हो जाय तो ,
दौड़ती भागती है नारी

 सर्दी में खुद को गीले में ,
उसे सूखे में सुलाती है 
वही नारी.....२

धूप छाव में एक समान
रहे  वो नारी....२

जिस घर से आती है,
उसे भूल नहीं पाती

जिस घर में आती है,
उसे भी भूल नहीं पाती 

लाख बुराई पति की,
छिपा रखती है

एक गलती कर,
प्रित्याग करी जाती।

ससुराल अच्छा मिल जाय तो अच्छा
नहीं तो नकर सा जीवन ढोती है।

और भी बहुत कुछ है ,
मगर कहती नहीं है कुछ नारी

क्या क्या नहीं सहन करती
वही नारी.....२

यम से लड़ पति प्राण 
बचाती वही नारी.......२

तिनका तिनका जोर कर,
  घर चलाती है वही नारी

मकान को घर बनाती है 
वही नारी वही नारी

सोचो अगर अपना,
 दिमा़ग चलाती तो क्या होता।

नरक सा जीवन होता है नारी का,
कोई क्या जाने जीवन नारी का।

 दिल से सोच कर ही चुप रहती है
 अगर बोलती तो क्या करती ये पुरुष पार्टी**********


                                        *****nishi dwivedi

प्रीत की रीत में

मोहे लगी कृष्ण संग प्रीत ,
मेरे दिल की हो गई जीत,

मैं भूली दुनियां की रीत,
मेरे बनें सावारिया मीत,

मै तो लिखूं मोहन पे गीत,
ललाट तपे दिल सीत,

यही प्रीत की रीत,
बिराह करे भयभीत,

भ्रम में मोहन प्रतीत,
भूल गई सारा अतीत, 

                                ***** Nishi dwivedi

"नादान परिंदे बचपन के,"

नादान परिंदे बचपन के....


बाल हठ करी सभी ने,
नादान परिंदे बचपन के,

दिशा निर्देश बिना ही,
उड़े सभी थे बचपन में,


मां पिता को भी,
परेशान किया था,
बचपन में,
 बाल हट करी सभी ने,
 नादान परिंदे बचपन के,


नकली पंखों को जोड़,
उड़े सभी थे बचपन में,

पापा ने गोद लेकर ,
उड़ाया खूब था बचपन में

 बाल हट करी सभी ने ,
नादान परिंदे बचपन के,

बड़े भैया घुड सवारी ,
खूब कराई बचपन में,

 बाल हट करी सभी ने,
 नादान परिंदे बचपन के,

बारिश के पानी में ,
 नाव तेराई बचपन में,

बाल्टी भर पानी में ,
डुबकियां लगाई ,
बचपन में,


बाल हट करी सभी ने,
नादान परिंदे बचपन के,

नानी, दादी ने कहानी,
खूब सुनाई बचपन में,

जीवन बड़ा सुहाना था,
आभाव ना लगा बचपन में,

उचक के बड़े होने का,
शौक था बचपन से,

बड़े होकर अभाव, 
है बचपन का,

कुछ पल वापस जाकर,
मन खूब सोचता ,
बचपन की,

मन बच्चा बन कर,
 हठ करता है ,
बचपन का,
नाती पोतों से लौटेगा ,
बचपन एक दिन,
 बड़े सुहाने बचपन के दिन,
लगे सुहाने बचपन के दिन,
                                     *****"Nishi dwivedi

Saturday, 16 May 2020

आगमन,स्वागतम् श्री कृष्ण सरणम।

जगत के पालनहार, को कैसे पहचाने हम।
राधा का ,
मीरा का , 
या अपना समझें हम।।

किसका बेटा है , किसे जाने तुम्हारा हम।
देवकीवसुदेव,
यशोदा नंदन, 
या अपना समझें हम।।

कहा से आय हो क्या जानें हम।
गोकुल से , 
मथुरा से,
द्वारिका से हुआ आगमन।

                             Nishi dwivedi*****


भव सागर पार करता,

           * ****गोद मैया में वो ,बैठे रहे सोए।******
 मुरलिया वाला,
मय्या का दुलारा,
 नन्द बाबा को प्यारा
गोकुल गांव वाला,

सुंदर नयनों वाला,
मोर पंख धारा,
पाओ पैजनिया बांध,
 हाथ ब्सुरिया थाम,
सबका मन लो मोह,

देत्य बध करता, 
पूतना प्राण हर्ता,
शेष नाग नथना,
गोवर्धन पर्वत कनिष्ठ धरता,

गीता उपदेश करता ,
अर्जुन सारथी बनता,
कंस नाश कर्ता,
देवकी वाशुदेव मुक्ता,
भव सागर पार करता।
द्वारिकाधीश अधिष्ठा,प्रेम का प्रतीक है जो मेरा है वो।

                               _  Nishi dwivedi*****

Friday, 15 May 2020

मुरलिया वाले की मै बन जाऊंगी।।



मोहन बजी मुरलिया ।
राधा बनी बावरिया।।

नयनों से बोले मोहन।
राधा नाचे बन जोगन।।

कानों में रस घोल ,
मुरलिया बाजेगी,
राधा नाचेगी।

नयनों से देखे राधा,
मुख से ना बोले राधा,
जोगन बन नाचूंगी।
मोहन को नचाऊगी।।

मुरलिया वाले की मै बन जाऊंगी।
मुरलिया वाले को अपना बनाऊंगी।।

                                    _ Nishi dwivedi*****

Thursday, 14 May 2020

शरारत सूझी

चुप चुप रह के,
 छुप छुप देखें,
 नन्द के लला हो।...२

आंखें ये कहती ,
कोई तो बात है ,
यशोदा का लाला हो।..२

 मोर मुकुट सिर पर,
धरे नन्द का लाला हो,
गले में माला हो।

खंभे के पीछे छुपे है , 
बाजू बन्द वाला हो ,
मेरा गोपाला हो 

शरारत भरी है,
मुस्कान बड़ी है,
चंचल चितवन वाला हो

                                      Nishi dwivedi

Wednesday, 13 May 2020

दीया ही दिया , नहीं कुछ लिया।

सांवरा मेरा सावरिया, शरारत भरी सावारिया में।
राधा को प्रीतम सावारिया, शरारत बड़ी सावरिया में।।

सावरा अपने साजन को , देखे सजनी साजन को।
सखियां देखें सावरे को, सखा सब छेड़े सवारिया ।।

पूनम की चांद रात में ,चम चम चमके राधा ज्यो।
यमुना में दीए जलाए रहे राधा संग प्यारे सावरिया ।।

जगमग दीए जगाए रहे , दोनों जागे सारी रतिया।
नयनों से तीर चलाए रहे, दोनों पूनम की रतिया ।।

दिलों में दीए जगाय कान्हा, नफरतों को प्रवाह करें।
मुसकुरा कर हृदयाघात करे, बांका येंसे प्रहार करे।।

            राधेकृष्ण चरण अनुरागी    _ निशि द्विवेदी

Tuesday, 12 May 2020

अनमोल प्रीत की माला

राधा रानी सोन चिरैया, मोहन मुरलिया सोने की।
राधा प्यारी सूरत वाली, मोहन खूब छलिया जी।

राधा फूलों की माला से ,मोहन सजे बैजन्ती जी।
राधा मोर पंख लाई है,  माथे धरे मोहन जी।

राधा मणि सजाये माथे ,मोहन साथ लागे मणियन सी।
राधा के नेना काले, मदन मुरारी काले रंग वाले।।

दोनों छाएल छबीले, सज धज नाचे।
गोकुल नगरिया लागे सुहनिया जी।

जितनी प्यारी राधा रानी ,उतने प्यारे बिहारी जी।।
निशि कृष्ण नयनों में बस गए नींद उड़ी हमारी जी।।

धिन ताना धीन ताना मै भी नाचू, साथ नाचे बिहारी जी।
ग्वाल बाल सग गोपी नाचे, साथ नाचे ब्रिज दुलारी जी।।

रूप बखाने केसे कोई*****

राधा के नीले नीले नयनों कों, कैसे  देखू।
राधा की भोली भाली बातो को , कैसे भूलूं।।

राधा के प्यारे प्यारे पैरों को मै, कैसे छूलू।
राधा रानी कितनी प्यारी है, मै कैसे बोलु।।

राधा के पावन चरणों में जीवन अर्पित ,कर दूं।
राधा की दास बन कर उनके साथ, रह लू।।

राधा मोहन सामने हो मेरे, मै श्रंगार कर दूं।
राधा रानी मोहन प्यारे के रंग में, अपने को रंगलू।।

निशि कृष्ण नयनों में बस गए, राधा रानी दिल में।
 आंखो से अंतरात्मा के साथ, मै दर्शन कर लूं।।

                                          _निशि द्विवेदी

Monday, 11 May 2020

"प्रेम लग्न धन" मोहे होय।

दर्पण में जब देखूं दिखती है राधा जी,
          राधा रानी जब देखें उन्हें दिखते हैं भगवान्।
कैसी है ये मृग तृष्णा एक दूजे में बसते प्राण,
  कैसा अनोखा दिलों का बन्धन ये कैसे हो स्वीकार।
दिल की धड़कन में भी श्याम आंखो में भी श्याम,
       प्रेम लग्न ऐसी लागी दोनों को रहे ना कोई याद।
पकवान जिवें कान्हा जी पेट भरे राधा को,
          गरम खीर कान्हा खाते हैं छाले मुख राधा हो। प्रेम अनोखा ये केसा ये जान ना पाए कोई,
        जो कान्हा जी को चाहो तो तुम राधा नाम लो।
पाना राधा को चाहो तो तुम कान्हा नाम लो।।
      राधा श्याम पुकारो तो, दोनों मिलिजाए सोए।।
       निशि कृष्ण नयनों में बस गए, दर्शन कर लोय।।
                                                                                              _निशि द्विवेदी

Sunday, 10 May 2020

माखन चोरी, मय्या मोरी

माखन की मटकी फोड़ी कन्हैया,
                      जैसे ही मटकी गिरी मैया आ गई।
कान घुमायो सब कबुलवायो,
                        कैसे सिकों ,कैसे माखन गिरो।
कान्हा कैसे जतन कियो ,
                                कान्हा किसने साथ दियो।
मय्या मोरी कान छोड़ दो,
                                  मै नहीं माखन चुराओ।
ग्वाल बाल यो बिखराओ,
               कान्हा सच बोलो कान नहीं छोड़ोऊ।
मैया सच बोलूं मैने ही माखन खाओ,
                                    ग्वाल बाल घोड़ा बनो।
सब मिल माखन चूराओ,भूखों रहो नहीं जाय।
तभी माखन छुराओ, सब ने माखन ख़ाओ।।

                                                _निशि द्विवेदी

Saturday, 9 May 2020

कान्हा रो पड़े।

कृष्ण के बहते टप टप असु,
                                 रोते सुबह शाम।
जानें तो बस वो ही जाने,
                               छिपाए रहे श्याम।।

मथुरा जा कर कैसे भूले , 
                                बचपन की हर बात ।
मैया बाबा वहीं रह गए, 
                             रह गए ग्वाल बाल।

मुरली की धुन वहीं रह गई, 
                                 रह गई गाओए सारी।
माखन मिश्री वहीं रह गए
                            रह गई मेरी राधा प्यारी।

सासो के साथ सिसकियां 
                                निकले, बहते असुआं धार।
मथुरा में किशना रोते,
                             नन्दगाव, में ग्वाल बाल।।
मेरी आंखो से बहती गंगाकी धार
                              पावन चरणों में मेरा श्री धाम।
निर्मल मन मैं करती सबको याद,

जीवन समर्पित कर दिया अब नहीं रहा कुछ याद।

निशिकृष्ण में रह जाओ, बन जाए परिवार यहीं।

रोए असुवन दोनों राधा भी श्याम भी।
बिरहा में जले दोनों राधा भी श्याम भी।
दर्द में रहे दोनों राधा भी श्याम भी।
प्रेम किया दोनों ने राधा भी श्याम भी।
चाह थी दोनों को राधा भी श्याम भी।
बिस्वास रखा दोनों ने राधा भी श्याम भी।
मन्दिर में मिलते हैं दोनों राधा भी श्याम भी।
बृंदावन के कण कण में दोनों राधा भी श्याम भी।
निधिवन में आज भी मिलते हैं दोनों राधा भी श्याम भी। प्रेम किया भगवान् ने भी , राधा ने भी श्याम ने भी।
प्रसन्न होकर देते वरदान भी, प्यारी राधा प्यारे श्याम भी। 

Friday, 8 May 2020

मेरा सहारा तू ही तू.*****

निशि कृष्ण नयनों में बसाया,
                                  कन्हैया हमको परान प्यारा।
सौप दिया है जीवन अपना,
                                   कान्हा हमको देंगे सहारा।
ऊंगली पकड़ कर साथ रहूं,
                                  अब तुम्हीं पर भार हमारा ।
तुम्हारे दर्शन को हम चाहें,
                                तुम्हारे हाथ ये कुटुम्ब हमारा।


                                            _निशि द्विवेदी

Thursday, 7 May 2020

कर लो अमृत पान

छाले पड़ गए पैरों में, 
                           पर मिले नहीं मन्दिर में राम।
नगे पैरों तीरथ करे,
                             कही दिखे नहीं भगवान।
ब्रम्हमुहूर्त स्नान करे,
                            और पोथी पढ़ ली हज़ार।
भागवत पुराण में वर्णित है, 
                             थाम दिल सुन लो बात।
भगवान् का अर्थ है,
                            भाव वान गमन।
भाव तुम्हारे सच्चे दिल में,
                            पा लोगे भगवान ।
आंखे बंद  दर्शन कर लो,
                              हृदय बिराजे राम।
कितने ही आनंद लूटते,
                              प्रेम में लुटते है श्याम।

अर्ध मुदित नेत्रों से देखो, तृतीय नेत्र स्थान।
वही विराजे सीताराम, वही विराजे राधेश्याम।
            
                                           _निशि द्विवेदी

कौन रंग है तेरा, मेरा श्याम है।

रंग रेजर बने गोपाल जी,
                            बोले कपड़े रंगवालों दो चार जी।
राधा रानी चुनरिया लाई,
                             बोली इसे रंग दो गोपाल जी।
कौन से रंग चुनरिया रंगु ,
                             रंग बता रहा हूं रंग चार जी।
सुर्ख लाल गुलाब के जैसा,
                              पीला रंग लागे कमाल जी।
शर्म से आंखें झुका कर,
                            बोलीं ये रंग ना मोहे भाए जी।
कौन रंग तोहे भाए वही ,
                           मोहे बताओ वेसो एंगवाओ जी।
श्याम रंग मोहे भाए,
                            श्याम से हुए नैना चार जी।
श्याम रंग में रंगो चुनरिया,
                             मोहे भी रंगदो घनश्याम जी।

श्याम रंग रंगबाई के , मैं तो श्याम के जैसी होली । सतरंगी सांवरिया को पाए के, रोज ही खेलूं होली।

                                            _निशि द्विवेदी

Wednesday, 6 May 2020

सब देव हम पर दयाल हैं।

जब से मेरे हुए गोपाल हैं, 
                          तबसे नहीं कोई फरियाद है।।
मेरे जीवन में आनंद ही आनंद , 
                                घनश्याम मेरा आधार है।
जबसे राधा के साथ स्याम हैं, 
                             और सीता के साथ राम है।
हरि नाम बड़ा सुख धाम है, 
                               भक्तों पर प्रभु दयाल हैं।
लक्ष्मी के साथ नारायण ,
                         और गौरी के हुए भोलेनाथ है।
सभी देवों की हम पर कृपा है, 
                             उनका सिर पर मेरे हाथ है ।

                                               _निशि द्विवेदी

खोने का डर

जितनी शिद्दत तुम्हें पाने की थी                 उससे ज्यादा डर तुम्हें खोने का है बस यही है कि तुमसे लड़ती नहीं           तुम यह ना समझना कि...